तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
हर ‘आँसू’ यानी ‘अश्क’ की अपनी ही कहानी है। चाहे खुशी हो या ग़म, आँसू अपनी दोस्ती हमेशा ही शिद्दत से निभाते हैं। सत्यता यह है कि आँसू के खारे पानी में वह आग है जो दिल पर जमी बर्फ़ को गला देती है और उसके बाद आदमी अपने-आप को हमेशा ही हल्का और तरोताज़ा महसूस करता है।
प्रसिद्ध शायर शहरयार का वास्तविक नाम अख़लाक मोहम्मद खान है। उनका जन्म वर्ष 1936 में बरेली में हुआ तथा वर्ष 2012 में उनका इंतक़ाल हो गया। वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के अध्यक्ष भी रहे। ‘ख्वाब का दर बंद है’, ‘शाम होने वाली है’ और ‘मिलता रहू़ँगा ख्वाब में’ उनके चर्चित दीवान हैं। ‘गमन’, ‘अंजुमन’ व ‘उमराव जान’ जैसी बेहतरीन फ़िल्मों के वे क़ामयाब गीतकार हैं। आँसुओं पर उनका यह बेहतरीन शेर मुलाहिज़ा फ़र्माइये –
“पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात।
यूँ बूँद बूँद उतरी हमारे घरों में रात ।।”
गुलज़ार भारतीय फ़िल्मी दुनिया की प्रसिद्ध हस्ती हैं। इनका वास्तविक नाम संपूर्ण सिंह कालरा है। गुलज़ार का जन्म वर्ष 1936 में हुआ। ‘पिछले पन्ने’, ‘रावी के पार’ एवं ‘आंधी’ इनकी चर्चित किताबें हैं। आँसू पर उनका यह शेर बहुत मशहूर है –
“आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं,
मेहमाँ जो घर में आये तो चुभता नहीं धुआँ।”
बिस्मिल साबरी एक मशहूर शायरा हैं जिनका जन्म वर्ष 1937 में हुआ। ‘यादों की बारिशें’ इनका प्रसिद्ध दीवान है। उनका एक बहुत मशहूर शेर यहाँ रेखांकित करने योग्य हैजो सीधे-सीधे अश्क या आँसू की बात तो नहीं करता है लेकिन इसमें आँसुओं की शानदार चित्रकारी है-
“वो अक्स बन के मिरी चश्म-ए-तर में रहता है।
अजीब शख़्स है, पानी के घर में रहता है ।।”
प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे वर्ष 1940 में जन्मे हैं। आधुनिक उर्दू शायरी आज जिस बुलंदी पर मौजूद है, उसे वह क़द वसीम बरेलवी जैसे थोड़े से बेहद शानदार शायरों के बदौलत ही हासिल हुआ है। बड़े से बड़े मसायल पर हिम्मत से लड़ने वाला इंसान कभी-कभी एक बूँद आँसू से ही टूट जाता है। कितना गहरा शेर है आँसू पर –
“क्या दुख है समंदर को बता भी नहीं सकता।
आँसू की तरह आँख में आ भी नहीं सकता।।
वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए,
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता।”
अनवर शऊर कराची, पाकिस्तान के अग्रणी शायर हैं जिनका जन्म वर्ष 1943 में हुआ। अश्क पर उनका एक खूबसूरत शेर –
“लगी रहती है अश्कों की झड़ी गर्मी हो सर्दी हो,
नहीं रुकती कभी बरसात जब से तुम नहीं आए।”
हकीम नासिर एक मशहूर पाकिस्तानी शायर थे जिनका जन्म वर्ष 1947 में अविभाजित भारत के अजमेर में हुआ था और उनका इंतक़ाल लाहौर, पाकिस्तान में वर्ष 2007 में हुआ। उन्होंने ‘आँसू’ को बक़ायदा रदीफ़ बना कर एक पूरी शानदार ग़ज़ल ही कह दी –
