राणा अवधूत, ब्यूरो चीफ-ICN बिहार
पटना : आज की इस अपसंस्कृति के बढ़ते प्रभाव व नैतिकता के पतन के दौर में यदि किसी ने आपके साथ दया, मदद, परोपकार, इंसानियत, मानवता, समर्प्रण, ईमानदारी, त्याग, शील या सहायता जैसे मानवीय गुणों को प्रदर्षित करने वाला कोई कार्य करे तो स्वत: उसके लिए दिल से दुआ निकलती है। मानव जीवन में शास्त्रों में 16 गुणों को ऐसा बताया गया है जिसे ग्रहण करने के बाद मानव सामान्य से कुछ ऊपर उठ जाता है। कुछ ऐसी ही इंसानियत की मिसाल दिल्ली की रजनी जाजोरिया ने कायम की है। जिन्होंने एक अंजान इंसान की मदद के लिए ना सिर्फ उन तक पहुंचने के लिए कई जगहों पर फोन से संपर्क भी किया बल्कि मदद के लिए घर से 20 किलोमीटर की दूरी तय करने का निश्चय भी कर लिया। बाद में उसने कूरियर के माध्यम से उक्त व्यक्ति की मदद की।
मामला बिहार की राजधानी पटना के निवासी एक पत्रकार से जुड़ा है। जहां पिछले दिनों एक पत्रकार अपने निजी कार्यों से दिल्ली गए हुए थे। दिल्ली से पटना के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए राजीव चौक मेट्रो स्टेशन से मेट्रो की सवारी ली। लेकिन राजीव चौक पर मेट्रो में सवार होने के दौरान दो चोर-उचक्कों ने उनके पॉकेट से वॉलेट यानि पर्स उड़ा लिया। हालांकि तब उन्हें इस बात का इल्म भी नहीं था कि उनका पर्स पैकेटमारों ने उड़ा लिया है। यमुना चौक में मेट्रो स्टेशन पर आते-आते उन्हें अचानक अपने पर्स से कुछ निकालने की जरूरत होती है तो उनके होश उड़ जाते हैं। जहां पैकेट से पर्स गायब था। अब उक्त पत्रकार की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा था। कारण कि पर्स में कई हजार रूपए होने के साथ उनके सारे डेबिट कार्ड, डीएल, गाड़ी की आरसी, मेट्रो कार्ड, पैन कार्ड, आधार कार्ड, प्रेस कार्ड व विश्वविद्यालय से पीएचडी में अध्ययनरत बीएचयू कार्ड भी रखा हुआ था। इन सभी सामानों को उन चोरों ने कुछ पैसों की लालच में चुरा लिया था। जहां सिवाए उन पैसों के उन सभी कागजातों की उनके लिए कोई भी अहमियत नहीं थी। मेट्रो ट्रेन से पर्स गायब कर वे दोनों चोर अगले स्टेशन से ही उतर गए। जहां पर्स से रूपए निकाल कर पर्स में रखे हुए सभी कागजात समेत पर्स को भी राजीव चौक मेट्रो स्टेशन में ही वापस फेंक दिया। कहानी यहीं से शुरू होती है।
दिल्ली के करोलबाग में एक साधारण घर में रहने वाली युवा लड़की रजनी जाजोरिया भी उसी दौरान राजीव चौक मेट्रो स्टेशन से गुजरती है। स्नातक की डिग्रीधारक रजनी उस वक्त एक कंपनी में जॉब के लिए इंटरव्यू देकर आ रही थी। उसके पिता विजय पाल करोलबाग में परिवार के साथ रहते हैं। वह ट्रेन के इंतजार में खड़ी थी। जहां उसे कोने में एक पर्स गिरा हुआ दिखाई दिया। उत्सुकतावश उसने वह पर्स उठा लिया। जहां पर्स के पहले खाने में उसे