गीत-गीता : 10

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)

द्वितीय अध्याय (सांख्य योग)

(छंद 29-35)

 

श्रीकृष्ण : ( श्लोक 11-53)

 

मारती किसे है कब ये,

है नहीं आत्मा मरती।

इसका है नाश असंभव,

कब मृत्यु इसे है हरती।।(29)

 

आत्मा है सतत् अजन्मी,

है मृत्यु क्षेत्र से बाहर।

तन मृत्यु सहज पाता है,

मन शाश्वत है, तन नश्वर ।।(30)

 

हे पृथापुत्र, ज्ञानी को,

यह तत्व सहज उद्घाटित ।

वह जन्म हीन, अव्यय है,

सच उसका है स्थापित ।।(31)

 

जिस भाँति देह वस्त्रों को,

देती है बदल समय पर।

उस भाँति आत्मा तन को,

त्यागती सृष्टि की लय पर।।(32)

 

कब कटी भला शस्त्रों से,

यह नहीं अग्नि से जलती,

कब वायु सुखाती इसको,

कब जल से है यह गलती।। (33)

 

है यह अच्छेद्य, अक्लेद्य,

यह है अदाह्य, अनशोषित।

है अचल, अजर, अविकारी,

है सर्वव्याप्त, है संचित।। (34)

 

यह व्यक्त भला कब, अर्जुन,

अव्यक्त सदा होती है।

चिंतन कब इसका संभव,

कब मिलती, कब खोती है।। (35)

क्रमशः

 

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव

 

विशेष :गीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में  कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

 

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