कामयाबी किसी भी क़ीमत पर।

मोहम्मद सलीम खान, एसोसिएट एडिटर-आईसीएन
सहसवान/बदायूं। ईश्वर ने इस संसार की सृष्टि रचने के साथ-साथ इस संसार को क़यामत तक चलाने के लिए इस धरती पर मनुष्य को पैदा किया और मनुष्य को पैदा करके उसे संसार में अकेला भटकने के लिए नहीं छोड़ दिया बल्कि उसकी मदद करने और उसकी सेवा करने के लिए हजारों की तादाद में अन्य प्रजातियों को पैदा किया। ईश्वर ने मनुष्य को सबसे अफजल (उत्तम) the most favourite मखलूक (प्रजाति) की श्रेणी में रखा और उसकी सेवा के लिए धरती पर विभिन्न प्रकार की सब्जियां विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधे और उन पर एक से एक स्वादिष्ट फल के साथ-साथ एक से एक स्वादिष्ट व्यंजन हमारी जबान और दिल को तरावट पहुंचाने के लिए इस धरती पर पैदा किए। हमसे बिना कोई कीमत लिए हुए धरती की सबसे बहुमूल्य धरोहर ऑक्सीजन और पानी धनी व्यक्ति से लेकर निर्धन व्यक्ति तक निशुल्क प्रदान की। आज के दौर में मनुष्य यदि सबसे ज्यादा किसी वस्तु की बर्बादी कर रहा है तो वह ईश्वर के द्वारा प्रदान की गई बहुमूल्य धरोहर पेड़ पौधे व पानी है जिसको हम बेरहमी से बर्बाद कर रहे हैं। मानसून लाने व वातावरण में ऑक्सीजन को पैदा करने में पेड़ों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान होता और आज मनुष्य पेड़ों की कटाई (Deforestation) बड़े पैमानेेे पर कर रहा है। जिस स्तर से पेड़ों की कटाई हो रही है उसी स्तर से नए पौधारोपण का कार्य नहीं किया जा रहा है। जिस ईश्वर ने मनुष्य की खातिर चांद और सूरज असंख्य तारे गैलेक्सी की संरचना की वही मनुष्य ईश्वर के द्वारा बनाए गए सबसे खूबसूरत और प्रिय प्रजाति मानव जाति को बरबाद करने की कसम खा चुका है और चंद सिक्कों के लिए तथा सत्ता प्राप्ति की ख़ातिर एक इंसान दूसरे इंसान या यह कहें कि एक भाई दूसरे भाई का गला काटने और उसका घर जलाने के लिए तैयार है।
ईश्वर भी जब सातवें आसमान से हमेंं देखता होगा तो हम पर दुत्कारता होगा और सोचता होगा मैंने कितनी खूबसूरत चीज बनाई थी इंसान और नीचे जाकर यह इंसान कितना वेहशी व दरिंदा हो गया। ईश्वर की कृपा है कि आज भी संसार में ऐसे रहम दिल वह दयाालु प्रवृत्ति के लोग मौजूद हैं जो बिना किसी लालच व स्वार्थ के लोगोंं की सेवा करते हैं और अपने अपने स्तर से लोगों की मदद करते हैं। संसार में ऐसे लोगों की आज भी कमी नहीं है जिनका यह अटूट विश्वास है कि “Service of mankind is the service of God” मनुष्य की सेवा करना ही अल्लाह भगवान या ईश्वर की सेेवा करने के बराबर है। वास्तव में सच पूछो तो इस संसार का निजाम या अगर यह कहे की दुनिया ऐसे ही महान लोगों की वजह से कायम है तो यह कहना गलत ना होगा। ईश्वर ने समय-समय पर इस संसार में ऐसी ऐसी महान आत्माओं को पैदा किया जिन्होंने इस संसार में इंसान को इंसान होने का एहसास कराया। इंसान जिहालत की ऐसी पस्ती में डूब चुका था जब वह घर में पैदा हुई लड़की को जिंदा दफन कर दिया करता था। ईश्वर के द्वारा भेजे गए शांतिदूत हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने मनुष्य जाति पर कृपा करते हुए हुए इंसान को इस हैवानियत की गर्त से बाहर निकाल कर मनुष्य को हैवान से इंसान बनाया सुनने में बड़ा अजीब सा लगता है ऐसा भी दौर गुजरा है जब एक स्त्री के विधवा होने पर उसके पति के साथ ही उसेे जिंदा दिया जाता था। ऐसी कुरीति को खत्म करने के लिए के ईश्ववर ने राजा राममोहन राय जैसे महान समाजसेवी को भेजा।
