मोहम्मद सलीम खान– (एसोसिएट एडिटर) आई सी एन
“मौत उसकी है ज़माना करे जिसका अफसोस
यूँ तो दुनिया में सभी आते हैं मरने के लिए।”
सहसवान/बदायूं : इतवार का दिन शास्त्रीय संगीत जगत तथा देश व विदेश में रह रहे करोड़ों संगीत प्रेमियों के लिए बहुत ही दुख भरा था। शास्त्रीय संगीत के दिग्गज संगीतकार पदम विभूषण गुलाम मुस्तफा खान ने 17 जनवरी दिन इतवार को दुनिया से अलविदा कह दिया। पदम विभूषण गुलाम मुस्तफा खान ने 89 साल की उम्र में अपने आवास पर अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु की खबर सुनते ही बॉलीवुड व संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ पड़ी। पदम विभूषण गुलाम मुस्तफा खान का जन्म 3 मार्च सन 1931 को उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक जिला बदायूं में हुआ था। उनके वालिद-ए- मोहतरम का नाम उस्ताद वारिस हुसैन खान तथा वालिदा मोहतरमा का नाम साबरी बेगम था जो उस्ताद इनायत हुसैन खां की बेटी थी। गुलाम मुस्तफा खान का ताल्लुक रामपुर सहसवान घराने से था। मेरे लिए और अहले सहसवान के लिए यह फक्र की बात है कि मेरे वतन सहसवान से ताल्लुक रखने वाले पदम विभूषण गुलाम मुस्तफा खान व 1957 में प्रथम पदम भूषण प्राप्त करने वाले मुशताक हुसैन खान, इनायत हुसैन खान व अन्य दिग्गज संगीतकारों ने अपनी संगीत की खुशबू पूरी दुनिया में फैलाई और हमारे देश भारत व वतन क़स्बा सहसवान व ज़िला बदायूँ का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया। पदम विभूषण उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान अपने चार भाइयों तथा तीन बहनों में सबसे बड़े थे। गुलाम मुस्तफा खान अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार छोड़ कर गए हैं जिसमें उनकी पत्नी आमना बी जो पदम भूषण मुश्ताक हुसैन खान की नवासी हैं। उनके चार बेटे जिनका नाम गुलाम मुर्तजा, गुलाम क़ादिर, गुलाम रब्बानी, आलम तथा तीन बेटियां नाजिमा, शादमा और राबिया हैं। ग़ुलाम मुस्तुफा खान की संगीत की इस विरासत को उनके चारो बेटे भतीजा नदीम और उनके पोते आमिर मुस्तुफा और फैज़ मुस्तुफा बखूबी आगे बढ़ा रहे हैं। गुलाम मुस्तफा खान को शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अपनी बेमिसाल खिदमात देने के लिए और भारत देश का गौरव बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पदम श्री राष्ट्रपति के आर नारायण द्वारा 2006 में पदम भूषण राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा तथा 2018 में पदम विभूषण राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा अवार्ड से सम्मानित किया तथा इसके अलावा सन 2003 में उन्हें संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। ग़ुलाम मुस्तफा खान के चाहने वाले केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं। गुलाम मुस्तफा खान के वालिदेन (माता पिता) उन्हें संगीतकार बनाना चाहते थे इसीलिए उनकी संगीत की शिक्षा बचपन में ही शुरू करवा दी थी। अपने पिता के बाद गुलाम मुस्तफा खान ने संगीत की शिक्षा उस्ताद फिदा हुसैन तथा अपने खालू उस्ताद निसार हुसैन से हासिल की। घर के शोरगुल से दूर गुलाम मुस्तफा खान ने रियाज़ (अभ्यास) करने के लिए कब्रिस्तान के एकांत वातावरण को चुना और घंटों कब्रिस्तान में बैठकर रियाज़ किया करते थे। गुलाम मुस्तफा खान ने 5 वर्ष की अल्पायु में ही गाना शुरू किया था और 8 वर्ष की आयु में अपने वालिद-ए- मोहतरम के साथ बदायूं में स्टेज पर परफॉर्मेंस दिया था और इस प्रोग्राम के नाजिम बदायूं के चेयरमैन अली मकसूद थे। गुलाम मुस्तफा खान को हिंदुस्तान के बड़े-बड़े एज़ाज़ से सरफराज किया गया और उनकी इस कामयाबी के पीछे उनके वालिदैन की तरबीयत और खुसूसी तौर से उनके वालिद वारिस हुसैन खान की सख्ती उनके लिए संग-ए- मील साबित हुई। चूंकि गुलाम मुस्तफा