एज़ाज़ क़मर, डिप्टी एडिटर-ICN
(The Jewish Fairies of Bollywood : A Tribute)
नई दिल्ली। बॉलीवुड मे यहूदी अभिनेत्रियो के आगमन से पहले पुरुष कलाकार महिलाओ की भूमिका भी अदा किया करते थे,क्योकि संभ्रांत/सम्मानित परिवारो की महिलाये फिल्मो मे काम (अभिनय) करना दुष्कर्म (पाप) समझती थी,बल्कि सिर्फ राजा-नवाब के दरबार मे नाचने-गाने वाली नर्तकी-गायिका ही फिल्मो मे काम करने का ज़ोख़िम लेती थी।फिर बॉलीवुड से जुड़े परिवारो की महिलाये अपने परिवार के पुरुष सदस्यो की सहायता के नाम पर फिल्मो मे अभिनय करने लगी,किंतु क्रांति तब आई जब कामकाजी महिलाये अधिक धन कमाने के लालच मे बॉलीवुड की तरफ दौड़ने लगी,क्योकि बॉलीवुड मे काम करने वाली अभिनेत्रियो का वेतन उस समय के मुंबई प्रेसिडेंसी के गवर्नर से भी अधिक होता है।धुंदीराज गोविंद उर्फ दादा साहब फाल्के ने 1913 मे पहली पूर्ण मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई थी,हालांकि दादा साहब फाल्के बॉलीवुड मे सफलता की प्रतिमूर्ति माने जाते है,किंतु वह महिला अभिनेत्रियो की खोज मे “रेड लाइट एरिया” मे भटकते रहे परन्तु किसी वेश्या ने भी उनकी फिल्म मे अभिनय करना स्वीकार नही किया,इसलिये अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उस समय किसी महिला का फिल्मो मे काम करना कितना बुरा माना जाता होगा।
1932 मे जन्मी नादिरा ने 19 वर्ष की आयु मे महबूब ख़ान की “आन” से अपने फिल्मी कैरियर की बड़े धूमधाम से शुरुआत करते हुये एक राजपूत राजकुमारी की भूमिका निभाई थी,राजकपूर की फिल्म “श्री चार सौ बीस (420)” के एक गाने के बाद से तो उनकी लोकप्रियता चरम सीमा पर पहुंच गई और उन्हे “मुड़ मुड़ के न देख गर्ल” ही कहा जाने लगा था,वह मुंबई को बहुत पसंद करती थी और अंत तक उन्होने मुंबई सेंट्रल मे ही रहना पसंद किया फिर 8 जनवरी 2006 को 74 वर्ष की आयु मे इस संसार से विदा हो गई।कई टेली-धारावाहिको मे भी उन्होने भूमिकाएं निभाई जिसमे “थोडा सा आसमन” मे सर्वश्रेष्ठ अभिनय करते हुये उन्होने बॉलीवुड के दिग्गज़ अभिनेता श्रीराम लागू की पत्नी की भूमिका निभाई है,उन्होने लगभग 63 फिल्मो मे काम किया जिसमे “श्री 420″ (1955),”पॉकेटमार” (1956), “पुलिस” (1958),”काला बाज़ार” (1960),”दिल अपना और प्रीत पराई” (1960),”हम कहाँ जा रहे है?” (1966),”सपनो का सौदागर” (1968),”द गुरु” (1969),”इन्साफ का मन्दिर” (1969),”जहाँ प्यार मिले” (1969),”बॉम्बे टॉकीज़” (1970),”इश्क पर ज़ोर नही” (1970),”पाकीज़ा” (1971),”राजा जानी” (1972),”एक नज़र” (1972),”प्यार का रिश्ता” (1973),”इश्क-इश्क-इश्क” (1974),”फ़ासला” (1974),”कहते है मुझको राजा” (1975),”जूली” (1975),”भँवर” (1976),”आशिक हूं बहारो का” (1977), “डार्लिंग डार्लिंग” (1977),”आप की खातिर” (1977),”नौकरी” (1978),”बिन फेरे हम तेरे” (1979),”स्वयंवर” (1980),”आस पास” (1981),”दहशत” (1981),”रास्ते प्यार के” (1982),”अशान्ति” (1982),”एक बार चले आओ” (1983),”तकदीर” (1983),”सागर” (1985),”झूठी शान” (1991),”जोश” (2000) फिल्मे बहुत लोकप्रिय रही है।
सफल फिल्मी कैरियर होने के बावजूद भी उनकी व्यक्तिगत जिंदगी काफी निराशाजनक रही क्योकि उनको दो बार तलाक हुई और वह निसंतान थी तथा उनके दोनो भाई विदेश जाकर बस गये,वह अकेली रहती थी और उनको किताबे पढ़ने का बहुत शौक था इसलिये उन्होने घर मे एक लाइब्रेरी बना रखी थी जिसको अड़ोस-पड़ोस के लोग भी इस्तेमाल किया करते थे,वह ग़रीब बच्चो की सहायता किया करती थी और बुढ़ापे मे हमेशा अपना जन्मदिन ग़रीब बच्चो के साथ ही मनाया करती थी,मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और उनका व्यवहार राजसी (शाही) था किंतु उनके दिल मे ग़रीबो तथा पीड़ितो के लिये बहुत दर्द भरा हुआ था,निसंदेह वह एक महान महिला थी।