उर्दू शायरी में ‘सच’ : 2

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप

सच एक बहुत बड़ा तिलिस्म है। कहा जाता है कि सच बहुत कड़ुवा होता है लेकिन उसका परिणाम मीठा होता है। यह भी कहा जाता है कि सच अर्थात सत्य की सदैव जीत होती है। ‘सच को परेशान किया जा सकता है, पराजित नहीं’ – एक कहावत यह भी है। कई धर्म ग्रंथ कहते हैं कि सच शाश्वत है तो कई ऐसी धार्मिक विचारधाराएँ भी हैं जो यह कहती हैं कि सच कभी भी अपरिवर्तनशील नहीं हो सकता।

बशीर बद्र उर्दू साहित्य के उन चंद शायरों में हैं जिनपर उर्दू शायरी खुद नाज़ कर सकती है। उनका जन्म वर्ष 1933 में हुआ। मिर्ज़ा ग़ालिब के बाद वही एक ऐसे शायर हैं जिनके सबसे ज़्यादा अशआर आम आदमी की ज़ुबान पर चढ़े। सच पर उनका यह शेर तो आज आम हिंदुस्तानी की भाषा का मुहावरा बन गया है –

 

जी बहुत चाहता है सच बोलें, 

क्या करें हौसला नहीं होता।” 

ज़फ़र इक़बाल वर्ष 1933 में अविभाजित भारत में जन्मे और वर्तमान में वे पाकिस्तान के लाहौर शहर में रहते हैं। वे आधुनिक ग़ज़ल के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उन्होंने उर्दू शायरी में विभिन्न प्रयोग किये और पुरातन शायरी में एक नया संसार घोल दिया। ‘आब-ए-रवाँ’, ‘अब तक’ और ‘ग़ुबार आलूद सिम्तों का शुमार’ उनके चर्चित दीवान हैं। सच को सच कहना अगर हिम्मत का काम है तो झूठ को सच कहना कला है। यह शेर तो देखिये- 

 

झूठ बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर ‘ज़फ़र’ 

आदमी को साहब-ए-किरदार होना चाहिए।” 

अहमद मुश्ताक़ का जन्म वर्ष 1933 में हुआ। वे पाकिस्तान के सबसे विख्यात और प्रतिष्ठित आधुनिक शायरों में से एक हैं और अपनी नव-क्लासिकी लय के लिए प्रसिद्ध हैं। वर्तमान में वे संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हैं। क्या खूबसूरत शेर कहा है इश्क़ पर और सच पर –

 

इश्क़ में कौन बता सकता है। 

किस ने किस से सच बोला है।।”

हफ़ीज़ बनारसी सन् 1933 में बनारस में जन्मे और सन् 2008 में उनका इंतक़ाल हुआ। ‘बादा-ए-इरफ़ान’, ‘ग़ज़लान’, ‘क़ौल-ओ-क़सम’ और ‘सफ़ीर-ए-सहर-ए-दिल’ उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। हक़ीक़त के हवाले से सच्चाई की परिभाषा गढ़ता उनका यह खूबसूरत शेर –

 

हर हक़ीक़त है एक हुस्न हफ़ीज़,

और हर हुस्न इक हक़ीक़त है।”

फ़ुज़ैल जाफ़री का जन्म वर्ष 1936 में हुआ तथा मृत्यु 2018 में। वे मुबंई से वाबस्ता थे। उनकी शिनाख़्त एक बेहतरीन शायर के रूप में है। उनके अनेक दीवान प्रकाशित हुये जिनमें ‘अफ़सोस-ए-हासिल’, ‘चट्टान और पानी’, ‘सहरा में लफ़्ज़’ मुख्य हैं। सच को मीठा ज़हर समझते है फ़ुज़ैल जाफ़री और कितनी खूबसूरती से अपनी बात कहते हैं –

 

ज़हर मीठा हो तो पीने में मज़ा आता है, 

बात सच कहिए मगर यूँ कि हक़ीक़त न लगे।” 

 

आबिद अदीब वर्ष 1937 में जन्मे एक भारतीय शायर हैं। ‘शुवाज़’ उनका मशहूर दीवान है। सच के तरफ़दारों को ज़िन्दगी में बहुत कुछ खोना पड़ता है। कभी-कभी तो सच बोलने का पागलपन उन्हें मौत के अंजाम तक भी पहुँचा देता है। इसीलिए इस झूठी दुनिया में सबसे ख़तरनाक काम सच बोलना ही है। क्या खूबसूरत शेर कहा है उन्होंने –

 

जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहे, 

वो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं।” 

