तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप ख़ुशबू न जाने कितने रंगों, कितने अहसासों, जज़बातों, ख़यालों और यादों को बाँधे रहती है। कई बार तो ये ख़ुशबू हमारी जज़बाती जिस्म की आँख तक बन जाती है और एक अदद ख़ुशबू न जाने ख़यालों में हमें क्या-क्या दिखा जाती है। बारिश की कच्ची मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू कभी हमें अपने बचपन के गाँव में पहुँचा देती है तो कभी चमेली और रातरानी की ख़ुशबू अपने पिया की नगरी में। गुलाब की ख़ुशबू नेहरू की शेरवानी में टँके फूल से सुहाग…
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