उर्दू शायरी में ‘आसमान’ : 3

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप

आखिर यह आसमान है क्या? सुनते हैं – दिन को नीला, रात को काला और कभी-कभी अपनी ही मनमर्ज़ी से रंग बदलने वाला यह आसमान सिर्फ़ एक फ़रेब भर है

विज्ञान कहता है कि आसमान, आकाश, नभ, गगन, अंबर, फ़लक, अर्श या आप उसे जो भी कहते हैं, शून्य मात्र है। शून्य अर्थात ज़ीरो अर्थात कुछ भी नहीं। शून्य का कहीं कोई अस्तित्व नहीं होता लेकिन हमें तो सर के ऊपर इतना बड़ा आसमान दिखाई देता है जिसका न कोई ओर है न कोई छोर। जो दिखता है, वह है नहीं और जो है नहीं, वह हमेशा दिखता है – आखिर यह कैसी पहेली है? जो चीज़ है ही नहीं- क्या वह इतनी खूबसूरत हो सकती है? भोर का आसमान, प्रातः काल का आसमान, दोपहर का अासमान, सूरज के डूबने के समय का आसमान, रात में तारों से भरा आसमान, बारिश के समय का बादलों से भरा आसमान, सर्दियों में कोहरे में ठिठुरता आसमान – इतने अलग-अलग रूप – इतने अलग-अलग रंग – और उस पर यह स्थापित तथ्य कि आसमान तो है ही नहीं।

चलिये, मान लिया कि आसमान कुछ भी नहीं तो हमारी दुआयें कहाँ जाती हैं, हमारी प्रार्थनाओं का गंतव्य क्या है और … और हम स्वयं भी इस धरती पर अपना कार्यकाल पूरा करके कहाँ चले जाते हैं? आखिर यह जन्नत कहाँ है, यह स्वर्ग किधर है और ये सूरज, चाँद सितारे किसके दामन में टँके हुये हैं? हमारे माज़ी की तस्वीरें कौन चुरा ले जाता है, हमारी आवाज़ें कहाँ चली जाती हैं, समय किधर से आता है और फिर किधर चला जाता है? आखिर हमारी दुनिया में ज़िन्दगी कहाँ से आती है? आखिर हमारी मौत हमारी दुनिया से हमें कहाँ ले जाती है?

एक आसमान न होने से ढेर सारे सवाल खड़े हो जाते हैं। कितनी जटिलताएं हमें चिढ़ाने लगती हैं और बुद्धि और विवेक पर कितने ही भ्रम की घटायें छा जाती है। कितना आसान होता है कि जब कुछ समझ से परे हो तो उसे आसमानी शय करार दे दिया जाये और अपना पल्ला झाड़ लिया जाये लेकिन आसमान न होने से तो कुछ भी संभव नहीं।

मुझे तो लगता हेै कि आसमान अवश्य है वरना हमारे हज़ारों शायरों कवियों ने उसके सदके न किये होते, उसकी शान में क़सीदे न पढ़े होते। न जाने क्या-क्या देखा है उन्होंने आसमान में। हमारा ईश्वर, हमारा खुदा भी आसमान में ही है, हमारी आशायें और हमारी उम्मीदें भी आसमान में ही हैं और हमारी बरक़त और हमारे लिये क़हर, दोनों आसमान से ही आते हैं। कभी आपने सोचा है – जब आसमान नहीं होगा तो हमारी धरती कितनी अकेली रह जायेगी? हमारी दुनिया की छत हमेशा के लिये खो जायेगी और हमारे सिर कितने नंगे रह जायेंगे?

कितना दिलचस्प होगा उर्दू शायरी के यूनिकोन घोड़े से आसमान तक पहुँचना और शायरों की निगाह से वो हसीन मंज़र देखना जो हमारी हक़ीक़ी नज़र से देख पाना हर्गिज़ नामुमकिन है। तो आइये, आपके साथ शुरू करते हैं दुनिया का यह सबसे खूबसूरत सफ़र – उर्दू शायरी में ‘आसमान’।

आज़ाद गुलाटी नयी ग़ज़ल के महत्वपूर्ण शायर हैं। वे पंजाब के जिला मियाँवाली के क़स्बे काला बाग़ में 15 जुलाई, 1935 में पैदा हुए। अंग्रेज़ी साहित्य में पंजाब यूनिवर्सिटी से एम. ए. किया और पठन-पाठन के व्यवसाय से जुड़ गये। ख़ालसा कालेज जिला लुधियाना में अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर रहे। आज़ाद गुलाटी के कई काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें आग़ौश-ओ-ख़याल’, ‘अज़्कार’, ‘जिस्मों का बनबास’, ‘तिकोन का कर्ब’, ‘दश्त-ए-सदा’, ‘नये मौसमों के गुलाब’, ‘नयी गज़लें’, ‘आब-ए-सराबप्रमुख हैं। ख़यालों की चित्रकारी करता यह खूबसूरत शेर आपको बहुत देर तक सोचने को मजबूर कर सकता है –

