बॉलीवुड की यहूदी परियां : एक नज़राना (श्रद्धांजलि)-प्रमिला (Esther Victoria Abraham)

एज़ाज़ क़मर, डिप्टी एडिटर-ICN

(The Jewish Fairies of Bollywood : A Tribute)

नई दिल्ली। बॉलीवुड मे यहूदी अभिनेत्रियो के आगमन से पहले पुरुष कलाकार महिलाओ की भूमिका भी अदा किया करते थे,क्योकि संभ्रांत/सम्मानित परिवारो की महिलाये फिल्मो मे काम (अभिनय) करना दुष्कर्म (पाप) समझती थी,बल्कि सिर्फ राजा-नवाब के दरबार मे नाचने-गाने वाली नर्तकी-गायिका ही फिल्मो मे काम करने का ज़ोख़िम लेती थी।फिर बॉलीवुड से जुड़े परिवारो की महिलाये अपने परिवार के पुरुष सदस्यो की सहायता के नाम पर फिल्मो मे अभिनय करने लगी,किंतु क्रांति तब आई जब कामकाजी महिलाये अधिक धन कमाने के लालच मे बॉलीवुड की तरफ दौड़ने लगी,क्योकि बॉलीवुड मे काम करने वाली अभिनेत्रियो का वेतन उस समय के मुंबई प्रेसिडेंसी के गवर्नर से भी अधिक होता है।

