सुहैल काकोरवी की एक ग़ज़ल पतंग

संजय मिश्रा शौक़
फितरत का अपनी असल में इज़हार है पतंग
परवाज़ का है शौक़ तरहदार है पतंग
इस में उलझ के भूलते हैं हम ग़मे जहाँ
तन्हाई की रफ़ीक़ है दिलदार है पतंग
रंगों पे उसके लिखा है मत भूलो गिरदो पेश
समझो कि होश की भी तलबगार है पतंग
कर ले असीर ज़ेहन तो अँधा है फिर वह खेल
इतना अगर जुनूं है तो बेकार है पतंग
तहज़ीब ले के पहुंची यहाँ की ख़लाओं में
इस तरह लखनऊ की नमक ख्वार है पतंग
नामा लिखेंगे इस पे दिले मुब्तिला का हम
यह सुन के तुझ से मिलने को तैयार है पतंग
कट जाए इस का पेंच तो सामाने रंजो ग़म
बर अक्स हो तो फिर गुलो गुलज़ार है पतंग
दिल चाहता है राज़े उफ़ुक़ जान लें सुहैल
ये कुछ नहीं है ख्वाहिशे दीदार है पतंग
सुहैल काकोरवी पतंग जीवन का भरपूर इस्तेआरा है। पतंग में दो काग़ज़ एक मोटा जो मरकज़ी होता है दूसरा महीन जो चारों ओर  से कांप और ठड्डी से जुड़ा होता है जिसमें धागा डालकर पतंग बनती है और आसमान को छूती है।पतंग में पांच अनासिर(तत्व ) होते हैं और इंसानी वजूद में भी। यह ऐसी मुमासिलत है जो और कहीं देखने को नहीं मिलती। इंसानी वजूद भी ख़ाक से पैदा हो ख़ाक में मिलता है पतंग भी अनासिरे ख़मसा के मुंतशिर होने पर फ़ौत हो जाती है। अगर जीवन बेहतर है तो लोग कहते हैं कि पतंग अच्छी उड़ रही है।विधवाओं के लिए अक्सर कटी पतंग का इस्तेआरा इस्तेमाल होता है। यानी शेल्टरलेस वीमेन। पतंग को आकाश की बलंदी तक ले जाने में हाथों का इस्तेमाल और सटीक इस्तेमाल ज़रूरी है। इंसान को भी अपने क्षेत्र में, जीवन में उन्नति के लिए कर्म के यानी अमल के हाथों की ज़रूरत है। मुक़द्दर सबका ख़ाक होना है मगर ख़ाक होने से पहले की जो यात्रा है वह जीवन या पतंग किस तरह जिये यही धरती का खेल है। प्रभु की संरचना है जीवन सार है।पतंग अच्छी तब उड़ती है जब कन्ने सही बंधे हों, हवा का अन्दाज़ा सटीक हो और डोर का संतुलन क़ायम रहे। जीवन भी ऐसा ही है। जीवन में इंसान तभी बलंदी पर पहुंचता है जब अमल की रस्सी मज़बूती से पकड़े लक्ष्य पर संधान करे और हवा का रूख़ पहचाने।
दौरे हाज़िर के बड़े मुफ़क्किर और शायर  सुहैल काकोरवी ने पतंग रदीफ़ में एक शाहकार ग़ज़ल कही है जो निगाहों के सामने है।फ़ितरत का अपनी अस्ल में इज़हार है पतंग।
परवाज़ का है शौक़ तरहदार है पतंग बिल्कुल सही पतंग कु़दरत का ज़रीयाऐ इज़हार ही है। जीवन को समझने के लिए और इसकी उड़ान का शौक़ इसके जीवन के उतार-चढ़ाव इंसानी वजूद की तरह ऊपर नीचे होते रहते हैं। दर अस्ल ज़िन्दगी अपने आप में बहुत से भेद और विभेद रखती है। इसीलिए तरहदार है मआनी-ओ-मफ़ाहीम(अर्थों) से लबरेज़ है जिसे समझने की ज़रूरत है।इसमें उलझ के भूलते हैं हम ग़मे जहाॅतन्हाई की रफ़ीक़ है दिलदार है पतंग
पतंग उड़ाने वाला चरित्रवान होता है। उसकी निगाहें चील की तरह तेज़ होती हैं जो अपने मक़सद पर, अपनी मंज़िल पर यानी आसमान पर नज़र रखता है, दूसरी जगह नहीं। इंसान भी अपनी मंज़िल के लिए तग-ओ-दौ करता है और जीवन संवारने में पतंगबाज़ की तरह उलझा रहता है। ग़मों को भूलता है इसीलिए अकेले में,तन्हाई से दोस्ती कर मंसूबे बनाता है और पतंगबाज़ की तरह बड़ा दिल रखता है।
