“इंडो मुस्लिम-ज्यूज़ फाउंडेशन” (Indo Muslim-Jews Foundation) की स्थापना के द्वारा कब पैगंबर हज़रत याकूब की औलादे एक झंडे (बैनर) के नीचे इकट्ठा होगी?

एज़ाज़ क़मर, डिप्टी एडिटर-ICN
When will the descendants of Prophet Jacob gather under a flag (banner) by the establishment of the “Indo Muslim-Jews Foundation”?
नई दिल्ली। मेरे जन्म के समय पिताजी मौजूद नही थे क्योकि मेरा जन्म नाना के घर हुआ था और वह स्थान मेरी दादी के घर से लगभग 70 किलोमीटर दूर था,लगभग 6 महीने के बाद मेरे पिताजी मुझे और मेरी माता को लेकर अपने घर पहुंचे तो मेरी दादी ने सबसे पहला प्रश्न किया कि हमारे यहां आठवे दिन ख़तना (Circumcize) होती है,और आपने क्यो इतनी देर से बच्चा भेजा है?
फिर दोनो परिवारो मे एक लंबा झगड़ा शुरू हो गया हालांकि मेरे नानाजी ने समझाने की बहुत कोशिश करी कि इस्लाम मे आठवे दिन बालक की खतना करने का कोई आदेश/परंपरा नही है,लेकिन दादी अपनी ज़िद्द पर अड़ी रही कि यह हमारी पूर्वजो की परंपरा है।बचपन मे नाई की दुकान पर बाल कटवाने के लिये अक्सर मुझे मेरी माताजी ही लेकर जाया करती थी और उनका नाई को स्पष्ट आदेश होता था कि वह बच्चे की कल्मो पर उस्तरा ना लगाये,हालांकि मेरी माता जी बहुत ज्ञानी थी किंतु फिर भी उन्हे इसका कारण नही पता था,परन्तु उन्होने अंदाजा लगाकर बताया था कि बच्चे की दाढ़ी जल्दी निकल आने के डर से शायद बुजुर्ग कल्मे काटने को मना करते होगे।
बचपन मे शनिवार के दिन मुझे काले-कुत्ते ने काटा था और संयोगवश अधिकतर मै दुर्घटनाग्रस्त तथा बीमार भी शनिवार के दिन ही होता था,इसलिये शायद माता जी इस दिन उछल-कूद किये बिना घर मे सिर्फ आराम तथा इबादत करने का आदेश देती थी।यह बहुत मामूली बाते है किंतु इस जैसी दर्जनभर पारिवारिक परंपराएं थी जिनका मुझे और मेरे माता-पिता को कोई औचित्य  समझ मे नही आता था,किंतु जब लगभग 30 साल का हो गया तो मुझे पता चला कि यह यहूदियो की परंपराएं है परंतु साहित्य उपलब्ध ना होने तथा इंटरनेट के शुरुआती दौर मे होने के कारण मै इस विषय पर ज़्यादा ज्ञान प्राप्त नही कर सका,लेकिन मन मे बार-बार प्रश्न आते थे कि क्यो पठानो के क़बीलो (Pashtoon Tribes) के नाम यहूदियो के क़बीलो (Lost ten Tribes of Jews) का अपभ्रंश (Rebbani/Reuven, Levoni/Levi, Afridi/Ephraim, Yusufzai/Yosef, Ghaghi/Gad) लगते है?
क्यो पठानो के अतिरिक्त प्राचीन यहूदियो से इतनी अधिक समानताएं तथा संभावनाएं किसी दूसरी क़ौम/क़बीलो मे नही मिलती है?