 

आसमाँ एक सुलगता हुआ सहरा है जहाँ

ढूँढता फिरता है ख़ुद अपना ही साया सूरज।” 


अनवर मसूद का जन्म 8 नवंबर, 1935 को गुजरात, भारत में हुआ तथा देश के विभाजन के बाद वे पाकिस्तान चले गये। वे अपनी मज़ाहिया शायरी के हवाले से बेहतर जाने जाते हैं। वे उर्दू, पंजाबी व फ़ारसी के साहित्यकार हैं। “दीवार-ए-गिरयाँ‘, ‘मेला अँखियों  दाएवं रोज़-ब-रोज़उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। आसमान के बारे में उनका ख़याल देखिये –

 

आसमाँ अपने इरादों में मगन है लेकिन

आदमी अपने ख़यालात लिए फिरता है।” 


हकीम मंज़ूर का जन्म 17 जनवरी, 1937 में श्रीनगर में हुआ और उनकी मृत्यु 21 दिसंबर, 2006 को हुई। उन्होंने ने उर्दू  को लगभग पंद्रह पुस्तकें दीं जिनमें ना तमाम‘, ‘बर्फ़ रुतों की आगऔर लहू लम्स चिनारप्रमुख हैं। यह दुनिया और यह ज़िंदगी जैसी आज चल रही है, वैसी ही कल भी चलेगी। आसमान के हवाले से यही संदेश है उनका इस खूबसूरत शेर में –

 

गिरेगी कल भी यही धूप और यही शबनम

इस आसमाँ से नहीं और कुछ उतरने का।” 


निदा फ़ाज़ली उर्दू शायरी के अत्यंत लोकप्रिय शायर हैं। उनका जन्म 12 अक्टूबर, 1938 को दिल्ली में हुआ और उनका इंतक़ाल 8 फरवरी, 2016 को मुंबई में हुआ। चेहरेऔर खोया हुआ सा कुछउनके मशहूर पुस्तकें हैं। उर्दू की जदीद शायरी में दोहों का शानदार प्रयोग भी उनके हिस्से में जाता है। वे साहित्य अकादमी ऐवार्ड व पद्मश्री जैसे सम्मानों से सम्मानित थे। दुनिया में कुछ भी मुकम्मल नहीं है। हर शख़्स की अपनी सीमायें हैं, अपने दायरे हैं। किसी की ज़िन्दगी  में प्यार है तो किसी की ज़िन्दगी में पैसा। किसी के पास सिर्फ़  कमरतोड़ मेहनत है तो किसी के पास राजसी तक़दीर।  आदमी को इसी चाहतऔर हासिलके बीच ही ज़िंदा रहना होता है। क्या खूबसूरत शेर कहा है –

 

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता।

कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता ॥”



उबैदुल्लाह अलीम का जन्म 12 जून, 1939 को भोपाल  में हुआ और 18 मई, 1998 को उनका निधन कराची, पाकिस्तान में हुआ। पाकिस्तान  के प्रमुख आधुनिक शायरों में उनका शुमार किया जाता है।चाँद चेहरा सितारा‘, ‘ख़्वाब ही ख़्वाबऔर तेज़ हवा और तनहा फूलउनके प्रसिद्ध दीवान हैं। आसमान उनकी नज़रों में ज़मीं की हिफ़ाज़त में लगा उसका मददगार है और जब जब हमारी दुनिया में अज़ाब आते हैं,आसमान से हमारे लिये खुदाई मदद भी आती है। आसमान पर उनका यह शेर देखिये –

ज़मीन जब भी हुई कर्बला हमारे लिए। 

तो आसमान से उतरा ख़ुदा हमारे लिए॥” 


वसीम बरेलवी आज खुद में शायरी की जीती जागती मिसाल हैं। 8 फरवरी 1940 में जन्मे प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी का वास्तविक नाम ज़ाहिद हुसैन है। उन्होंने उर्दू साहित्य को बहुत कुछ दिया है और उर्दू शायरी के हलक़े में उनका नाम बड़े ऐहतराम और मोहब्बत से लिया जाता है। ख़्वाब पर उनकी एक बहुत खूबसूरत नज़्म है। ज़रा देखिये तो –

 

आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है।

भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है॥”