सच कठोर होता है और कभी-कभी तो वह इतना ज़ालिम भी होता है कि इंसान के हौसले ही पस्त कर देता है। निदा फ़ाज़ली उर्दू शायरी के उस पायदान पर खड़े हैं जहाँ वे सारी दुनिया को दिखाई देते हैं। उनका जन्म वर्ष 1938 में हुआ था और उनकी मृत्यु वर्ष 2016 में। वे दिल्ली के बाशिंदे थे। ‘खोया हुआ सा कुछ’ और ‘चेहरे’ उनकी मशहूर किताबें हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2013 में उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिये उन्हें पद्मश्री एवार्ड से सम्मानित किया। उनका कहना है कि सच को भी अपनी हद में रहना चाहिए। क्या खूबसूरत शेर है –

 

इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे, 

रौशनी ख़त्म न कर, आगे अँधेरा होगा।”

वसीम बरेलवी आज खुद में शायरी की जीती जागती मिसाल हैं। वर्ष 1940 में जन्मे प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी ने उर्दू साहित्य को बहुत कुछ दिया है और उर्दू शायरी के हलक़े में उनका नाम बड़े ऐहतराम और मोहब्बत से लिया जाता है। आज के बाज़ार में सच पीतल है और झूठ सोना। कितना खूबसूरत शेर कहा है उन्होंने –

 

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए, 

और मैं था कि सच बोलता रह गया।”

 

और एक शेर यह भी –

 

वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से,

मैं ऐतबार न करता तो और क्या करता।”

 

और यह भी –

 

झूट के आगे पीछे दरिया चलते हैं,

सच बोला तो प्यासा मारा जाएगा।” 

कफ़ील आज़र अमरोहवी का जन्म वर्ष 1940 में हुआ। वे मुंबई के रहने वाले हैं। इनकी एक नज़्म ‘बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी’ को जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ देकर हर आदमी तक पहुंचा दिया। ‘धूप के दरीचे’ इनका मशहूर दीवान है। उनका यह शेर देखिये –

 

एक इक बात में सच्चाई है उस की लेकिन, 

अपने वादों से मुकर जाने को जी चाहता है।”

इफ़्तिख़ार आरिफ़ सन् 1940 में जन्मे और भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गये। वे पाकिस्तान के आधुनिक शायरों में अग्रणी हैं। ‘हर्फ़-ए-बारियाब’, ‘जहान-ए-मालूम’ और ‘किताब-ए-दिल-ओ-दुनिया’ उनकी मशहूर किताबें हैं। सच पर उनका यह शेर देखिये –

 

मैं उससे झूठ भी बोलूँ तो मुझसे सच बोले,

मेरे मिज़ाज के सब मौसमों का साथी हो।”

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर वर्ष 1941 में पैदा हुये और पेशावर, पाकिस्तान में वर्ष 1999 में उनकी मृत्यु हुई। वे पाकिस्तान के प्रमुख आधुनिक शायरों में से एक थे। उनके दीवान ‘आठवाँ आसमान भी नीला है’ और ‘तसलसुल’ चर्चित हैं। आज का दौर झूठ और बेवफ़ाई का दौर है। इसी पहलू से उभरा यह शेर वाकई शानदार है –

 

वफ़ा के शहर में अब लोग झूठ बोलते हैं,

तू आ रहा है मगर, सच को मानता है तो आ।”

 

एहतराम इस्लाम का जन्म वर्ष 1949 में इलाहाबाद में हुआ। वे प्रसिद्ध शायर हैं और ‘समंदर शोले के’ उनकी चर्चित पुस्तक है। सच पर सिद्धांत व प्रयोग दो बिल्कुल अलग चीज़ें हैं। सच कि सच्चाई खोलता हुआ यह खूबसूरत शेर देखिये –

 

सब ने पढ़ रक्खा था सच की जीत होती है मगर,

था भरोसा किस को सच पर सच को सच कहता तो कौन।”

 

और एक शेर यह भी –

 

आदमी तो ख़ैर से बस्ती में मिलते ही न थे,

देवता थे सो थे पत्थर सच को सच कहता तो कौन।”

 

सुहैल काकोरवी उर्दू शायरी के उस मक़ाम पर हैं जहाँ पहुँच पाने की तमन्ना पूरी करने में एक शायर की कई ज़िंदगियाँ भी कम पड़ती हैं। उनका जन्म वर्ष 1950 में लखनऊ में हुआ और वर्तमान में वे उर्दू शायरी में पूरे विश्व में लखनऊ का प्रतिनिधित्व करते हैं। सच पर उनके कुछ शानदार अशआर देखते हैं –

 

ख़ुलूस-ओ-मेहर-ओ-मोहब्बत की इंतहा हूँ मैं।

मेरे वजूद में सब सच है, आईना हूँ मैं।।”

 

और एक यह शेर –

 

यूँ ही अपने को मैं बहला रहा हूँ।

अकेलेपन का सच झुठला रहा हूँ।।”

क्रमशः

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