बीसवीं शताब्दी के अंतिम वर्षो मे कुछ इज़रायली विशेषज्ञ वेस्टर्न और सेंट्रल यू.पी. मे हम पठानो (विशेषकर अफ्रीदी क़बीले) से मिलने और डी०एन०ए० सैंपल लेने के लिये आने लगे,तब हमे पता चला कि हमारे पूर्वज इज़रायली नस्ल अर्थात यहूदी थे वरना हम अपने आपको रघुवंशी क्षत्रिय मानते थे,फिर यह सिलसिला आगे बढ़ता चला गया और इतना आगे बढ़ गया कि यहूदियो की धार्मिक तथा सांस्कृतिक अंतरराष्ट्रीय पर्यटक संस्थाओ (Shai Bar Ilan Geographical Tours तथा Eretz Ahavati Nature Tours of Israel) ने नवम्बर 2008 के दौरे के लिये प्रस्तावित स्थलो की सूची मे हमारे क्षेत्रो को भी शामिल कर लिया।
अब तक फालतू माने जाने वाली इस चर्चा को तार्किक आधार देते हुये लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधकर्ता “नवरस जात अफरीदी” (Navras Jaat Afridi) ने एक इ-किताब लिखी जिसका शीर्षक “द इंडियन ज्यूरी एंड सेल्फ प्रोफेस्ड ‘लॉस्ट ट्राइब्स ऑफ़ इज़रायल इन इंडिया” (The Indian Jewry & The Self-professed ‘Lost Tribes of Israel in India’) था और उन्होने अपने अनुसंधान को उच्च स्तरीय बनाने के लिये अंतरराष्ट्रीय विद्वानो ( Professor Tudor Parfitt, director of the Centre of Jewish Studies, London University) तथा (Dr Yulia Egorova, a linguist and historian from Russia)} की सहायता लेते हुये मलिहाबाद क्षेत्र से 50 पुरुषो के डी०एन०ए० सैंपल भी इकट्ठे किये थे।
शताब्दियो से पठान अपने आपको बने-इज़रायल (यहूदियो के वंशज) का अंग मानते है और आपस मे चार वर्गो {(सरबानी/Sarbani), (बैतानी /Baitani), (ग़रग़श्ती/Gharghashti) और (करलानी/Karlani)} मे बंटे हुये है जिन वर्गो को सहाबा (Companion) क़ैस अब्दुल रशीद के चार बेटो के नाम से बनाया गया है, फिर इन गुटो (वर्गो) मे 100 से अधिक क़बीले (Tribe) और 200 से अधिक उपक़बीले (ख़ेल/Clan) शामिल किये जाते है।
यद्यपि पठान 12 वीं शताब्दी से ही उत्तर प्रदेश मे आकर बसने लगे थे किंतु 17 वीं शताब्दी मे मुगलो ने रोहिल्ला क्षेत्र से लाकर पठानो को शाहजहांपुर मे बसा दिया,जिसकी एक शाखा कायमगंज (फर्रुख़ाबाद) की तरफ बसने (निवास) को चली गई और फिर मलिहाबाद, अलीगढ़, संभल, बुलंदशहर जैसे क्षेत्रो मे बस गई।
दूसरी शाखा बरेली गई और रोहिलखंड राज्य की स्थापना करी,किंतु रोहिलखंड राज्य के पतन के बाद “रियासत रामपुर” की स्थापना हुई,जोकि भारत मे पठानो की संस्कृति का केंद्र बन गया और आज तक सबसे प्रभावशाली पठानो का क्षेत्र बना हुआ है।
मेरे नाना औरकज़ई और दादा यूसुफज़ई क़बीले से थे जोकि अपने आपको पैगंबर हज़रत यूसुफ का वंशज मानता है,चूँकि हज़रत यूसुफ सबसे सुंदर पैगंबर थे,इसलिये मधुबाला की सुंदरता उनके युसुफ़ज़ई होने का प्रमाण-पत्र मानी जाती है।
मै फरवरी 2020 मे एक टी०वी० चैनल पर परिचर्चा मे भाग लेने के लिये गया तो स्टूडियो मे प्रवेश से पहले टच-अप (लाइट मेकअप) कराने के लिये मेकअप रूम मे गया जिसके मेकअप-मैन से मेरे दोस्ताना संबंध थे,फिर जब मेकअप के दौरान उन्होने मेरे चेहरे की प्रशंसा करते हुये कहा कि आपका चेहरा फोटोजनिक है और यह मधुबाला जी से मिलता है,तब बराबर कुर्सी पर बैठी एक मुस्लिम न्यूज़ एंकर ज़ोर से हंस पड़ी।हालांकि मुझे सम्मान देने के चक्कर मे वह यह भूल गये कि मेरी तुलना किसी पुरुष कलाकार से करनी चाहिये थी,लेकिन मुझे मेकअप-मैन की बात बुरी नही लगी क्योकि मधुबाला जी सुंदरता का प्रतीक है और उन्होने उनसे मेरी तुलना करके मुझे सम्मानित किया था।
