लखनऊ/04.12.2021 : लगभग दो वर्षों से निरंतर वैश्विक महामारी के हिम में कहीं गहरे नीम बेहोशी से जूझती ज़िंदगी अब पुनः कसमसाने लगी है और ज़िंदगी में जीवित होने के लक्षण फिर दिखाई देने लगे हैं। विश्व को यह विश्वास दिलाने की आवश्यकता है कि वह गंभीर व अविश्वसनीय क्षति के बावजूद सांसे ले रहा है और अभी तक ज़िंदा है। बहुत ज़रूरी है कि हम अपनी धड़कनों के संगीत को फिर सुने, शिराओं मे बहते खून की रफ़्तार को फिर महसूस करें और अपने मस्तिष्क को गुफ़्तगू करके फिर बतायें कि यह सच है कि हमने बहुत कुछ खो दिया है लेकिन यह भी सच है कि अभी भी हमारे पास बहुत कुछ शेष है। हमें समझना ही चाहिये कि जीवन चलने का नाम है और हर रात के दूसरे छोर पर सुनहरा सवेरा है।
आई सी एन मीडिया ग्रुप (आई सी एन) व उसकी सहयोगी संस्था स्कालर इंस्टीट्यूट अॉफ मीडिया स्टडीज़ (सिम्स) ने जीवन के प्रति इसी विश्वास के पुनर्जागरण हेतु संयुक्त रूप से सकारात्मक इवेंट्स की एक नवीन श्रृंखला एक कदम और (वन स्टेप मोर) प्रारंभ की जिसके द्वितीय कदम के रूप में लखनऊ स्थित सिम्स के सभागार में शब्द, स्वर एवं संगीत गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता आई सी एन के एडीटर (एंटरटेनमेंट),संगीत के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त व यश भारती सम्मान से सम्मानित केवल कुमार ने की।
कार्यक्रम का प्रारंभ करते हुये तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एक्जीक्यूटिव एडीटर, आई सी एन (साहित्यकार, विधिविशेषज्ञ व लॉ फ़र्म ओनर) ने कहा कि यह समय मृतप्राय समाज की संवेदनाओं को पुनः जीवन देने का है। जब तक हम वास्तव में नहीं मर जाते, हमें मरने का कोई हक़ नहीं है। इस वैश्विक महामारी ने जिन्हें हमसे जुदा कर दिया, हम उनके लिए गंभीर रूप से संवेदित हैं लेकिन समाज का जितना जीवन आज भी जीवित है, उसके लिये यह उत्साह का पर्व है। हममें से कुछ दुर्भाग्यशाली लोग इस महामारी से हार गये लेकिन हममें से करोड़ों लोगों ने इस महामारी को हरा भी दिया। हम फिर चलेंगे, फिर बढ़ेंगे और एक-एक कदम रख कर विश्व के भूगोल पर नयी मंज़िलों का इतिहास रचेंगे।
आई सी एन के एडीटर इन चीफ़ एवं सिम्स के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर प्रो. (डॉ.) शाह अयाज़ सिद्दीकी ने आई सी एन के विषय में बताते हुये कहा कि आई सी एन भारत को स्वयं से भी अधिक चाहने वाले विभिन्न क्षेत्रों की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं का ऐसा अंतर्राष्ट्रीय मंच है जो वैश्विक पटल पर भारतीय संस्कृति व सभ्यता का प्रतिनिधित्व करता है और न केवल शब्दों के माध्यम से वरन् अपने कार्यक्रमों से देश के सर्वांगीण विकास के लिए रूरल इंटरप्रिन्यूरशिप की अगुवाई भी करता है। उन्होंने सिम्स की कार्य प्रणाली पर प्रकाश डालते हुये कहा कि पत्रकारिता एक बड़ा दायित्व है और विषम व संकटकालीन परिस्थितियों में यह दायित्व और भी बड़ा हो जाता है। सिम्स पत्रकारिता के क्षेत्र में ऐसे स्किल्ड व विषयानुसार एजूकेटेड पत्रकारों को प्रोड्यूस करने के लिए कटिबद्ध है जो सार्थक पत्रकारिता के माध्यम से समाज के संतुलित विकास के लिए उपस्थित हों।
शब्द, स्वर व संगीत कार्यक्रम का प्रारंभ वरिष्ठ कवियित्री व भारतीय सेना से सेवा निवृत्त सर्जन डॉ (मेजर) रुचि श्रीवास्तव ने माँ शारदा की वंदना से किया। तत्पश्चात् उन्होंने आशा व उम्मीद का एक खूबसूरत गीत प्रस्तुत किया –
मन क्यों तू हिम्मत हार रहा?
