एज़ाज़ क़मर, एसोसिएट एडिटर-ICN
नई दिल्ली। यद्यपि उस समय ना तो गति मापने वाला कोई यंत्र होता था और ना ही अपना शरीर बचाने के लिये सुरक्षा के समान (हेल्मेट, चेस्ट गार्ड, एल्बो गार्ड, आर्म्स गार्ड, थाई गार्ड आदि) मुहैया थे,फिर भी उस पीढ़ी के क्रिकेट विशेषज्ञो और पत्रकारो की दृष्टि तथा परख किसी भी तरह से वर्तमान पीढ़ी के लोगो से कम नही होती थी,क्योकि उनकी दूरदर्शिता ने खून की होली खेलने की महत्वकांक्षा के कारण बॉडिलाइन जैसे एक छोटे से कुकर्म को क्रिकेट जगत का कलंक बना दिया था।
गुड-लेंथ से उछलकर मधुमक्खियो की तरह भन-भनाती हुई गेंदे तब कान के पास से निकलती थी तो अच्छे-अच्छे बल्लेबाज़ो के शरीर मे सिहरन दौड़ जाती है,लेकिन बल्लेबाज़ खुद को अपने राष्ट्र का सिपाही मानते हुये गेंदबाज़ द्वारा भेजी गई गेंद को आक्रमणकारी फौजी का हथगोला समझकर विकेट पर खड़ा रहता था इसलिये देशभक्ति का जज़्बा ही उसे खड़े रहने के लिये मजबूर करता था,क्योकि उस वक्त ना तो कंपनियो के विज्ञापन मिलने से अमीर बनने की संभावना थी और ना ही टी०वी० तथा फिल्म इंडस्ट्री क्रिकेटर मे रुचि रखती थी ताकि उन्हे स्टार बना दे इसलिये उनकी पहचान सिर्फ उनका खेल हुआ करता था।
1983 के विश्व कप से पहले दूरदर्शन भारत-पाकिस्तान के अतिरिक्त दूसरे स्थानो पर खेली जा रही क्रिकेट टेस्ट और एकदिवसीय मैचो की श्रृंखला का प्रसारण बहुत कम ही करता था,जब दूरदर्शन ने 1983 का विश्व कप फाइनल दिखाने की घोषणा करी तो भारतीय दर्शको की खुशी का ठिकाना नही रहा फिर बच्चे, बूढ़े और जवान सब अपना खेल-कूद तथा काम-काज सब-कुछ छोड़कर मैच देखने बैठ गये,किंतु भारत को पहले बल्लेबाजी करने का मौका मिला और वेस्टइंडीज के गेंदबाज़ो की आग उगलती हुई तूफानी गेंदो के सामने भारतीय बल्लेबाज़ो को बेबस देखकर भारतीय दर्शको का दिल टूट गया तथा ऐसा लगता था कि कलेजा गले मे आ रहा हो।
वेस्टइंडीज के पास खौफनाक तेज़ गेंदबाज़ो की चौकड़ी थी जिसमे साढ़े छे फुट लंबे जोइल गॉर्नर के यॉरकर बल्लेबाजो के पंजो के टखने और उंगलियां तोड़ दिया करते थे,ऐंडी रॉबर्ट्स रफ्तार के सौदागर थे उनकी एक गेंद कम रफ्तार की होती थी जो 130-135 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से आती थी किंतु अगली गेंद 150 किलोमीटर प्रति घंटा से अधिक रफ्तार से आती और बल्लेबाज़ का जबड़ा लगभग तोड़ ही जाती थी,माइकल होल्डिंग तूफानी रफ्तार से गेंदो को विकेट के दोनो तरफ कटवाया करते थे।
उनकी लेग-कटर गेंद लेग-स्टंप से बाहर टप्पा खाकर एक गज़ कटते हुये ऑफ-स्टंप से बाहर निकल जाती है,उस वक्त विश्व के सबसे भयावह तेज़ गेंदबाज़ मैलकम मार्शल पांच आउट-स्विंगर के बीच मे जब इन-स्विंगर मारते तो बल्लेबाज को अपना विकेट बचाना मुश्किल हो जाता था।
वेस्टइंडीज़ से पहले पाकिस्तान के दौरे पर इमरान ख़ान के बाउंसरो और इन-स्विंगर्स ने भारतीय बल्लेबाज़ो की नाक मे दम कर दिया था,भारत के पास दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाज रहे है किंतु ऑस्ट्रेलिया, वेस्टइंडीज और दूसरे देशो की तेज़ उछाल लेती पिचो पर बल्लेबाज़ी करना उनके लिये डरावना सपना होता था,डेनिस लिली और थॉमसन की जोड़ी भी भारतीय बल्लेबाज़ो को डराने मे कामयाब रही थी क्योकि थॉमसन दुनिया के पहले गेंदबाज़ थे जिनकी गेंदो की रफ्तार किसी मशीन ने नापकर सौ मील प्रति घंटा की बताई गई थी।