मै मुंबई मे नानी-मौसी के साथ नागपाड़ा के थर्ड पीरखान स्ट्रीट पर रहता था और हमारे पड़ोस मे सासून स्कूल था,इसलिये बॉलीवुड अभिनेत्री नादिरा जैसे सम्मानित यहूदियो से मिलना-जुलना एक सामान्य बात थी और दूसरे भारतीयो की तरह वह यहूदी भी हमारे साथ मित्रवत व्यवहार करते थे।फलस्तीनी युवको की गर्दन काटकर मृतक के मुंह मे सिगरेट देने वाले इज़रायली सैनिको के वीडियो जब टी०वी० पर देखता हूं,तब मै चाहकर भी अपने प्यारे पुराने यहूदी पड़ोसियो से उन दरिंदे-हैवान इज़रायली सैनिको की तुलना नही कर सकता हूँ।
दशको से समाज सेवा मे सक्रिय परिवार से संबंध रखने के कारण मैने सोचा कि मुसलमानो और यहूदियो मे दोस्ती बढ़ाई जाये,इसलिये मैने अपने एक मौसेरे भाई फिरोज़ बख़्त अहमद (भारत-रत्न मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के पौत्र) से इस विषय पर चर्चा करी तो उन्होने मुझे पूरी सहायता का वायदा किया।
हमने फैसला किया “इंडो मुस्लिम-ज्यूज़ फाउंडेशन” (Indo Muslim-Jews Foundation) के नाम से संस्था बनाकर काम किया जाये,लेकिन कई वर्ष गुज़र जाने के बावजूद भी हम एक कदम आगे बढ़ाने मे कामयाब नही हुये, क्योकि भारतीय-उपमहाद्वीप के मुसलमानो का यहूदियो से दोस्ती करने का कोई मूड (इरादा) नही है।
यहूदियो से दोस्ती ना करने के लिये कुछ तर्क दिये जाते है :-
(1) आर.एस.एस. की तरह वह सिर्फ इस्लाम के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिये मुसलमानो से दोस्ती करते है और अगर कोई मुसलमान सीमा से अधिक इस्तेमाल होने से इंकार तक दे तो उसे दूध मे मक्खी की तरह निकालकर फेक देते है फिर उसका हाल धोबी के कुत्ते की तरह होता है “ना घर का और ना घाट का”  अर्थात “यूज़ एंड थ्रो” की नीति अपनाते है।
(2) उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य अपने “मसीहा” (Messiah) के दर्शन करना है, जिसके संसार मे आने के लिये पहली शर्त (अवस्था/परिस्थिति) के अनुसार विश्वव्यापी हिंसा (मानव-जाति की लगभग समाप्ति) होना ज़रूरी है, इसलिये यहूदी मसीहा (मोसाया) के आगमन के लिये अनुकूल वातावरण बनाने के चक्कर मे विश्वयुद्ध कराकर मानव-जाति को तबाह कर देना चाहते है।
(3) मसीहा के आने के लिये दूसरी शर्त (Condition) के अनुसार “हेकल-ए-सुलेमानी मंदिर” (Haikel-Solomon or Third Temple) का निर्माण होना ज़रूरी है जो कि मुसलमानो के तीसरे धार्मिक स्थल “बैतुल मुकद्दस” (मस्जिद अल अक्सा) को ध्वस्त करके ही बनाया जा सकता है।
(4) मसीहा के आने के लिये तीसरी शर्त के अनुसार “ग्रेटर इज़रायल” (Greater Israel or Promised Land) का निर्माण होना ज़रूरी है जोकि मुस्लिम देशो(टर्की,जॉर्डन, सीरिया, मिस्र, सूडान, लबनान, इराक और दूसरे अरब देशो के क्षेत्रो) पर कब्ज़ा करके ही बनाया जा सकता है।
(5) मसीहा के आने के लिये चौथी शर्त के अनुसार ताबूत-ए-सकीना (Ark of covenant) को खोजना भी ज़रूरी है जिसके किसी मुस्लिम धार्मिक स्थल के नीचे गढ़े (छिपे) होने का अंदेशा है,इसलिये इसको खोजने के लिये पवित्र मुस्लिम-स्थलो को ध्वस्त करना ज़रूरी है।हालांकि मसीहा (Messiah) के आने की पांचवी शर्त (Condition) के अनुसार पैगंबर दाऊद का सिहासन (Stone of Scone) चाहिये जोकि ब्रिटिश राजघराने के पास मौजूद है और लाल गाय (Heifer) की कुर्बानी देना होगी जिसे क्लोनिंग (Cloning) करके पैदा कर लिया गया है।
(6) इज़रायल के 99% नागरिक अश्कनाज़ी (Ashkenazi Jews) है और वह ओरिएंटल ज्यूज़ (Oriental Jews) नही है जो हमारे डी.एन.ए. (DNA) वाले भाई है।
मुस्लिम-बुद्धिजीवियो ने प्रश्न किया कि “क्या राममंदिर के मामले मे हिंदुत्वादी पीछे हट गये थे?
