ग़ज़ल

सुहैल काकोरवी, लिटरेरी एडिटर-ICN ग्रुप

कहते है लोग जां का निगह्बां है फासला

आज़ार जारिया है तो दरमाँ है फासला

All say that protector of life is distance

Amidst continuous affliction remedy is distance

घुटती हुई दिलों में तमन्नाये वस्ल है

क़ुरबत गराँ हुई है तो अरज़ां है फासला

Suffocate within the desire of union

Costly turned nearness and cheaper became distance

सूने पड़े हैं सारे मुक़ामात बंदगी

बिलकुल नया ये फ़ितनाये दौरां है फासला

All places of worship now are desolate

Absolutely strange is this terror of time-the distance

ले जाए अपने साथ हलाकत का हर सबब

रुखसत के वास्ते जो खिरामाँ  है फासला

Must carry along all causes of death, it released

Looks it is moving to depart the distance

अब तक हुआ न था ये मआनी का उसके ढंग

अब जो हुआ है इस्पे तो हैरां है फासला

Manifests new meaning of its new look not known before

And what happened now amazed even distance itself

खोती है क़द्र सच है मुलाक़ात रोज़ की

आमिल है हम हिदायते खूबां है फासला

The daily meeting causes loss to  one’s dignity

I follow as it is the direction if elegant creatures

वो जिस तरह बनाता है उसका कमाल है

उसकी अदाए नाज़ का उनवां है फासला

The way she creates that  is her knack

It is the pretext of her sweet gesture the distance

है जुस्तुजू तवील तो मंज़िल है वाह्मा

राही  के इंतिशार का सामां है फासला

The struggle is long when the goal is but uncertain

Cause it has become of the confusion of wayfarer the distance

ये चाल है जो उसने तक़द्दुस की आड़ ली

कहने लगा तहफ़्फ़ुज़े ईमां है फासला

It is her trick that she brings chastity as an excuse

And says  that in the distance lies the safety of faith

हम दोनोँ है सुहैल जुदा रूह मुज़्तरिब

ज़ालिम हमारे हाल पे ख़नदां  है फासला

Parted we are and perplexed is soul

And the cruel distance there laughs upon our sad plight

निगह्बां=रक्षक ,आज़ारे जारिया =निरंतर रोग, दरमाँ=उपचार ,क़ुरबत गराँ =महंगी समीपता ,अरज़ां =सस्ता ,मुक़ामात बंदगी=पूजा स्थल ,फ़ितनाये दौरां=समकालीन आतंक ,हलाकत =मृत्यु ,सबब =कारण ,रुखसत =विदाई ,खीरामां=चलने की क्रिया ,अदाए नाज़=सुन्दर कृत ,उनवां =शीर्षक ,जुस्तुजू तवील=दीर्ध परिश्रम ,वाह्मा =संशय ,इंतिशार=सम्भ्रम ,तक़द्दुस=पवित्रता ,तहफ़्फ़ुज़े ईमां =धर्म की सुरक्षा,रूह मुज़्तरिब=आत्मा की पीड़ा , ख़नदां=हंसने की दशा ,हंसना

विशेष:- ‘सुहैल काकोरवी’ उर्दू, अंग्रेजी, हिंदी व फारसी के साहित्य का एक ऐसा नाम हैं जो स्वयं भी “साहित्य” ही है. उन्होंने जितना भी लिखा वो साहित्य की सर्वशेष्ठ वर्ग में आता है और यही कारण है की समय समय पर ‘लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड’ एवं ‘इंडियन बुक्स ऑफ़ रिकॉर्ड’ जैसी संस्थाओं ने उनकी अनेक पुस्तकों को कीर्तिमानो की मान्यता दी है. श्री सुहैल काकोरवी आई.सी.एन. नेशनल (साहित्य) के सम्मानीय एडिटर हैं. उनकी इस रचना को प्रकाशित करते हुए आई.सी.एन. को अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा है.

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