भारतीय बल्लेबाज़ो को तेज़ गेंदबाज़ी का खौफ 1962 के किंग्सटन टेस्ट के बाद पैदा हुआ था क्योकि इस टेस्ट मे चार्ली ग्रिफिथ और वेसले हाल की खूनी गेंदो ने आधा दर्जन भारतीय बल्लेबाज़ो को अस्पताल मे पहुंचा दिया था,इस किंगस्टन टेस्ट मैच के दौरान भारतीय कप्तान नारी कॉन्ट्रैक्टर के सिर पर वेस्ट इंडीज़ के तेज़ गेंदबाज़ चार्ली ग्रिफित की बाउंसर गेंद जा लगी फिर नारी छह दिनो तक बेहोश रहे और इस चोट से उनका क्रिकेट कैरियर भी समाप्त हो गया,वास्तव मे क्रिकेट का खेल अंडरवर्ल्ड के मनोरंजक खेलो की तरह खूनी होता जा रहा था जोकि एक बुरा संकेत था क्योकि मेज़बान टीम के दर्शक चाहते थे कि उनके घरेलू गेंदबाज़ मेहमान टीम के बल्लेबाज़ो को ज़ख्मी करके उनका खून बहाएं इसलिये दर्शक विशेषकर वेस्ट-इंडियन चिल्लाते थे; मारो! मारो!
मारो-मारो!
इस ख़ूनी गेंदबाज़ी की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया-इंग्लैंड के बीच 1932-33 मे खेली गई सीरीज़ मे हुई थी जिसे “बॉडीलाइन सीरीज़” कहते है,तब ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज़ सर डॉन ब्रैडमैन बेहतरीन फॉर्म मे थे इसलिये उन्हे तथा दूसरे ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ो को रन बनाने से रोकने के लिये इंग्लैंड के गेंदबाज़ो ने बल्लेबाज़ो के शरीर को निशाना बनाते हुये मिडिल-लेग स्टंप पर शॉर्ट-पिच गेंदे फेकी और कैच पकड़ने के लिये लेग-साइड पर छह-सात फील्डर खड़े कर दिये जबकि इससे पहले ऑफ-साइड पर छह-सात फील्डर खड़े होते थे,
बदली परिस्थितियो मे ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ फटाफट आउट होने लगे क्योकि उन्हे पहले इस तरह से गेंदे खेलने का कोई अभ्यास नही था इसलिये कई बल्लेबाज़ विकेट बचाने के चक्कर मे ज़ख्मी हो गये।
वास्तव मे इस विवादित बॉडीलाइन सीरीज़ की रणनीति इंग्लैंड के कप्तान डगलस जार्डिन ने तैयार की थी इसके अंतर्गत इंग्लैंड के तेज़ गेंदबाज़ो को अपनी गेंदे ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ो के शरीर को निशाना बनाते हुये लेग-स्टंप पर फेंकनी थी और रन रोकने तथा कैच पकड़ने के लिये अधिक से अधिक फील्डर लेग-साइड पर खड़े करने थे इसलिये इसे “लेग थ्योरी” कहते है,फिर इंग्लैंड के तेज़ गेंदबाज़ हेरॉल्ड लॉरवुड ने शरीर को निशाना साधकर गेंदबाज़ी करते हुये ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज़ बिल वुडफुल को घायल कर दिया जिससे एडिलेड के दर्शको ने इंग्लिश टीम विशेषकर लॉरवुड की हूटिंग करी तो लॉरवुड ने एक और ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज की पसलियां ही तोड़ दी,इसके बाद दर्शक भड़क गये और लॉरवुड को कड़ी सुरक्षा के बीच मैदान से बाहर ले जाया गया था इसी कारण क्रिकेट की बाइबिल कही जाने वाली विज़डन मैगजीन ने इसे “डरावना टेस्ट” लिखा है।
