तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप (श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद) प्रथम अध्याय (अर्जुन विषाद योग) (छंद 29-34) अर्जुन : (श्लोक 28-46) मारकर धृतराष्ट्र की संतान हमको क्या मिलेगा। पापियों को मारकर भी पाप हमको ही लगेगा।। है नहीं सामर्थ्य मुझमें, बांधवों को मारने का। फल अधिक मीठा मिलेगा,युद्ध फिर भी हारने का।।(29) मानता हूँ भ्रष्ट हैं सब, लोभ में भटके हुये हैं। स्वार्थ सबके नीतिगत अन्याय में अटके हुये हैं।। जानते हैं किंतु हम कुलनाश है अपराध भारी। पाप से उन्मुक्ति की क्यों रीति न…
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