एज़ाज़ क़मर, डिप्टी एडिटर-ICN
(The Jewish Fairies of Bollywood : A Tribute)
नई दिल्ली। बॉलीवुड मे यहूदी अभिनेत्रियो के आगमन से पहले पुरुष कलाकार महिलाओ की भूमिका भी अदा किया करते थे,क्योकि संभ्रांत/सम्मानित परिवारो की महिलाये फिल्मो मे काम (अभिनय) करना दुष्कर्म (पाप) समझती थी,बल्कि सिर्फ राजा-नवाब के दरबार मे नाचने-गाने वाली नर्तकी-गायिका ही फिल्मो मे काम करने का ज़ोख़िम लेती थी।फिर बॉलीवुड से जुड़े परिवारो की महिलाये अपने परिवार के पुरुष सदस्यो की सहायता के नाम पर फिल्मो मे अभिनय करने लगी,किंतु क्रांति तब आई जब कामकाजी महिलाये अधिक धन कमाने के लालच मे बॉलीवुड की तरफ दौड़ने लगी,क्योकि बॉलीवुड मे काम करने वाली अभिनेत्रियो का वेतन उस समय के मुंबई प्रेसिडेंसी के गवर्नर से भी अधिक होता है।चिंतन-लेखन जैसे कार्य वाला इंसान फिल्म इंडस्ट्री मे तो आ सकता है लेकिन एक बार बॉलीवुड मे आ जाये तो फिर चिंतन-लेखन के लिये समय निकालना असंभव होता है,किंतु सबिता देवी उन चंद अभिनेत्रियो मे से है जिन्होने बख़ूबी यह कार्य किया और वह एकमात्र पुरानी अभिनेत्री है जिसके नाम के आगे बुद्धिजीवी/समाज-सुधारक/नारीवा