खान अपने बहन और भाइयों में सबसे बड़े थे और परिवार की ज़िम्मेदारी भी उनके कंधों पर थी तथा ज़िन्दगी की चुनौतियां का सामना करते हुए उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वाह पूरी ज़िम्मेदारी के साथ किया। इंसान के जीवन में कई कठिनाइयां आती हैं और वक्त के सख्त थपेड़े इंसान को मायूसी की दहलीज़ पर ले आते हैं मगर जो लोग सब्र व तहम्मुल के साथ और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए पूरी निष्ठा व ईमानदारी के साथ निरंतर संघर्ष करते रहते हैं तो एक दिन उनके जीवन में ऐसा जरूर आता है जब कामयाबी उस व्यक्ति के कदम चूमती है और इसकी मिसाल बन कर गुलाम मुस्तफा खान ने यह साबित किया कि यदि इंसान अपने जीवन में एक लक्ष्य तय कर ले और उसके लिए निरंतर संघर्ष करते रहे तो दुनिया की कोई ऐसी ताकत नहीं कि उसे कामयाब होने से रोक सके। गुलाम मुस्तफा खान केवल एक संगीतकार ही नहीं नव युवकों के लिए प्रेरणास्रोत भी हैं। गुलाम मुस्तफा खान ने बदायूं से मुंबई प्रस्थान किया और मुंबई जाने से पूर्व उन्होंने कानपुर महमूदाबाद तथा 1950 में ऑल इंडिया रेडियो में शास्त्रीय संगीत की मधुर वाणी से लोगों के दिलों पर राज किया। गुलाम मुस्तफा खान ने सन 1951 में पहला गीत मराठी ज़ुबान में गाया था। उस समय हर शहर में विक्टोरिया गार्डन हुआ करता था और यह रिवायत (परंपरा) थी कि संगीत में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के सामने अपना हुनर श्री कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर दिखाते थे और ऐसे ही खूबसूरत महफिल की निज़ामत अली मक़सूद करते थे।
“दुनिया में वही शख्स है ताज़ीम के क़ाबिल।
जिस शख्स ने हालात का रुख मोड़ दिया हो।”
उस्ताद की पहचान उसके शागिर्दों से होती है और उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान के कामयाब शागिर्दों की एक लंबी फेहरिस्त है और उनके कामयाब शागिर्द प्लेबैक सिंगर सोनू निगम जो उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान को पिता तुल्य मानते हैं उन्होंने 2 वर्ष पूर्व उनके 87 जन्मदिन के अवसर पर गुलाम मुस्तफा खान को पदम विभूषण एज़ाज़ से सरफराज़ किए जाने की खुशी में खूबसूरत सितारों की एक महफिल सजाई। उस पार्टी में देश के ज्यादातर दिग्गज फनकारो ने जैसे मशहूर गीतकार जावेद अख्तर, गायक अनूप जलोटा, गायक अभिजीत ऑस्कर अवार्ड विजेता संगीतकार ए आर रहमान, हरीहरन व शान ने शिरकत की। उस पार्टी में अनूप जलोटा ने कहां कि बड़ी खुशी की बात है कि हमारे भारत रत्न गुलाम मुस्तफा खान को पदम विभूषण से सम्मानित किया गया है। सरकार ने उन्हें भले ही भारत रत्न न दिया हो मगर गुलाम मुस्तफा खान हमारे लिए भारत रत्न ही है। उन्होंने आगे कहा कि सरकार जब भारत रत्न देती है तो उस व्यक्ति को पता ही नहीं होता कि उसे किस इनाम से सरफराज़ किया जा रहा है। यदि सरकार भारत रत्न ऐसे समय में दे जैसे सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिया गया है तो वह व्यक्ति उस इनाम का अपने जीवन में मज़ा ले सके। मशहूर पार्श्वगायक अभिजीत ने कहा गुलाम मुस्तफा खान साहब ने मेरी उस समय मदद की जब मेरे पास सब पैसे खत्म हो गए थे और संघर्ष के दौर में, मैं बिल्कुल मायूस हो चुका था तथा अपना सामान बांध कर अपने वतन कानपुर जाने की तैयारी कर ली थी उस समय गुलाम मुस्तफा खान साहब ने मुझे युनिलीवर के डायरेक्टर डॉक्टर नियोगी से मिलवाया और उनसे मेरी सिफारिश की इंटरव्यू में फेल हो जाने के बावजूद भी मुझे गुलाम मुस्तफा साहब की बदौलत काम मिल गया और आज मैं जो कुछ भी हूं गुलाम मुस्तफा खान साहब की वजह से हूं। मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने कहा कि गुलाम मुस्तफा खान साहब बेशुमार खूबियों के मालिक हैं और हमारे अज़ीम मुल्क हिंदुस्तान की एक मायनाज़ शख्सियत के साथ-साथ एक इंस्टिट्यूशन है। यह एक ऐसा सूरज है जिन्होंने ना जाने कितने ही सइयारो और सितारों को रोशनी बख्शी है। सोनू निगम द्वारा आयोजित की गई उस पार्टी की निज़ामत गुलाम मुस्तफा खान के बेटे गुलाम रब्बानी की पत्नी नम्रता गुप्ता खान ने की थी।
