ग़ज़ल

सुहैल काकोरवी, लिटरेरी एडिटर-ICN ग्रुप 
देती है सबक़ हमको इस क़ौल की दानाई
“लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई “
It gives a lesson to us, the sagacity of the version
That erred the moments and got punishment the centuries
मजनूं ने मोहब्बत से की मेरी पज़ीराई
देखा जो मुझे उसने होते हुए सहराई
The love lunatic [Majnu] lovingly welcomed me
As he saw me intending to seek dwelling in loneliness like him
इंसां से मोहब्बत में हम फ़र्क़ नहीं करते
हिन्दू हो मुसलमां हो वो सिख हो कि ईसाई
No discrimination I have in mind while I love a human being
May he be Hindu, Muslim, Sikh or Christian either
तू आग को पूजे है छूता नहीं क्यों उसको
कैसी ये मोहब्बत है तू कैसा है तरसाई
Thou art worshipper of the fire yet never go near to touch
What sort of love thou possess what kind of worshipper art thou
वो कहने लगे मुझसे क्या फिर नहीं आएगी
तड़पाती है याद आकर वो रुत हमें बर्खाई
She began to ask will that not come back again
Remembrance of that rainy season agonizes us time and again
आया जो समझ में ये हम होश ही खो बैठे
था जुर्म तो वो मेरा क्यों उसने सजा पाई
As soon as I got that it was my guilt I lost senses
When I committed wrong why was she sentenced
अब इसका सबब कोई पूछे तो न बतलायें
वो मुझसे ये कहते हैं तुम हो बड़े नखराई
I can not tell anyone if it is asked the reality
She blames me with an appellation of a swagger
वो मेरी मोहब्बत में उस वक़्त था बेकाबू
जब रोक रहा था वो आती हुई अंगड़ाई
She was absolutely uncontrollable in my love at that time
When she was trying to monitor her yawn indicating approaching sleep
उल्फत में सुहैल उसका ये रुख है सुरूरे दिल
ये भूलने की आदत मदहोशिये बरनाई
It exhilarates heart in tender ties the thought process
The forgetfulness and deprivation of sense in youthfulness
क़ौल की दानाई=कथन की बुद्धिमता ,पज़ीराई=स्वागत, सहराई=वन आवासी, रुख=दृष्टि संकेत,तरसाई=आग का पुजारी अर्थात प्रेमी,सुरूर दिल=हर्षित करने वाला ,मदहोशिये बरनाइ =जवानी की नषा,
विशेष:- ‘सुहैल काकोरवी’ उर्दू, अंग्रेजी, हिंदी व फारसी के साहित्य का एक ऐसा नाम हैं जो स्वयं भी “साहित्य” ही है. उन्होंने जितना भी लिखा वो साहित्य की सर्वशेष्ठ वर्ग में आता है और यही कारण है की समय समय पर ‘लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड’ एवं ‘इंडियन बुक्स ऑफ़ रिकॉर्ड’ जैसी संस्थाओं ने उनकी अनेक पुस्तकों को कीर्तिमानो की मान्यता दी है. श्री सुहैल काकोरवी आई.सी.एन. नेशनल (साहित्य) के सम्मानीय एडिटर हैं. उनकी इस रचना को प्रकाशित करते हुए आई.सी.एन. को अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा है.

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