गीत-गीता : 15

 

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप  

(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)

द्वितीय अध्याय (सांख्य योग)

(छंद 64-70)

 

श्रीकृष्ण : ( श्लोक 11-53)

 

जो मात्र कर्म करते हैं,

वे कर्म सहित फल खोते।

कटते हैं बंधन सारे,

वे मुक्त चक्र से होते।।(64)

 

हर मोह स्वयं तज जाता,

हो निर्विकार खोता है।

परलोक, लोक के ऊपर,

वैराग्य प्राप्त होता है।।(65)

 

जब अटल, अचल स्थिर हो-

विचलित मति, योग धरेगी।

तब परम् आत्मा निसदिन,

निश्छल संयोग करेगी।।(66)

 

अर्जुन : (श्लोक 54)

 

अर्जुन बोले, हे केशव,

क्या लक्षण स्थिर मति के।

क्या वाणी के लक्षण हैं,

बैठक के, उसकी गति के।।(67)

 

श्रीकृष्ण : (श्लोक 55-72)

 

हे अर्जुन! प्राणी जब निज,

हर काम, चाह खोता है।

संतुष्ट आत्मा बन कर,

वह स्थिर मति होता है।।(68)

 

दुख में भी दुखी नहीं जो,

है विरत काल सुखमय से।

मुनि, क्रोध काम स्थिर मति,

है मुक्त राग से, भय से।।(69)

 

जो विरत नेह से होता,

शुभ और अशुभ से वंचित।

स्थिर मति व्यक्ति न डिगता,

है प्रेम, द्वेष से किंचित।।(70)

क्रमशः

 

विशेष :गीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में  कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

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