गुलाम मुस्तफा खान 4 वर्ष पूर्व मोहर्रम के मौके पर सहसवान तशरीफ़ लाए थे और आखरी बार सन 2019 में अपने भाई रजा अहमद की तदफीन (अंतिम संस्कार) में शरीक होने के लिए बदायूं तशरीफ़ लाए थे। ग़ुलाम मुस्तुफा का सहसवान में स्वर्गीय बन्ने खां के परिवार से हमेशा अच्छे संबंध रहे। जब कभी भी वह सहसवान आते तो स्वर्गीय बन्ने खां के सुपुत्र शादाब अली खान से अवश्य मिला करते थे। गुलाम मुस्तफा खान के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ सिंह कोविंद ने तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने तथा अन्य राजनेताओं ने गहरा दुख व्यक्त किया है। दिनांक 20 जनवरी सन 2021 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनकी पत्नी आमना बी के नाम शोक पत्र लिखकर दिवंगत आत्मा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की और उनकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। उनकी मृत्यु की खबर सुनते ही मेलोडियस क्वीन के नाम से मशहूर लता मंगेशकर ने ट्वीट किया कि गुलाम मुस्तफा खान साहब मेरे उस्ताद थे मैंने और मेरी भांजी ने उनसे संगीत सीखा था। फिल्मी जगत के मशहूर गीतकार व संगीकार जैसे मेलोडियस क्वीन लता मंगेशकर, मन्ना डे, आशा भोंसले, अदाकारा वहीदा रहमान, अदाकारा रानी मुखर्जी, ऑस्कर अवार्ड विजेता ए. आर. रहमान, सोनू निगम तथा गीता दत्त उनके शागिर्द (शिष्य) हैं। मशहूर गीतकार व गुलाम मुस्तफा खान के शागिर्द सोनू निगम अपने उस्ताद की मृत्यु की खबर सुनकर बहुत भावुक हो गए तथा उन्होंने गुलाम मुस्तफा खान के जनाज़े को कंधा भी दिया।
बदायूं की धरती पर कई महान आत्माओं ने जन्म लिया नगर बदायूं एक ऐतिहासिक नगर है और यहां महान सूफी संत हज़रत निज़ामुद्दीन रहमतुल्ला अलेह हिंदुस्तान के तख्त पर हुकूमत करने वाली मलिका-ए-आलिया रज़िया सुल्ताना, मशहूर गीतकार शकील बदायूँनी व मुगल सम्राट अकबर के दरबार में अपनी खिदमात को अंजाम देने वाले अब्दुल क़ादिर बदायूँनी मशहूर कवि उर्मिलेश व महान संगीतकार गुलाम मुस्तफा खान ने जन्म लिया है। 17 जनवरी की शाम को पूरे राजकीय सम्मान के साथ मुंबई में स्थित सांताक्रुज कब्रिस्तान में ग़ुलाम मुस्तुफा खान को सुपुर्द-ए-खाक किया गया। पुलिसकर्मियों ने अपने हथियार झुका कर दिवंगत आत्मा को गार्ड ऑफ ऑनर दिया। गुलाम मुस्तफा खान ने राज्यसभा टीवी के लिए एक इंटरव्यू देते हुए कहा था इन्नललाहा मांअस साबरीन अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है आजकल के नौजवान बहुत जल्दी कामयाबी हासिल करना चाहते हैं हर चीज का एक वक्त मुकर्रर है और अल्लाह ताआला किसी की मेहनत को रायगा (व्यर्थ) नहीं करता है इसलिए हमें अपनी मंजिल को ध्यान में रखते हुए लगातार उसको हासिल करने की कोशिश चाहिए इंशाल्लाह एक न एक दिन कामयाबी आपके कदम चूमेगी। एक जर्नलिस्ट होने के नाते मैं मोहम्मद सलीम खान अपने इस लेख के जरिए हमारे देश के गौरव मरहूम गुलाम मुस्तफा खान साहब को खिराज-ए- अक़ीदत पेश करता हूं और अल्लाह ताआला से दुआ करता हूं कि मरहूम को जन्नतुल फिरदोस में आला मक़ाम अता फरमाए आमीन।
रामपुर सहसवान घराने की बरसों पुरानी रिवायत में चार चाँद लगाते हुए व देश व प्रदेश का गौरव बढ़ाते हुए इसी घराने के बेनुल अक़्वामी शौहरत याफ्ता (अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त) मशहूर व मारूफ शायर ताहिर फराज़ द लिविंग लीजेंड( The living legend) के इस शेर के साथ अपने इस लेख का इख्तिताम करता हूं।
” जितने खुशनुमा मंजर हैं बदलते जा रहे हैं
हमारे एहद के मेहताब ढलते जा रहे हैं।”