जब खेल बदलकर युद्ध का रूप ले ले तो दोनो टीमे यह चाहती है कि हथियार भी बराबरी के हो या दूसरे से बेहतर हो और बिना तेज़ गेंदबाज़ो के मैदान मे उतरने का मतलब होता है जैसे 22 बोर की राइफल लेकर ए०के०-47 कलाशनिकोव राइफल से मुकाबला करना,परंतु सौभाग्य से भारतीय टीम के पास एक से एक बेहतरीन बल्लेबाज़ और स्पिनर रहे है किंतु तेज़ गेंदबाज़ो का हमेशा अकाल पड़ा रहा है,लेकिन हैरानी की बात यह है कि भारत की पहली गेंद एक तेज़ गेंदबाज़ मोहम्मद निसार ने फेकी थी।
25 जून 1932 के ऐतिहासिक दिन इंग्लैंड मे लॉर्ड्स के मैदान मे भारत ने अपना पहला टेस्ट मैच खेला,इंग्लैंड के कप्तान डग्लस जॉर्डिन ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाज़ी करने का निर्णय लिया,तब मोहम्मद निसार ने भारत की ओर से इंग्लैंड के सलामी बल्लेबाज़ पर्सी होम्स को पहली गेंद फेकी।जब इंग्लैंड का स्कोर 8 रन था तो मोहम्मद निसार ने 3 रन पर खेल रहे इंग्लैंड के सलामी बल्लेबाज हरबर्ट सटक्लिफ को बोल्ड कर दिया और फिर जब इंग्लैंड का स्कोर 11 रन था तो 6 रन बनाकर खेल रहे दूसरे सलामी बल्लेबाज़ परसी होम्स को भी मोहम्मद निसार ने बोल्ड कर दिया,इसके बाद मोहम्मद निसार ने तीन बल्लेबाज़ो (लेग एमस, आर.डब्ल्यू.वी. रॉबिंस तथा एफ.आर. ब्राउन) को भी आउट किया और इंग्लैंड की पूरी टीम 259 रन बनाकर आउट हो गई,मोहम्मद निसार ने 26 ओवर मे से 3 ओवर मेडिन (बिना रन के ओवर) फेके और उन्होने 93 रन देकर 3.57 की इकोनॉमिक्स रेट से 5 विकेट प्राप्त किये।
भारत मे अपनी पहली पारी मे 189 रन बनाये जिसमे से सर्वाधिक सी.के. नायडू ने 40 रन बनाये और नऊमल ने 30 तथा वज़ीर अली ने 31 रन बनाये,फिर 8 विकेट पर 275 रन बनाकर इंग्लैंड ने अपनी दूसरी पारी घोषित कर दी जिसमे जहांगीर खान ने 60 रन देकर चार विकेट लिये और मोहम्मद निसार ने 18 ओवर मे से 5 ओवर मेडिन फेके और उन्होने 42 रन देकर 2.33 की इकोनॉमिक्स रेट से 1 विकेट प्राप्त किया,इसलिये भारत को 346 रन बनाने का लक्ष्य मिला लेकिन भारतीय टीम 187 रन बनाकर ऑल आउट हो गई जिसमे से सर्वाधिक अमर सिंह ने 51 रन और वज़ीर अली ने 39 रन बनाये फिर भारतीय टीम 158 रनो से मैच हार गई।
मुहम्मद निसार ने अपना अंतिम टेस्ट 1936 मे ओवल के मैदान मे खेला था जिसमे इंग्लैंड ने टॉस जीतने के बाद पहले खेलते हुये वॉली हैमंड और स्टेन वर्थिंगटन की शानदार बल्लेबाज़ी की सहायता से तीन विकेट पर 422 रन बना लिये थे,तभी मोहम्मद निसार का खतरनाक स्पेल शुरू हुआ फिर उन्होने सनसनीखेज गेंदबाज़ी करते हुये 128 रन बनाकर खेल रहे टी.एस. वर्थिंगटन और 217 रन बनाकर खेल रहे डब्लू.आर. हैमंड तथा दूसरे दो बल्लेबाज़ो को आउट कर दिया, इसलिये इंग्लैंड की हालत इतनी खराब हो गई उसके 468 रन पर 8 विकेट गिर गये और फिर इंग्लैंड ने 471 रन पर अपनी पारी घोषित कर दी,किंतु दुर्भाग्य से भारत यह टेस्ट मैच नौ विकेट से हार गया और मोहम्मद निसार ने इस पारी मे 120 रन देकर पांच विकेट लिये।