अब्दुर्रहीम नश्तर का का जन्म 26 फरवरी 1947 को कैम्पटी, भारत में हुआ। वे गद्य और पद्य, दोनों ही विधाओं में साहित्य सृजन करते हैं।भोपाल एक ख़्वाब‘, ‘परिंदे तो मुसाफ़िर हैं‘, ‘शाम-ए-गिरांऔर कोकन में उर्दू  तालीमउनकी प्रमुख  पुस्तकें  हैं। आसमान इसलिये अहम है क्योंकि उसमें हमारा खुदा रहता है। क्या खूबसूरत  शेर कहा है उन्होंने –

वो सो रहा है ख़ुदा दूर आसमानों में।

फ़रिश्ते लोरियाँ गाते हैं उस के कानों में॥” 



असलम इमादी का जन्म वर्ष 1948 में हुआ। वे उर्दू  साहित्य  के एक चर्चित शायर हैं। अगले मौसम का इंतज़ारउनकी प्रमुख पुस्तक है। सारी दुनिया टुकड़े-टुकड़े में बँटी हुई है लेकिन आसमान जहाँ तक दिखाई पड़ता  है, एक ही है। उनका यह खूबसूरत  शेर देखिये –

 

हज़ार रास्ते बदले हज़ार स्वाँग रचे

मगर है रक़्स में सर पर इक आसमान वही।” 


खलील मामून का जन्म वर्ष 1948 में हुआ। वे मशहूर भारतीय शायर हैं और बैंगलोर में निवास करते हैं। वर्ष 2011 उर्दू भाषा का साहित्य अकादमी ऐवार्ड उन्हें दिया गया। आफ़ाक़ की तरफ‘, ‘बनबास का झूठ‘, ‘जिस्म-ओ-जाँ से दूर‘, ‘लाइल्लाह‘, ‘सरस्वती के किनार‘, ‘साँसों के पारतासुरातउनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। इतना बड़ा आसमान अपने चमकते चाँद तारों से ही आबाद है। यह शेर देखिये-

 

जो नूर भरते थे ज़ुल्मात-ए-शब के सहरा में,

वो चाँद तारे फ़लक से उतर गए शायद।”


डॉ राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी, 1950 को इंदौर में हुआ और इंतक़ाल 11 अगस्त, 2020 को इंदौर में ही हुआ। उनका असली नाम राहत कुरैशी था। वे उर्दू भाषा के प्रोफेसर थे। उनकी शायरी में ग़ज़ल की हरारत के साथ अंगारों की सुर्ख़ी भी मिलती है और उनकी यह शैली उन्हें भीड़ में भी अकेला बनाने में कामयाब है। आसमान पर उनका यह खूबसूरत शेर देखिये –

 

मेरे हुजरे में नहीं और कहीं पर रख दो।

आसमान लाये हो, ले आओ ज़मीं पर रख दो॥”



सुहैल काकोरवी उर्दू साहित्य में एक स्थापित और चमकदार नाम है। वे शेर कहते ही नहीं हैं बल्कि बाक़ायदा शायरी को जीते भी हैं। उर्दू के साथ उन्होंने हिंदी, अंग्रेज़ी व फ़ारसी साहित्य को भी  मालामाल किया है। 7, जुलाई, 1950 में लखनऊ में जन्मे इस शायर के सृजन की कोई सीमा नही है। निग़ाह, आमनामा, गुलनामा, नीला चाँद, ग़ालिब:एक उत्तर कथा, आदि-इत्यादि उनकी मशहूर पुस्तकें हैं। आसमान पर उनके ये हसीन अशआर देखिये –

 

राह दिखला कर वो मंज़िल का निशां हो जायेगा।

और ज़मीं की हद से उठकर आसमां हो जायेगा॥”

एक शेर यह भी –

 

मेरे वजूद की तफ़सील है बलीग़ बहुत,

ज़मीं पे करता हूँ नैं काम आसमाँ के लिये।”

और यह भी –

 

आसमाँ से आयी थी और आसमाँ वापस गयी।

रोशनी इक ज़िंदगी है, मौत भी तो है वही॥”




ग़ुलाम हुसैन साजिद का जन्म 1 दिसंबर, 1951 को हुआ। वे मुल्तान, पाकिस्तान के निवासी हैं। हस्त-ओ-बूदउनकी पुस्तक है। वे बड़ी साफ़गोई से आसमान के होने के औचित्य पर सवाल उठाते हैं। उनका यह शेर देखिये –

 

अगर है इंसान का मुक़द्दर ख़ुद अपनी मिट्टी का रिज़्क़ होना,

तो फिर ज़मीं पर ये आसमाँ का वजूद किस क़हर के लिए है॥”

क्रमशः

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