धुंदीराज गोविंद उर्फ दादा साहब फाल्के ने 1913 मे पहली पूर्ण मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई थी,हालांकि दादा साहब फाल्के बॉलीवुड मे सफलता की प्रतिमूर्ति माने जाते है,किंतु वह महिला अभिनेत्रियो की खोज मे “रेड लाइट एरिया” मे भटकते रहे परन्तु किसी वेश्या ने भी उनकी फिल्म मे अभिनय करना स्वीकार नही किया,इसलिये अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उस समय किसी महिला का फिल्मो मे काम करना कितना बुरा माना जाता होगा।
तीन बेटियो के पिता रूबेन अब्राहम एक सम्मानित यहूदी व्यापारी थे जो मुख्यत: रेल की पटरियां बिछाने का ठेका लेते थे तथा इसके अतिरिक्त प्रिंटिंग प्रेस, कॉटन मिल आदि उनके कई कारोबार थे,फिर उन्होने पड़ोस मे रहने वाली बॉलीवुड की वरिष्ठ अभिनेत्री जद्दनबाई (अभिनेत्री नरगिस की माता) को अपनी मुंहबोली बहन बनाया,किंतु सब कुछ होने के बावजूद बेटे की कमी के कारण रूबेन बहुत दुखी रहते थे इसलिये जद्दनबाई उन्हे अपने पीर (मुस्लिम सूफी-संत) के पास ले गई,जब रूबेन ने पीर साहब से उनके घर मे बेटा पैदा होने के लिये आशीर्वाद मांगा तब पीर साहब ने यह कहकर मना कर दिया कि बेटे के जन्म लेने से उनकी पत्नी का देहांत और बिजनेस बर्बाद हो जायेगा।
रूबेन अपनी ज़िद पर अड़े रहे तो पीर साहब ने उन्हे बेटा होने का आशीर्वाद दे दिया फिर बेटे जिम्मी (Jimmy) को जन्म देते समय उनकी पत्नी लिया (Liya) का देहांत हो गया और धीरे-धीरे सारा व्यवसाय बर्बाद हो गया,जब बच्चो की देखभाल के लिये रूबेन ने करॉची के मशहूर आंखो के सर्जन की बेटी मटिल्डा (Matilda) से शादी करी,तब ईस्थर (Esther), रेमण्ड (Raymond), सोफिया (Sophie), जोज़फ (Joseph), जॉनी (Johnny), मरीना (Marina) और मोज़ेला (Mozelle) नामक पैदा संतानो का जन्म हुआ जिनमे प्रमिला (ईस्थर) और रोमिला (सोफिया) बॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्रियां बनी तथा इसके अतिरिक्त उनकी (प्रमिला और रोमिला) कज़न रोज़ भी फिल्म अभिनेत्री बनी।
प्रमिला (ईस्थर विक्टोरिया अब्राहम) की 13 वर्ष की आयु मे एक हिंदू मारवाड़ी थिएटर आर्टिस्ट से शादी हो गयी परंतु बहुत जल्दी विधवा हो गई फिर वह अपने बेटे मॉरिस (Maurice Abraham) को लेकर वापस मायके आ गई,क्योकि कैंब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक तथा बी०एड० की परीक्षा उत्तीर्ण करने के साथ-साथ वह हॉकी की भी अच्छी खिलाड़ी थी,इसलिये उन्होने 31 वर्ष की आयु मे ब्यूटी कॉन्टेस्ट मे हिस्सा लिया और भारत की पहली “मिस इंडिया” बनी उसके बाद प्रमिला ने फिल्मी दुनियां मे क़दम रखा और करीब तीस फिल्मो मे काम किया फिर वह बॉलीवुड की पहली महिला प्रोडयूसर बनी और “सिल्वर प्रोडक्शंस” के नाम से प्रोडक्शन हाउस खोलकर उसके बैनर के तले 16 फिल्मे बनाई।
चांद जैसा चमकता गोल चेहरा, चौड़ा माथा, हिरनी जैसी कजरारी आंखे, अनार के फूल जैसे गुलाबी होंठ, तीखी-लंबी सुतवा नाक, ऊंचे गुलाबी गाल, रेशमी बाल, मरमरी बाँहो वाली संगतराश की बनाई हुई मूर्ति की तरह यह हसीना जब ठुमक-ठुमक के नागिन सी बल खाकर बालो को झटकाती तो सावन की घटा लहराती थी,प्रमिला वेशभूषा को लेकर इतनी गंभीर रहती थी कि अपनी फिल्मो की ज्वैलरी और कॉस्टयूम वह खुद ही डिजाइन किया करती थी।
“रिटर्न ऑफ तूफान मेल” (1935), “भिखारन” (1935), “महामाया” (1936), “हमारी बिटिया” (1936), “सरिया” (1936), “मेरे लिये” (1937), “मदर इंडिया” (1938), “बिजली” (1939), “हुक्म का इक्का” (1939), “जंगल किंग” (1939),”कहां है मंजिल तेरी” (1939), “सरदार” (1940), “कंचन” (1941), “शहजादी” (1941), “बसंत” (1942), “झंकार” (1942), “सहेली” (1942), “उल्टी गंगा” (1942), “बड़े नवाब” (1944), “नसीब” (1945), “देवर” (1946), “नहले पर दहला” (1946), “सालगिरह” (1946), “शालीमार” (1946), “दूसरी शादी” (1947), “आप बीती” (1948), “बेकसूर” (1950), “हमारी बेटी” (1950), “धुन” (1953), “मजबूरी / छोटी बहन” (1954), “बादल और बिजली” (1956), “फाइटिंग क्वीन” (1956), “जंगल किंग” (1959), “बहाना” (1960), “मुराद”  (1961), “थंग/क्वेस्ट” (2006) उनकी मुख्य फिल्मे थी,जिसमे से “बादल और बिजली” का निर्देशन उनके बड़े बेटे मॉरिस ने किया था।प्रमिला ने दूसरी शादी ‘श्री 420 और मुग़ले आज़म’ जैसी फिल्मो मे काम करने वाले कलाकार “सैयद हसन अली ज़ैदी उर्फ कुमार” से करी थी, उनकी बेटी “नकी जहां” भी 1967 मे ‘मिस इंडिया’ बनी और इस तरह मिस इंडिया बनने वाली भारत मे मां-बेटी की यह पहली जोड़ी थी,प्रमिला के सबसे छोटे (चौथा) बेटे “हैदर अली” अभी भी बॉलीवुड मे सक्रिय है और कई फिल्मो मे अभिनय करने के बाद अब वह स्क्रिप्ट राइटिंग कर रहे है उन्होने जोधा अकबर फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी तथा जोधा अकबर के गाने (मौला मेरे मौला) मे वह परदे पर भी दिखाई दिये थे।
सौंदर्य जगत और फिल्म इंडस्ट्री मे नये मापदंड स्थापित करने वाली प्रमिला का जीवन बेहद उतार-चढ़ाव वाला था और वह ज़िंदगी-भर संघर्ष करती रही,क्योकि उनका छोटी उम्र मे विधवा होना फिर मायके आकर रहना और पिता के ग़रीब हो जाने से काम करने के लिये घर से बाहर निकलना,फिर अधेड़ उम्र मे नृत्य-अभिनय सीख कर फिल्म जगत मे अपना सफल कैरियर बनाना,किंतु जब दूसरी शादी के बाद जीवन मे दोबारा बहार का आना तो विभाजन की त्रासदी मे उनके पति का बिछुड़ जाना,फिर जीवन मे तीसरी बार संघर्ष करना और अपने बच्चो का उज्जवल भविष्य बनाना, लेकिन यहां भी दुर्भाग्य का पीछा ना छोड़ना और भारत सरकार द्वारा उन पर पाकिस्तान के लिये जासूसी करने का आरोप लगाना फिर उन आरोपो का निराधार साबित होना किसी भावुक फिल्मी कहानी से ज़्यादा दिल को छू लेता है,निसंदेह वह धैर्य, साहस और संघर्ष के मामले मे झांसी की रानी से भी दो कदम आगे थी।

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