डॉ अनुरूद्ध वर्मा, एडीटर-ICN
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवेयरनेस डे अर्थात विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस का आयोजन प्रति वर्ष 15 जून को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किया जाता है। इस दिवस के आयोजन का उद्देश्य दुनिया में बुजुर्गों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार के प्रति समाज मे जागरूकता उत्पन कर उसे रोकना है तथा उन्हें सम्मानजनक स्थान दिलाना है।
बुजुर्गों के प्रति दुर्व्यवहार की गम्भीरता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि दुनिया में 60 वर्ष आयु के 6 बुजुर्गों में एक बुजुर्ग किसी न किसी प्रकार के दुर्व्यवहार का शिकार हैं । दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि जैसे जैसे शिक्षा का प्रसार हुआ है शहरीकरण बढ़ा है सम्पनता बढ़ी है संयुक्त परिवारों का चलन कम हुआ है बुजुर्गों के प्रति दुर्व्यवहार की घटनाओं में भी बढ़ोत्तरी हुई है।
समाज मेंबड़े बुजुर्गो से दुर्व्यवहार कई प्रकार होता है। उपेक्षा, अलगाव, शारीरिक शोषण, यौन शोषण, धन शोषण या भावनात्मक शोषण आदि आम बात है । बृद्धावस्था में आयु अधिक हो जाने के कारण उम्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएँ सामान्य हैं उनमें मनोभ्रंश है जो अकेलेपन का शिकार हैं अलग-थलग पड़े रहते हैं उनमें इसका हअनुभव करने की अधिक संभावना अधिक होती है। ऐसा देखा गया है कि बीमारी में सही समय पर उपचार न होना बहुत बड़ी समस्या है। स्थिति इतनी गंभीर है कि कुछ लोग बीमार माता पिता को छोड़ देतें हैं उनके इलाज की बात क्या करें उनके अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं होते हैं । उनके पेंशन के पैसे छीन लेना आम बात हो गई है । बुजुर्गों को अपने रिश्तेदारों एवं अन्य परिवारीजनों से भी नहीं मिलने दिया जाता है।
हमारे समाज में बुजुर्गों का हमेशा एक सम्मानीय स्थान रहा है । एक मार्गदर्शक और पारिवारिक मुखिया होने के नाते जो सम्मान बुजुर्गों को मिलता था उसमे धीरे धीरे कमी आ रही है उनके अनुभवों को अमूल्य पूंजी समझ कर उनको अपनाने वाला समाज अब उन्हें बोझ समझने लगा है तथा उनके प्रति अपमानजनक व्यवहार करने लगा है ।
‘एक सर्वे के अनुसार भारत में भी बुजर्गों के साथ अब बहुत अच्छा व्यवहार नहीं होता है ।इसकी ब्यथा खुद बुजुर्ग अपनी बातचीत में व्यक्त करते हैं ।बुजुर्गों के साथ सार्वजनिक स्थानों पर भी बुजुर्गों उचित एवँ सम्मानजनकव्यवहार नहीं हो रहा है देश के बड़े शहरों में जैसे दिल्ली, बेंगलूरू, हैदराबाद, भुवनेश्वर, मुंबई और चेन्नई आदि में यह समस्या ज्यादा गंभीर है। उन्हें सड़क पार कराने, बस में स्थान देने ,अस्पताल में पहले दिखाने, व्हील चेयर देने में लोग आनाकानी करते हैं।
असम्मान, तिरस्कार, वित्तीय परेशानी के आलावा बुजुर्गों को मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है ।लगभग 50 प्रतिशत से अधिक बुजुर्गों का मानना है कि समाज उनके साथ भेदभाव करता है । अस्पताल, बस अड्डों, बसों, बिल भरने के दौरान और बाजार में भी बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के मामले सामने आते रहते हैं खासतौर पर अस्पतालों में बुजुर्गों को भेदभाव या दुर्व्यवहार और अपमान का बहुत अधिक सामना करना पड़ता है ।
जीवन की भागदौड़ में बुजुर्गों की उपेक्षा लगातार बढ़ती जा रही है । भारत में संयुक्त परिवार व्यवस्था का समाप्त बुजुर्गों के लिए बहुत ही नुकसानदायक साबित हुआ है ,बुजुर्गों का मानना है कि उम्र या सुस्त होने की वजह से लोग उनसे रुखेपन से बात करते हैं तथा रूखा व्यवहार करते हैं। कोरोना काल मे लगे लोकडौन के दौरान बुजुर्गों के प्रति दुर्व्यहार एवँ घरेलू हिंसा की घटनाओं में वृद्धि हुई है।बुजुर्गों के प्रति दुर्व्यवहार के मुख्य कारणों में कथित समय का अभाव और एकल परिवार है । भावनात्मक कमी को पूरा करने युवा उन्हें पूरा समय नहीं निकालत हैं ।
वर्तमान आर्थिक समाज में बुजुर्गों बेकार समझा जाने लगा है जबकि आज भी बुजुर्ग परिवार और समाज, के लिए काफी उपयोगी हैं वह समाज की संपदा हैं हम उनके अनुभवों का लाभ उठाकर समाज को सही दिशा दे सकतें हैं ।
बुजुर्गों के प्रति समाज का दृष्टिकोण बदलने के लिए बुजुर्गों और आज की युवा पीढ़ी को एक साथ मिल कर और आपस में सहयोग बढ़ा कर करना होगा उनके अनुसार इससे बुजुर्गों और युवाओं दोनों को ही लाभ होगा । बुजुर्गों की प्रति समाज के नजरिये को बदलने की जरूरत जरूरत है। हम उनके प्रति सम्मानजनक व्यवहार कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर उनके अनुकूल वातावरण का सृजन कर उन्हें अच्छा जीवन जीने का अवसर प्रदान कर सकतें हैं जहां दुःख ना हो प्यार ही प्यार हो ।