“तरक्कीयो की दौड़ में उसी का जोर चल गया बनाके अपना रास्ता जो भीड़ से निकल गया।”
इस आधुनिक दौर में इंसान की जिंदगी का केवल एक ही मकसद रह गया है और वह मकसद है पैसा कमाना। दुनिया को पाने की होड़ में इंसान इतना बावला हुआ जा रहा है चाहे रिश्तो का खून हो या बरसों पुरानी मित्रता दांव पर लग जाए उसे कामयाबी चाहिए हर हालत में। कुछ लोगों की तो Ideology ही “success at any cost”है। हमारे बुजुर्ग हमें बताते थे कि जब वे 14 या 15 वर्ष केे रहे होंगे तो हम अपने कजिन के साथ जिसमें चाचा मामा और खाला के भाई बहन शामिल हैं सभी एक दूसरे से अपने हृदय में इतना प्रेम व स्नेह भाव रखते थे कि यदि हम अपनेे मामा के यहां चले जाते थे तो सारा दिन का चाय पानी व भोजन अपने मामा के घर पर ही किया करते थे और यही स्थिति हमारे घर पर हुआ करती थी।एक दूसरे की घर की स्त्रियां इतने प्रेम भाव से खाना खिलाया करती थी और यह सिलसिला कोई एक या 2 दिन का नहीं था बल्कि यह हमारे जीवन का हिस्सा था। गरीबी के उस दौर में भी जब आदमी को भरपेट भोजन ही मुश्किल सेेेे मिल पाता था लोगों के दिलों में एक दूसरे के लिए मोहब्बत का जज्बा इतना कूट-कूट के भरा था कि वह अपन सामने की भोजन की थाली भी घर आए मेहमान को परोस देता था। यह वह दौर था जब लोगों के पास ना ज्यादा पैसा था और ना लोगों केेे पास ज्यादा शिक्षा थी मगर एक दूसरेेे के प्रति अपने हृदय में प्रेम व स्नेह भाव का भंडार था और एक दूसरे की तरक्की से खुश होते थे। इसके विपरीत आज केे इस आधुनिक दौर में जहां इंसान के पास पैसे की भी बहुतात (अधिकता) है, उच्च शिक्षा भी है और आलीशान कोठी नुमा मकान भी है फिर भी व्यक्ति का ह्रदय विशेषकर कुछ महिलाओं का इतना छोटा और मानसिकता इतनी संकीर्ण हो गई है कि घरआए मेहमान को दी गई एक कप चाय का भी हिसाब किताब लगाया जाता है। बात सुनने में कड़वी जरूर है मगर इसकी सत्यता से हम मुंंह नहीं मोड़ सकते। बेचारे कुछ पतियों को तो इस बात की फटकार भी लग जाती है कि रिश्तेदारी और दोस्ती निभाना हो तो बाहर निभाया करो घर पर पंचायत लगाने की कोई जरूरत नहीं है।
प्यारे नबी हजरत मोहम्मद मुस्तफासल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का इरशाद ए गिरामी (कथन)) है कि घर आए मेहमान की खातिर करो। अब हम अपने हृदय का आकलन कर लें कि हमारी वास्तविक स्थिति क्या है? प्यारे नबी हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस शरीफ (प्रवचन) से साबित है कि जो चीज तुम अपने लिए पसंद करो वही चीज तुम अपने भाई के लिए भी पसंद करो।भाई स तात्पर्य यहां पर सगा भाई नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति से है मगर आज क इस आधुनिक दौर में यदि कोई व्यक्ति हमसे शिक्षा या व्यापार के संबंध में कोई परामर्श लेने आता है तो हम उसको मिस गाइड करके सही परामर्श नहीं देते ताकि कहीं वह हमसे आगे ना निकल जाए। इस संसार में हर व्यक्ति अपना मुकद्दर अपने ईश्वर से लिखवा कर लाया है। वह वहीं बनेगा जो ईश्वर ने उसके भाग्य में लिखा होगा। ना तो हमारे चाहनेे से वह कलेक्टर बन सकता है और ना हमारे चाहने से वह चपरासी। इस संसार में किसी भी व्यक्ति को फायदा या नुकसान पहुंचाने के लिए ईश्वर स्वयं आसमान से उतर के जमीन पर नहीं आते हैं यह काम चाहे फायदा पहुंचाने का हो फिर नुकसान पहुचाने का इंसान ही इंसान के लिए करता है। अब यह हमारा मुकद्दर रहा कि हम इस धरती पर ईश्वर की सबसे अफजल और उत्तम प्रजाति मनुष्य को या अन्य प्रजातियों को फायदा पहुंचाने के काम में आते हैं या उसे नुकसान पहुंचाने के काम में आते हैं।
