गुड पेरेंटिंग: आज और भविष्य की ज़रूरत

डॉ. प्रांजल अग्रवाल, डिप्टी एडिटर-ICN

लखनऊ। भौतिकता के इस दौर में, मकान हो या मोटर कार, क्रेडिट कार्ड हो या विदेश यात्रा, सभी भौतिक वस्तुओं तक लगभग सभी की पहुँच होती जा रही है | देखा- देखी के इस दौर में, किसी ज़रूरतमंद की मदद करने से बेहतर, लोग शादी-पार्टी में अथवा गोल्ड लाउन्ज में सिनेमा देखने में अत्यधिक खर्च करना बेहतर समझते हैं | दिखावे का माहोल ऐसा बन पड़ा है की शहर में बड़े मकान से ले कर मोटर कार तक, या फिर मोबाइल फ़ोन से ले कर घड़ी/पर्स इत्यादि की सब लोगों में अच्छे से अच्छे की ऐसी होड़ लगी है, जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही |

सोचने की ज़रूरत है की हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को क्या दे रहे हैं | आज कल ज्यादातर मेट्रो शहरों में एकल परिवार (न्यूक्लियर) की धारणा है | इस एकल परिवार में पति और पत्नी दोनों ही काम पर जाते हैं | काम पर दोनों इसलिए भी जाते हैं, की देखा देखी की इस दौड़ में खर्चों पर नियंत्रण करने से बेहतर समझा जाता है की परिवार के दोनों सदस्य काम करें जिससे खर्चे पूरे किये जा सकें | घर में बचे बच्चे, जिनके लिए किसी के पास समय नहीं होता | इन बच्चों का ज्यादातर समय 3 हिस्सों में बट जाता है, स्कूल, ‘क्रेच’ व घर | स्कूल और घर तो समझ में आता है, ये ‘क्रेच’ क्या है ? ‘क्रेच’ वो संस्था है जहाँ इस भौतिकता वादी मानसिकता से ग्रस्त लोग अपने बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी कुछ घंटों के लिए गैर लोगों पर छोड़ देते हैं | सुबह घर से निकला हुआ बच्चे को दोपहर में क्रेच वाले स्कूल से ले कर अपने पास रख लेते हैं, जहाँ शाम को उनके माता-पिता ऑफिस से लौटने के बाद घर ले जाते हैं | इस सब के बीच सब के निहित स्वार्थ आये, माता-पिता से लेकर क्रेच संचालक तक, पर अगर किसी पर नहीं ध्यान दिया गया तो वो होता है उस बच्चे पर और उसकी मनोदशा पर |

कल्पना कीजिये की आप रोज़ अपने बच्चे को 6 बजे शाम को क्रेच से ले जाने के लिए आते हैं, किसी दिन ट्रैफिक  जाम में फंस जाने के कारण देर होने लगी, या फिर किसी दिन ऑफिस में कोई ज़रूरी काम हो गया जिस वजह से आप समय पर नहीं पहुच सके |  आपके इस देरी से आने के कारण 10 मिनट ही सही, पर जितनी भी देर होती है और उतनी देर क्रेच संचालक को भी देर होने के कारण उसके चेहरे पर भाव, जो आपके बच्चे को देखना पड़ेंगे,  वो आपके बच्चे के मस्तिष्क पर गहरा नाकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिससे होने वाले नुक्सान की कल्पना आप इस समय कर ही नहीं सकते हैं, पर उसका प्रभाव कुछ वर्षों में आपके बच्चे के व्यवहार में दिखाई देते हैं |

अगर आपको लगता है की इस देखा देखी की दौड़ में केवल आप हैं,  तो आप गलत हैं | आपका बच्चा भी आपका ही अंश है | वो एक दिन शाम को आपसे ’ आई-फ़ोन एक्स ‘ की डिमांड करता है, और बगैर सोचे समझे की क्या आपके बच्चे को वाकई में आई-फ़ोन एक्स अथवा फ़ोन की आवश्यकता है, या फिर क्या उसका काम बिना फ़ोन के भी चल सकता है, आप सोचते हैं, की हम इसके साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते और उसकी ऐसी ख्वाईशें पूरी कर देते है | यहाँ पर आप दो गलतियाँ करते हैं | एक – आपने उसे फ़ोन तो दिला दिया, पर जो बचा कुचा शाम का समय जो वो आपके साथ बिताता था, वो भी अब उस आई-फ़ोन के साथ ही बिताएगा | दूसरी- ज़रूरत से ज्यादा माया, दिखावे को बढ़ावा देती है, ये उसे समझाने के बजाय, आप खुद ही धोखा खा बैठते हैं |

आजकल राजनीतिक पार्टियाँ अपने राजनीतिक हितों के लिए धर्मों और जातियों के बीच मतभेद पैदा करने में लगीं हैं | देखने सुनने में बहुत अच्छा लगता होगा लेकिन हमे अनजाने में पता ही नहीं की हम ‘ह्यूमन बम’ बनाते जा रहे हैं | हमारे बच्चे जिनको राजनीतिक समझ नहीं है, वो सब इसका शिकार होते जा रहे हैं | पहले कभी सुनने में नहीं आता था की बच्चों में आपस के लड़ाई झगड़े इस सीमा तक पहुँच जाएँ की किसी की जान ही ले बैठें | जब तक जीवन की परिस्थितियां आजकल के बच्चों के अनुकूल रहतीं हैं, तब तक वो खुश रहते हैं, और जहाँ प्रतिकूल हुईं, वो अत्यधिक गुस्से, चिडचिडापन या फिर अवसाद (डिप्रेशन) का शिकार हो जाते हैं | और उस सबका कारण प्रमुखता से मीडिया, एक्शन से भरपूर सिनेमा और मोबाइल फ़ोन के अलावा माता-पिता के पास अपने बच्चों की कमी है | समय के अभाव के कारण बच्चे अपने विचार अपने माता-पिता से सांझा नहीं कर पाते जिसके दुष्परिणाम अनुचित व्यवहार, अवसाद और नशे आदि हैं |

धन का संचय आवश्यक है, परन्तु धन से सारी खुशियाँ नहीं खरीदी जा सकतीं | अत: काम के अलावा, गुड पेरेंटिंग भी उतनी ही आवश्यक है | कम से कम एक समय का खाना पूरे परिवार के साथ बैठ कर खाएं, अपने बच्चों के साथ उनकी दिन भर की गतिविधियाँ सांझा करें, और उनकी ज़रूरतों पर अंकुश रखें | उनके दोस्तों से मिलें, और उनको सही-गलत पर राय दें | टी.वी. और इन्टरनेट पर वो क्या करते हैं, सोशल नेटवर्किंग जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप्प इत्यादि पर उनके कौन दोस्त हैं, और किस्से क्या बात करते हैं और क्या चीज़ें फॉरवर्ड करते हैं सब पर नज़र रखें | नशे इत्यादि से दूर रहने की सलाह दें और उनके नुकसानों से परिचित करवाएं | याद रखें की आपके परिवार का भविष्य केवल आपकी सरकार, या समाज से ज्यादा आपके हाथ में है | शिक्षा से धन कमाया जा सकता है, लेकिन केवल धन से शिक्षित नहीं किया जा सकता, शिक्षित व्यक्ति विचारों से शिक्षित कहलाता है, धन से नहीं, और धनी व्यक्ति तब तक निर्धन है जब तक उसके विचार अशिक्षित हैं |

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