कुछ भी नहीं मिला। लेकिन दूसरे खाने में उसे वे सभी कागजात मिले, जो पटना के पत्रकार महोदय के पर्स में रखे हुए थे। उसे मामला समझते देर नहीं लगी। लेकिन दिक्कत की बात थी कि पत्रकार महोदय का कोई संपर्क नंबर या मोबाइल नंबर उस पर्स में कहीं नहीं रखा हुआ था। लेकिन आईसीएन मीडिया के प्रेसकार्ड पर लखनऊ कार्यालय का नंबर लिखा हुआ मिल गया। बस क्या था, उसने कार्ड पर लिखे नंबरों पर संपर्क करना शुरू किया। इस दौरान उसे आईसीएन के कार्यकारी संपादक सुशांत कुमार सिंह से बातचीत हुई। बातचीत में उसने बताया कि आईसीएन के बिहार ब्यूरो चीफ का कार्ड है, तो सुशांत सिंह ने उसे आईसीएन के प्रधान संपादक डॉ. शाह अयाज सिद्दिकी का नंबर पर संपर्क करने की सलाह दी। उसने तुरंत आईसीएन के प्रधान संपादक डॉ. शाह से बात कर पूरा मामला बताया।
इधर पत्रकार महोदय आनंद विहार मेट्रो स्टेशन पर किसी तरह अपनी परेशानी बताकर स्टेशन से बाहर निकल आनंद विहार रेलवे स्टेशन पहुंचे थे। उनके सामने कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या करें, तभी गाजियाबाद में रहने वाले अपने पुराने मित्र विशाल सिंह की याद आई। विशाल सिंह से संपर्क किया तो वे दस मिनट में स्टेशन पहुंच गए। जहां वे अपने मित्र को संभालते हुए तत्काल पहले बैंकों के सभी कार्डों को ब्लॉक करवाने लगे। अभी बैंकों के डेबिट-क्रेडिट कार्ड को ब्लॉक कराने में लगे थे कि उनके प्रधान संपादक का बार-बार कॉल आ रहा था। लेकिन वे अपने बॉस का कॉल भी तीन बार काट दिए। इस बीच उनके मित्र विशाल सिंह ने कहा कि एक बार बात कर लीजिए, उन्होंने चौथी बार फोन किया तो उठाने पर पता चला कि आपका पर्स दिल्ली में एक लड़की को मिला है, उसके नंबर पर तत्काल बात करें। जब पत्रकार महोदय ने रजनी से बात किया तो उसने सारी बातें बताते हुए कहा कि सर पर्स में पैसे तो नहीं हैं लेकिन आपके सारे डॉक्यूमेंटस सुरक्षित हैं। यदि आपके पास समय हो तो आप राजीव चौक आ जाइये, आपको दे देती हूं। लेकिन पत्रकार महोदय को ट्रेन पकड़नी थी। उन्होंने अपनी विवशता बताई तो रजनी ने फौरन कहा कि कल रविवार है, सोमवार को आपके पता पर कूरियर कर दूंगी। इस तरह एक अंजान बेरोजगार लड़की ने हजार किलोमीटर दूर के रहने वाले की मदद करने के लिए राजीव चौक जाने से लेकर कूरियर का खर्च वहन किया।
इस पूरे मामले में जहां वह लड़की मानवता व इंसानियत की मिसाल कायम की है। वहीं आईसीएन के संपादक द्वय डॉ. शाह व सुशांत सिंह ने समय पर अपने कर्मी से संपर्क कर मदद किया तो पत्रकार महोदय के मित्र विशाल सिंह ने भी पूरा समय देते हुए उन्हें नाश्ता-भोजन के साथ आर्थिक मदद भी किया।
अंत में यह बताना जरूरी समझता हूं कि वह पत्रकार कोई और नहीं मैं स्वयं राणा अवधूत कुमार हूं, जिनके साथ यह वाक्या हाल ही में हुआ था। .