“तकदीर बनाने वाले तूने कमी न की अब किसको क्या मिला यह मुकद्दर की बात है।”
ईश्वर अपने बंदों से कहता है तुम मेरी प्रजा पर रहम करो मैं तुम पर रहम करूंगा ठीक ईश्वर के आदेश के विपरीत इंसान इंसान को सताने और उसकी मजबूरी का फायदा उठाने के मौके की तलाश में रहता है।।आज का समाज में सबसे ज्यादा घिनौना और तुच्छ श्रेणी मैं आने वाला कार्य ब्याज का कारोबार खूब पनप रहा है। लोगों की मजबूरी का नाजायज फायदा उठा कर और परेशानी की हालत में परेशान हाल व्यक्ति का जेवर, मकान या दुकान उच्च ब्याज दर पर गिरवी रखकर मजबूर और लाचार व्यक्ति के खेत, मकान, व दुकान पर कब्जा करके कंगाल बनाने के एक नहीं हजारों उदाहरण मिल जाएंगे। हमारा यह सभ्य समाज इस दानव रूपी ब्याज प्रथा जिसकी कोशिकाएं कैंसर जैसी भयंकर बीमारी की कोशिकाओं से भी ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि कैंसर केवल एक व्यक्ति को मारता है मगर ब्याज प्रथा की कोशिकाएं पूरे पूरे परिवार तथा समाज को निगल लेती है। समझ में नहीं आता कि ऐसा घिनौना कार्य करके हमें बिस्तर पर नींद कैसे आ जाती है। हो सकता है ब्याज लेने वाले व्यक्ति को मेरे यह शब्द उसके हृदय पर तीर की तरह चुभे मगर पल भर के लिए वह कल्पना करें कि मजबूरी की हालत में उच्च ब्याज दर पर पैसा लिया और ब्याज न चुका पाने के कारण खेत या दुकान ब्याज की भेेंट चढ़ गए तो हो सकता है वह मेरी बात को समझ सके। मेरा तात्पर्य किसी के हृदय को कष्ट पहुंचाना हरगिज़ नहीं है। मेरे इस लेख के जरिए यदि एक व्यक्ति ने भी ब्याज न लेने की कसम खा ली तो मैं अपने आपको को बहुत भाग्यशाली समझूंगा।
लेख के अंत में, मैं एक सत्य घटना से अपने पाठकों को अवगत कराना चाहूंगा आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व बनी इसराइल के दौर में एक महिला जिसकी पूरी जिंदगी गुनाहों से भरी हुई थी और पूरा समाज उस महिला को बहुत ही गिरी हुई निगाहों से देखता था। एक दिन वह किसी जगह से गुजर रही थी तो उसकी नजर एक प्यासे कुत्ते पर पड़ी गर्मी के कारण कुत्ता प्यास की वजह से बेहाल था। उस गुनहगार महिला ने दूर कहीं से पानी लाकर उस कुत्ते के मुंह में डाल दिया। पानी पीकर कुत्ते की हालत में सुधार हो गया और वह वहां से चला गया। पूरी कायनात के मालिक जिसको हम अल्लाह या ईश्वर के नाम से जानते हैं उस ईश्वर की रहमत जोश में आई और उस गुनाहगार महिला के इसी अमल(कार्य) पर खुश होकर उसकी जिंदगी के तमाम गुनाह माफ कर दिए और उसे जन्नत में जगह दी। यह घटना बुखारी शरीफ या मुस्लिम शरीफ की हदीस से साबित है। अब जरा कल्पना कीजिए जब एक कुत्ते को पानी पिलाने से नर्क में जाने वाली महिला ईश्वर की कृपा से स्वर्ग में जा सकती है फिर इंसान तो दूसरे इंसान का कलेजा चीर कर उसे नीलाम कर देते हैं। मरने के बाद हमारी जगह कहां होगी यह सोचने का विषय है। हम कितने ही हज कर ले या फिर कितने ही अमरनाथ की यात्राएं कर लें यदि हमारे हृदय में ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा और मनुष्य के प्रति सच्चा स्नेह भाव नहीं है तो यह सब व्यर्थ है।
यह लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार हैं यदि किसी सम्मानित पाठक को लेख में प्रयोग किए गए किसी भी शब्द से कोई कष्ट पहुंचा हो या इस लेख में कोई त्रुटि हो तो उसके लिए लेखक क्षमा चाहता है।

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