“हाए वो वक़्त-ए-जुदाई के हमारे आँसू।
गिर के दामन पे बने थे जो सितारे आँसू।।
लाल ओ गौहर के ख़ज़ाने हैं ये सारे आँसू,
कोई आँखों से चुरा ले न तुम्हारे आँसू।
उन की आँखों में जो आएँ तो सितारे आँसू,
मेरी आँखों में अगर हूँ तो बिचारे आँसू।
दामन-ए-सब्र भी हाथों से मिरे छूट गया,
अब तो आ पहुँचे हैं पलकों के किनारे आँसू।
आप लिल्लाह मिरी फ़िक्र न कीजे हरगिज़,
आ गए हैं यूँही बस शौक़ के मारे आँसू।
दो घड़ी दर्द ने आँखों में भी रहने न दिया,
हम तो समझे थे बनेंगे ये सहारे आँसू।
तू तो कहता था न रोएँगे कभी तेरे लिए,
आज क्यूँ आ गए पलकों के किनारे आँसू।
आज तक हम को क़लक़ है उसी रुस्वाई का,
बह गए थे जो बिछड़ने पे हमारे आँसू।
मेरे ठहरे हुए अश्कों की हक़ीक़त समझो,
कर रहे हैं किसी तूफ़ाँ के इशारे आँसू।
आज अश्कों पे मिरे तुम को हँसी आती है,
तुम तो कहते थे कभी इन को सितारे आँसू।
इस क़दर ग़म भी न दे कुछ न रहे पास मिरे,
ऐसा लगता है कि बह जाएँगे सारे आँसू।
दिल के जलने का अगर अब भी ये अंदाज़ रहा,
फिर तो बन जाएँगे इक दिन ये शरारे आँसू।
तुम को रिमझिम का नज़ारा जो लगा है अब तक,
हम ने जलते हुए आँखों से गुज़ारे आँसू।
मेरे होंटों को तो जुम्बिश भी न होगी लेकिन,
शिद्दत-ए-ग़म से जो घबरा के पुकारे आँसू।
मेरी फ़रियाद सुनी है न वो दिल मोम हुआ,
यूँही बह बह के मिरे आज ये हारे आँसू।
उन को ‘नासिर’ कभी आँखों से न गिरने देना,
मेरी आँखों में इन्हें लगते हैं प्यारे आँसू।”
अनवर साबरी नामवर शायर रहे हैं। कभी-कभी अनायास किसी खुशी किसी खुशी के मिलने से ज़ुबान ख़ामोश रहती है और बस आँखें ही बोलती हैं। आँसू आँखों की जु़बान है। आँसू पर उनका यह खूबसूरत शेर अपने आप ही बोलता है –
“तुम इसे शिकवा समझकर किस तरह शरमा गये।
मुद्दतों के बाद देखा था तो आँसू आ गये।।”
सुहैल काकोरवी उर्दू के क़द्दावर शायर हैं। वे एक ऐसे साहित्यकार हैं जो कई भाषाओं में और कई विधाओं पर पूरी अधिकारिता से क़लम चलाते हैं। उनके कई मजमुये मंज़र-ए-आम पर आ चुके हैं जिनमें ‘निगाह’, ‘लौ’, ‘आमनामा’, ‘नीला चाँद’, ‘गुलनामा’ एवं “अर्ज़ियात-ए-ग़ालिब’ प्रमुख हैं। आँसू पर उनके कुछ बेहतरीन अशआर देखिये –
“ ये हाल जो उसका हुआ, आँसू हुये हमदम,
मैंने खलिश-ए-दिल को, तबस्सुम में छिपाया।”
और एक यह शेर –
जुदाई के वक़्त मेरी आँखों में आँसुओं का उठा था तूफ़ाँ,
इसी में उसका इरादा डूबा तो आ गयी मेरी जान में जाँ।
मुनव्वर राना का जन्म रायबरेली में वर्ष 1952 में हुआ। वे आधुनिक भारतीय उर्दू शायरी के अग्रणी शायर हैं और उनकी शायरी दरबारी या किसी ख़ास वर्ग की शायरी न होकर आम आदमी से संवाद करती है। वे एक ऐसे शायर हैं जिन्हें हर उम्र के पाठक/ श्रोता पसंद करते हैं। आँसू जब अपनी मजबूरी और विवशता पर निकलते हैं तो वे आग के वाहक होते हैं जिनमें दुनिया को जला कर ख़ाक करने की क्षमता भी होती है। उनका यह शेर देखिये –
“एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है,
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना।”
अब्बास ताबिश लाहौर, पाकिस्तान के नई पीढ़ी के शायर हैं जिनका जन्म वर्ष 1961 में हुआ। वे मंचों के भी लोकप्रिय शायर हैं। कितना खूबसूरत शेर कहा है उन्होंने आँसू पर –
“आँखों तक आ सकी न कभी आँसुओं की लहर,
ये क़ाफ़िला भी नक़्ल-ए-मकानी में खो गया।”
नज़ीर बाक़री प्रसिद्ध भारतीय शायर हैं जो संभल से संबंध रखते हैं। आँसुओं में बहुत ताकत है। किस खूबसूरती से वे यह शेर कहते हैं –
“आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी,
कोई आंसू मेरे दामन पे बिखर जाने दे।”
संजय मिश्र ‘शौक़’ उर्दू शायरी में फ़िराक़, चक़बस्त, कृष्ण बिहारी नूर जैसे ग़ैर मुस्लिम जमात से आते हैं। वर्ष 1967 में लखनऊ में जन्मे ‘शौक़’ एक सिद्धहस्त शायर हैं। ग़ज़ल के साथ रुबाई कहने में भी उनको महारत हासिल है। वे शायरी को वर्तमान के मसायल से भी जोड़ते हैं और उनका यह हुनर ग़ज़ल में हुस्न का एक और पहलू खोल देता है। आँसुओं के साथ आज का समय भी दिखाई देता है उनके इन अशआर में –
“हालात की ज़जीर में फँसने लगे आँसू।
गुजरात कहा था कि बरसने लगे आँसू।।
थी जिनके तबस्सुम से ज़माने में हरारत,
इन फूल से बच्चों को भी डसने लगे आँसू।।”
तश्ना आज़मी एक ऐसे शायर हैं जिनकी शिराओं में खून से ज़्यादा शायरी बहती है। वे जिस मौजू पर भी लिखते हैं, उनके अशआर सीधे दिल पर दस्तक देते हैं। उनकी शायरी में तसव्वुर भी है और तरन्नुम भी। उनके कई मजमुये मंज़र-ए-आम पर हैं और ‘चाँद की गवाही’ विशेष रूप से चर्चित है। आँसुओं के हवाले से उन्होंने जिन खूबसूरत ख़यालों की नुमाइंदगी की है, वह देखते ही बनती है –
“कई सूखे हुए खेतों की हरयाली का ज़ामिन है,
मेरे अश्क़-ए-मुसलसल से फिर इक दरिया का भर जाना।”
और एक यह शेर –
“बजाये आंसुओं के ख़ून बरसाती हैं ये आँखें,
पुराने ज़ख़्म जब इस दिल के अंदर बोल पड़ते हैं।”
और एक शेर यह भी –
“कई दरयाओं का पानी यक़ीनन उससे कम होगा,
मुसीबत जिस क़दर आंसू मिरी आंखों में भरती है।”
डॉ० तारिक क़मर एक चर्चित नौजवान शायर हैं। वर्ष 1975 में जन्मे लखनऊ के तारिक क़मर एक पत्रकार है़ं और साथ ही साथ उर्दू शायरी की दुनिया में अपनी मानीख़ेज़ व संजीदा शायरी के हवाले से बहुत मशहूर हैं। ‘शजर से लिपटी हुई बेल’ उनका चर्चित दीवान है। आँसुओं की बेचारगी की कहानी उनके इस शेर में है –
“हर आदमी वहाँ मसरूफ़ क़हक़हों में था,
ये आँसुओं की कहानी किसे सुनाते हम।”
और ये शेर भी कितना खूबसूरत है –
“मैं कभी तुझ से बे ख़बर न हुआ।
कोई आँसू इधर उधर न हुआ।।”
और यह शेर भी –
“तो मोतियों में न तुलने का रंज ख़त्म हुआ।
किसी की आँख के आँसू ख़रीद लाए मुझे।।”
क्रमशः