उर्दू शायरी में ‘धूप’: 3

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

धूप रंगीन भी है, चमकदार भी, उजली भी और ज़िन्दगी की पर्याय भी है। वहीं यह वक़्त की सख़्ती, कड़ी मेहनत और मुसीबतों की लड़ी की भी मिसाल है। इसके बहुत से अर्थ हैं जो विभिन्न परिस्थितियों में बिल्कुल अलग-अलग चित्र बनाते हैं। जिसके जैसे अनुभव हैं, उसने धूप का वही रुख़ हमारे सामने अपने अशआरों के माध्यम से किया। धूप के बिना भी नहीं रहा जा सकता और मुसलसल धूप के साथ भी नहीं रहा जा सकता। सच कहा जाये तो हम कह सकते हैं कि धूप का आना भी ज़रूरी है और धूप का जाना भी। शायद इसीलिए धूप वास्तव में ‘धूप’ कहलाती है।

आसिम वास्ती संयुक्त अरब अमीरात से वाबस्ता हैं और वर्ष 1958 में जन्मे। मशहूर शायर व अदीब शौकत वास्ती के सुपुत्र हैं और ‘तेरा अहसान ग़ज़ल है’ व ‘तवस्सल’ इनके चर्चित दीवान हैं। धूप पर क्या खूबसूरत शेर निकला है आपकी कलम से –

 

“ज़ाविया धूप ने कुछ ऐसा बनाया है कि हम, 

साए को जिस्म की जुम्बिश से जुदा देखते हैं।”

अकबर मासूम वर्ष 1960 में पाकिस्तान में पैदा हुये और वर्ष 2019 में उनका इंतकाल हो गया। ‘बेसाख़्ता’ उनका मशहूर दीवान है। धूप दुख है तो साया सुख का नाम है लेकिन मोहब्बत इश्क के व्यापार में कभी नफ़ा-नुकसान नहीं देखती। तभी तो वे कहते हैं –

 

वो और होंगे जो कार-ए-हवस पे ज़िंदा हैं,

मैं उस की धूप से साया बदल के आया हूँ।”

 

‘कार-ए-हवस’ का अर्थ है – लालच का कार्य ।

 

ख़ालिदा उज़्मा एक बेहतरीन शायरा हैं। उनके अशआर खुद-ब-खुद बोलते हैं। धूप पर उनका एक मशहूर शेर आपकी नज़र है –

 

वो तपिश है कि जल उठे साए,

धूप रक्खी थी साएबान में क्या।” 

नाज़िम बरेलवी आज के चर्चित युवा शायर हैं और उनमें शायरी की बेहतरीन समझ है और यही कारण है कि वे अपनी शायरी के ज़रिये न केवल लुभाते हैं बल्कि कभी-कभी तो चौंकाते भी हैं। उनका मशहूर शेर ‘शाएरी तो वारदात-ए-क़ल्ब की रूदाद है, क़ाफ़िया-पैमाई को मैं शाएरी कैसे कहूँ’ उनके बारे में स्वयं बोलता है। धूप पर उनके कुछ शेर आपके हवाले –

 

‘जान ले लेती, धूप की शिद्दत,

शजर-ए-सायादार ज़िंदाबाद।”

 

और एक ये शेर –

 

इस कड़ी धूप से मायूस न हो ऐ नाज़िम,

कोई बादल अभी मंज़र को‌ बदल सकता है।”

 

 

लखनऊ से ताल्लुक रखने वाले जनाब मोहम्मद अली साहिल उर्दू शायरी की दुनिया में तेजी से चमकता हुआ नाम है। पुलिस विभाग का अधिकारी ह्रदय पक्ष से दूर होता है, अगर इस‌ झूठी मान्यता की सच्चाई परखनी हो तो आपको एक बार साहिल साहब से अवश्य रूबरू मिलना ही चाहिए। उनकी ग़ज़ले मेरे इस दावे की भरपूर नुमाइंदगी करती हैं। पेश है बरसात पर उनका यह शेर –

 

“मेरे दिल में वो आये हैं ऐसे,

जैसे आँगन में धूप आती है।”

