तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
राजा के घर अग्निफूल के,
जगमग बाग लगे ।
अब चाहे तो रोज़ प्रजा के,
घर में आग लगे ।।
(1)
निकले हैं फरमान,
नए कानून बनाये जायेंगे ।
धान प्रजा के काट,
अलख हर रोज़ जलाये जायेंगे।।
जल सीमित है किन्तु,
लहू हर देह कलश में काफी है,
नित्य रुधिर से राजमहल के,
शीश धुलाये जायेंगे।।
राजा के घर रंगमहल में
हर दिन फाग लगे।
चाहे नित्य प्रजा के आँगन,
काले काग लगे ।।
(2)
हुई मुनादी चौराहे पर,
हर बगिया पर कर होगा ।
कली-कली पर राज-चिन्ह का,
गौरवपूर्ण भ्रमर होगा ।।
मोल अदा करना ही होगा
अब फूलों को खिलने का,
यौवन के हर उपवन में अब
सामंती दफ्तर होगा ।।
राजा के घर देह महल में,
नित अनुराग लगे ।
चाहे नित्य प्रजा के, प्रतिदिन,
मस्तक दाग लगे ।।
(3)
फिर ऐलान हुआ है केवल,
राजमहल सब बेचेगा।
सारी प्रजा खरीदेगी बस,
राजमहल जब बेचेगा ।।
नहीं किसी की भूख प्यास से,
कुछ मतलब है राजा का।
मन का मौजी राजा अपना,
जब चाहे तब बेचेगा ।।
राजा के उत्सव में जी भर,
अमृत राग लगे।
चाहे जन के चन्दन वन में
तिल तिल नाग लगे ।।