मोहम्मद निसार ने 6 क्रिकेट टेस्ट मैच खेले जिसमे उन्होने 1211 गेंदे फेक कर 28.28 की इकोनॉमिक रेट से 25 विकेट प्राप्त किये और एक पारी मे 5 विकेट लेने का श्रेय उन्हे तीन बार मिला,अपने टेस्ट क्रिकेट जीवन के पहले 25 टेस्ट विकेट लेने की स्ट्राइक रेट के मामले मे वह आज भी भारत के सर्वश्रेष्ठ स्ट्राइक बॉलर है, क्योकि उन्होने 25 टेस्ट विकेट 48.4 की स्ट्राइक रेट से लिये थे फिर उनके बाद दूसरा नंबर रविचंद्रन अश्विन का है जिन्होने 52.9 की स्ट्राइक रेट से अपने पहले 25 टेस्ट विकेट लिये है।
उनका जन्म 1 अगस्त 1910 को पंजाब के ज़िला होशियारपुर मे हुआ था और उन्होने मात्र 22 वर्ष की आयु मे क्रिकेट टेस्ट मैच खेलते हुये भारत की सेवा करी,फिर भारत का यह सबसे तेज़ गेंदबाज 11 मार्च 1963 को इस संसार से विदा हो गया और अपने पीछे तेज़ गेंदबाज़ी की कहानियां छोड़ गया,कि किस तरह वह चीते की रफ्तार से दौड़ते हुये तूफानी गेंदे फेक कर और विकेट के दोनो तरफ गेंद को स्विंग कराकर बल्लेबाज़ो को नाको चने चबवाया करते थे।
आशीष नेहरा ने 2003 के विश्व कप मे ज़िम्बाब्वे के विरुद्ध 149.7 किलोमीटर प्रति घंटा (93 मील प्रति घंटा) की रफ्तार से गेंद फेकी थी,फिर गति के अनुसार उमेश यादव ने श्रीलंका के विरुद्ध 152.2 किलोमीटर प्रति घंटा (94.5 मील प्रति घंटा), वरुण ऐरोन ने श्रीलंका के विरुद्ध 152.5 किलोमीटर प्रति घंटा (94.7 मील प्रति घंटा), ईशांत शर्मा ने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 152.6 किलोमीटर प्रति घंटा (94.8 मील प्रति घंटा), जसप्रीत बुमराह ने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध 153.2 किलोमीटर प्रति घंटा (95.1 मील प्रति घंटा) की रफ्तार से तेज़ गेंद फेकी,किंतु जवागल श्रीनाथ ने 1999 के विश्व कप मे पाकिस्तान के विरुद्ध 154.5 किलोमीटर प्रति घंटा (96 मील प्रति घंटा) की रफ्तार से भारत की ओर से सर्वाधिक तेज़ गेंद फेकी थी।
भारत के पास मध्यम-तेज़ गेंदबाज़ो की एक लंबी सूची है किंतु उसके बावजूद भी मोहम्मद निसार को भारत का सबसे तेज़ गेंदबाज़ माना जाता है,क्योकि प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेटर सी.के. नायडू ने कहा था कि रफ्तार के मामले मे “मोहम्मद निसार इंग्लैंड के तेज़ गेंदबाज़ लारवुड से बहुत तेज़ थे”,यह सिर्फ उनका अपने साथी भारतीय खिलाड़ी के लिये प्रेम प्रदर्शन नही था बल्कि इंग्लैंड के क्रिकेट विशेषज्ञो और पत्रकारो ने भी मोहम्मद निसार को उस समय तक का सबसे तेज़ गेंदबाज़ माना था।
अंतरराष्ट्रीय जगत मे कीर्तिमान बनते और टूटते रहते है और अब तो अत्याधुनिक तकनीको के कारण बाद मे आंकड़े सुधार कर रिकॉर्ड बदले जा सकते है,किंतु उस समय ना तो भारत टीम के पास बेहतरीन कोच हुआ करते थे, ना ही इलेक्ट्रॉनिक उपकरणो की सहायता से खिलाड़ियो को अपना प्रदर्शन (परफॉर्मेंस) सुधारने मे मदद दी जाती थी और ना ही बेहतरीन डॉक्टर खिलाड़ियो के स्वास्थ्य की निगरानी करते थे,परन्तु उसके बावजूद भी इतनी विषम परिस्थितियो का सामना करते हुये मुहम्मद निसार लगातार तूफानी रफ्तार से गेंदे फेंकने मे कामयाब होते थे,यही उनका कीर्तिमान है जो भविष्य मे कोई भारतीय तेज़ गेंदबाज नही तोड़ सकता है और वह हमेशा भारत के सबसे तेज़ गेंदबाज़ ही रहेगे।