ख़ुशबीर सिंह ‘शाद’ की गिनती आधुनिक उर्दू शायरी के अग्रणी नौजवान शायरों में होती है। उनके तसुव्वर और अदायगी, दोनों ही कमाल के हैं। धूप पर उनका एक शानदार शेर उन्हें साबित करने के लिये पर्याप्त है –

 

ज़रा ये धूप ढल जाए तो उन का हाल पूछेंगे, 

यहाँ कुछ साए अपने आप को पैकर बताते हैं।” 

 

सिराज मंज़र काकोरवी एक बेहतरीन शायर हैं और उनकी शायरी दिल की गहराई में उतरने का हुनर जानती है। धूप पर उनका एक शानदार शेर –

 

“जैसे कि सर पे जून की तपती हुई हो धूप,

कुछ लोग जी रहे हैं यूँ घर बार के बग़ैर।”

विवेक भटनागर हिंदी ग़ज़लों से उर्दू शायरी की दुनिया में आये हुये नौजवान शायर हैं जो तसव्वुर की आ़खों से  वह देखने के आदी हैं जो आम तौर पर जिस्मानी आँखों से दिखाई नहीं देता है और यही कारण है कि जितनी ताज़गी उनके कलाम में रहती है, अमूमन वह कहीं और नहीं पायी जाती है। धूप पर भी जुदा-जुदा अंदाज़ से वे नयी-नयी तस्वीरें गढ़ते हैं। आइये, धूप पर कुछ खूबसूरत अशआरों के माध्यम से विवेक भटनागर से मिलते हैं –

 

धूप लगती है तो लगने दे, परीशां मत हो,

ये तो अच्छा है कि हिस्से में तेरे दिन आया।”

 

एक ये शेर –

 

धूप से इतना मत परेशां हो,

तेरे हिस्से में दिन है, रात नहीं।” 

 

आईने के साथ धूप की जुगलबंदी का यह दृश्य –

 

छेड़ता था दूर से अक्सर तुम्हें।

आईना भर धूप से छूकर तुम्हें।।

 

और इसी श्रृंखला में यह भी शेर –

 

याद है! जब फ़ासले थे बीच अपने,

आईना-भर धूप से छूता था तुमको।”

 

इस शेर का तो जवाब ही नहीं –

 

इस कड़ी धूप में निकले हो तो मेरी मानो,

ज़ह्न में कोई हवादार शजर रख लेना।”

 

यह भी क़ाबिले ग़ौर शेर है –

 

रास्ता छांव का बताता है,

धूप से तर बतर है चौराहा।”

 

और चलते-चलते –

 

हम तो सूरज हैं बनाए हैं हमीं ने बादल,

अब वो छा जाएं हमीं पर तो शिकायत कैसी।”

अरविंद ‘असर’ भी हिंदी के दरवाज़े से उर्दू शायरी की नगरी में प्रवेश करते हैं। दुष्यन्त कुमार ने हिंदी में अपने कालजयी दीवान ‘साये में धूप’ के माध्यम से ‘ग़ज़ल’ को‌ जहाँ पर स्थापित किया था, वहाँ से ‘ग़ज़ल’ को और आगे ले जाने के मिशन में जिन हिंदी ग़ज़लगो की भूमिकाओं को‌ रेखांकित किया जा सकता है, अरविंद ‘असर’ उनमें से एक हैं। ‘तमस’ उनका चर्चित दीवान है। धूप केवल जलाती ही नहीं है, बल्कि यह जादूगरनी तो हर पल हमारे अपने सायों को छोटा-बड़ा करने का काला जादू भी जानती है। क्या खूबसूरत शेर निकला है उनकी कलम से –

 

वक़्त के साथ हर साए के,             

क़द बदलते रहे धूप में।”

 

और धूप पर एक शेर यह भी –

 

धूप ही धूप जिसकी क़िस्मत हो,       

ज़ुल्फ़, बादल ,घटा वो क्या जाने।”