रंगों पे उसके लिक्खा है  मत भूलो गिर्दो पेश
समझो कि होश की भी तलबगार है पतंग
पतंग के रंग जीवन की तब्दीलियों के द्योतक हैं जो गिर्दो पेश के माहौल से बनते बिगड़ते हैं। इसलिए आंख खुली रखने की ज़रूरत है। ज़रा से बहके पतंग कटी, ज़रा सा होश खोया तो जीवन का उद्देश्य बलंदी के बजाये पस्ती में चला जाता है।
कर ले असीर ज़ेहन तो अंधा है फिर वो खेल
इतना अगर जुनॅू है तो बेकार है पतंग
इतना जूनून ठीक नहीं कि सिर्फ़ अपनी ही पतंग दिखाई दे। आसमान सबका है पतंगें और भी ज़िन्दगी भी स्वयं केंद्रित होना बौनेपन और पस्ती की निशानी है जो दिमाग़ का उजाला छीन लेती है।दूसरी बात पतंग और लखनऊ एक दूसरे की पहचान हैं। दुनिया में बेशतर देशों में पतंग उड़ती है मगर लखनऊ की पतंगबाज़ी संसार में सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। यहां की नफ़ासत तहज़ीब और दूसरे को ज़मीनी व आसामनी रास्ता  देने की ख़ूबी इसे दूसरों से अलग करती है। लखनऊ का काला डग्गा और चांदातारा पतंगें सारे आलम में मशहूर हैं। जिसकी ज़ामिन यहां ज़मीन और आसमान के बीच सारी फ़ज़ा है।
लखनऊ के इंसानों की तरह यहां की पतंगें भी हद्दे अदब में रहती हैं। तहज़ीब का दामन नहीं छोड़तीं।
नामा लिखेंगे इसपे दिले मुब्तिला का हम
यह सुनके उससे मिलने को तैयार है पतंग
पुराने ज़माने में आशिक़ों के दिल का हाल बयाॅ करने में पतंगों ने डाकिया बनकर बड़ा काम अंजाम दिया और लाज के बंधनों को तोड़ कर प्रेमियों के मिलने में, मुहब्बत के फूलों के खिलने में अहम खेल अदा किया है और कर रही हैं।
कट जाए इसका पेंच तो सामाने रंजो ग़म
बरअक्स तो तो फिर गुलो गुलज़ार है पतंग
पतंग कटना जीवन के गिरने की भांति होता है। इंसान जाता है तो उसके साथ एक तवील दास्तान, जो दुख-सुख से भरी होती है चली जाती है, वैसे ही पतंग अपनी समूची उड़ान का इतिहास अपने दामन में समेट कर विदाअ होती है।
दिल चाहता है राज़े उफ़ुक़ जान लें सुहैल
यह कुछ नहीं है ख़्वाहिशे दीदार है पतंग
आसमान का राज़ जानने के लिए ज़़मीन से रिश्ता बहुत ज़रूरी है, पतंग भले ही आसमान में कितनी ही ऊपर हो डोर ज़मीन पर किसी के हाथ में होती है। आसमान का राज़ यानी परमेश्वर के दीदार कीतमन्ना अज़ल से इंसान को बलंदी की ओर खींचती है, पतंग उसको दोबाला करती है मगर बशरीयत का तक़ाज़ा मिट्टी को मिट्टी कर देता हैै। ग़ज़ल कामयाब है।
विशेष:- ‘सुहैल काकोरवी’ उर्दू, अंग्रेजी, हिंदी व फारसी के साहित्य का एक ऐसा नाम हैं जो स्वयं भी “साहित्य” ही है. उन्होंने जितना भी लिखा वो साहित्य की सर्वशेष्ठ वर्ग में आता है और यही कारण है की समय समय पर ‘लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड’ एवं ‘इंडियन बुक्स ऑफ़ रिकॉर्ड’ जैसी संस्थाओं ने उनकी अनेक पुस्तकों को कीर्तिमानो की मान्यता दी है. श्री सुहैल काकोरवी आई.सी.एन. नेशनल (साहित्य) के सम्मानीय लिटरेरी एडिटर हैं. उनकी इस रचना को प्रकाशित करते हुए आई.सी.एन. को अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा है.

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