क्या राममंदिर-निर्माण का उदाहरण सामने होने के बावजूद भी यहूदी अपने धार्मिक एजेंडे को त्याग देगे?
जब दूसरे धर्गुरुओ को समझाया नही जा सकता तो फिर मुसलमानो को ही अहिंसा और सद्भावना का पाठ क्यो पढ़ाया जाता है?
यू०ए०ई० और इज़रायल के बीच मे कूटनीतिक संबंधो की शुरुआत को लेकर समझौता मुसलमानो के शक (संदेह) को मज़बूत करता है,क्योकि यह संबंध डराकर और ब्लैकमेल करके बनाये गये है।
सारी दुनिया से टैक्स चोरी का पैसा दुबई मे लाकर निवेश किया जाता है और इस धन का खाड़ी के देशो के आर्थिक विकास मे महत्वपूर्ण योगदान है,इसलिये इज़रायल के इशारे पर अमेरिका ने य०ूए०ई० को एफ.टी.ए.एफ. (FTAF) की सूची मे डाल दिया,ताकि उसे ब्लैक-लिस्ट करके आर्थिक रूप से कंगाल किया जा सके।
पिछले एक वर्ष से ईरान और अरब देशो मे किसी अनजान हथियार से हमला करके आग लगाई जा रही है, जिससे मुस्लिम देशो के शासक बुरी तरह से डरे हुये इसलिये खाड़ी के शासक कोई खतरा मोल नही लेना चाहते है,क्योकि वह जानते है कि यह हमले झूठ बोलकर अमरीका और इज़रायल के द्वारा ही किये जा रहे है।
कोरोना के बाद तेल की गिरती क़ीमतो और बढ़ती बेरोज़गारी से अरब देशो मे बग़ावत की दूसरी लहर (अरब स्प्रिंग -2) आने की प्रबल संभावना बनी हुई है,चूँकि अरब देश इस अरब-स्प्रिंग (Arab Spring) को फिफ्थ जनरेशन वार (Hybrid War) का हिस्सा मानते है,इसलिये भयभीत अरब इज़रायल से पंगा नही लेना चाहते है।
चौथा कारण रशिया के ऊपर विश्वास का ना होना है क्योकि मुस्लिम देश रशिया को एक विश्वासघाती देश मानते है, हालांकि चीन की छवि मुस्लिम देशो मे बहुत अच्छी है किंतु वह अभी सैनिक महाशक्ति नही बना है,इसलिये जब तक चीन महाशक्ति नही बन जाता तब तक अरब-देश अमेरिका के साथ रहना ही पसंद करेगे परन्तु उचित समय पर पाला बदलकर चीन के साथ आ जायेगे।
यहूदियो से डी०एन०ए० (DNA) का रिश्ता रखने वाले मेरे जैसे यहूदी-नस्ल के मुसलमान चाहते है कि वह अपने यहूदी भाइयो से सामाजिक तथा पारिवारिक रिश्ता बनाये, किंतु यह रिश्ता छल-कपट के आधार पर नही होना चाहिये, बल्कि रिश्ता ईमानदारी और सच्ची मोहब्बत से बनाना चाहिए।
हम अपने यहूदी भाइयो से रिश्ता बनाने के लिये तैयार है,लेकिन अब गेंद उनके पाले मे है,क्योकि यह अब यहूदियो के ऊपर निर्भर करता है कि क्या वह हमारी तरह सोचते हुये ग्रेटर इज़रायल और हेकल-ए-सुलेमानी को भूलकर आगे बढ़ते हुये इस दोस्ती को कुबूल करते है?
हम यहूदी भाइयो के जवाब का इंतेज़ार कर रहे है ताकि “इंडो मुस्लिम-ज्यूज़ फाउंडेशन” (Indo Muslim-Jews Foundation) की स्थापना करके  पैगंबर हज़रत याकूब की संतानो को एक छत के नीचे इकट्ठा किया जा सके।
एज़ाज़ क़मर (रक्षा, विदेश और राजनीतिक विश्लेषक)

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