अनुज ‘अब्र’ ग़ज़ल में नये मौसम का नाम है। जिस तरह एक के बाद एक मौसम स्वाभाविक रूप से आते जाते हैं, अनुज ‘अब्र’ के अशआरों में वही खूबसूरती है। कभी लगता ही नहीं है कि वे अपने अशआर कहने में कोई मेहनत करते हैं बल्कि वे बड़ी आसानी से बहुत गहरे अशआर अनायास कह जाते हैं। यह सामर्थ्य उन्हें आज के युवा शायरों में पहली पंक्ति में स्थापित करता है। धूप पर क्या खूबसूरत और गहरे शेर कहें हैं उन्होंने –

 

मुझको सफर में खौफ़ कड़ी धूप का नहीं, 

साये के बस फरेब से  घबरा रहा हूँ मैं।”

 

और यह शेर –

 

बढ़ न पाओगे शजर की छाँव में,

ऐ  नए  पौधों  तलाशो  धूप  तुम।”

 

और यह भी कमाल का शेर है –

 

हवा, दरिया, समन्दर, धूप, बारिश। 

यही तो फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी का।।”

मंजुल मंज़र लखनऊ के युवा शायर हैं। मंचों पर खासे चर्चित हैं। अलग ही अंदाज़ में धूप को याद करते हुये स्त्री को व्याख्यायित करते हैं –

 

“अपनी माँ का प्रतिरूप हूँ मैं।

सुंदर  हूँ या कि कुरूप हूँ मैं।।

मायके  रहूँ  या पति के घर,

सबके  आँगन की धूप हूँ मैं।।”

राज तिवारी बिल्कुल युवा शायर हैं और मध्य प्रदेश से संबंधित हैं। इनके तेवर यह विश्वास दिलाते हैं कि दिनों दिन निखरती जा रही इनकी शायरी आने वाले समय में बहुत ऊँचाई पर स्थापित होगी और कई नये मुहावरे गढ़ेगी। आइये, देखते हैं कि वे धूप को किस तरह से देखते हैं –

 

वस्ल की छाँव में इसका मुदावा ढूँढ रहे हैं शिद्दत से,

कैसे तो नादान हैं तेरे हिज्र की धूप के मारे लोग।”

 

और यह शेर भी –

 

दिल को तस्कीन बख़्श देता है,

बारहा धूप का निकलना भी।”

अमिताभ दीक्षित बेहतरीन शब्दकार हैं। वे चाहे कहानी लिखें, कविता रचे या अशआर व नज़्में कहें, सबमें उनकी अद्भुत सुगंध समाई रहती है। धूप को शायद ही किसी ने इस रूप में देखा हो –

 

आंगन में कुछ धूप के टुकड़े लेटे हैं,

घर मेरा सूरज का एक बिछौना है।”

 

या उनका यह शेर –

 

अब धूप की रंगत में दिखने लगी है स्याही,

दीवार पे परछाइयां बुनने लगी है घेरा।”

 

एक शेर यह भी –

 

एक नज़र धूप भी बाक़ी न रही,   

खो गए शोख इरादों के दरख़्त।”

 

धूप रंगीन भी है, चमकदार भी, उजली भी और ज़िन्दगी की पर्याय भी है। वहीं यह वक़्त की सख़्ती, कड़ी मेहनत और मुसीबतों की लड़ी की भी मिसाल है। इसके बहुत से अर्थ हैं जो विभिन्न परिस्थितियों में बिल्कुल अलग-अलग चित्र बनाते हैं। जिसके जैसे अनुभव हैं, उसने धूप का वही रुख़ हमारे सामने अपने अशआरों के माध्यम से किया। धूप के बिना भी नहीं रहा जा सकता और मुसलसल धूप के साथ भी नहीं रहा जा सकता। सच कहा जाये तो हम कह सकते हैं कि धूप का आना भी ज़रूरी है और धूप का जाना भी। शायद इसीलिए धूप वास्तव में ‘धूप’ कहलाती है।

 

चलते-चलते इसी ‘धूप’ पर एक शेर मेरा भी आपकी नज़र –

 

“आपका तसव्वर है, सख़्त सर्द मौसम में,

धूप जिस तरह तन पर, गुनगुनी बरसती है।”

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