साहस का अंचल छोड़ नहीं-
यह परम परीक्षा है तेरी!
कम्पित भावों को सम्बल दे
कुछ कठिन नहीं मत कर देरी।
सम्पूर्ण सृष्टि में उठ पाया
तम से उजास का भार कहां?
तदुपरांत युवा ग़ज़लकार अमित हर्ष ने अपनी ग़ज़लें बेहद सलीके से श्रोताओं के समक्ष रखीं –
“अजीब मुश्किल, उलझन में हम पड़ गये।
मोहब्बत ज़्यादा थी और लफ़्ज़ कम पड़ गये॥
कैसे बताएँ कैफ़ियत इज़हार-ए-इश्क़ की,
होंठ ख़ुश्क बेबस और हाथ नम पड़ गये॥
गुमाँ तो बहुत था क़लम की धार पर अपनी,
पर इस क़वायद में काग़ज़ पर ज़ख़म पड़ गये॥
ख़ुशियों को ज़रा क्या दावत दे दी हमने,
बस इतनी सी बात पर पीछे ग़म पड़ गये॥
तुम गये, सर्दी गयी, गर्मी गयी फिर बरसात भी,
इस दरमियाँ देखो कितने मौसम पड़ गये॥
ये शौक़-ए-सफ़र मंज़िल का मोहताज कहाँ,
चल दिये उधर ‘अमित’ जिधर क़दम पड़ गये॥”
श्रीमती शरद सिंह जी ने अपनी रचनाओं का सस्वर पाठ किया –
“अपनों की भीड़ में तलाशा जब अपनों को,
मिला नहीं कोई वहां जहां अपने थे सब।
देखें थे सपन इन नयनों ने बार बार,
रहे वो सपन ही जो देखे सपने थे सब॥”
तत्पश्चात् आई सी एन के ब्यूरो चीफ़ (उत्तर प्रदेश) डॉ अमय त्रिपाठी ने अपना कविता पाठ करते हुये भौतिकवाद के झंझावात में फंसे मनुष्य की मृगतृष्णा की ओर संकेत करते हुये कहा –
“न जाने किन ख्वाहिशों के बोझ से
दबा जा रहा है
बेवजह की लड़ाई जीतने के लिये
लड़े जा रहा है
उनपैमानों के क्या मायने अमय
जिनपे उतरने को मरे जा रहा है।”
गौरवेंद्र प्रताप सिन्हा, एडीटर, आई सी एन (सेवानिवृत्त फ़ार्मास्यूटिकल प्रबंधक) ने कहा कि सिर्फ़ उम्मीद ही है जो सारी दुनिया चलाती है और सब कुछ खो देने के बावजूद अगर हम अपनी उम्मीद बचा लेते हैं तो हम फिर नई यात्रा के लिये तैयार हो जाते हैं। इस अवसर पर उन्होंने जावेद अख़्तर का लिखा अपना पसंदीदा गीत गाकर श्रोताओं को झूमने पर विवश कर दिया –
ये सफ़र बहुत है कठिन मगर
न उदास हो मेरे हमसफ़र।
आई सी एन एसोसिएट एडीटर आदर्श श्रीवास्तव ने बड़े ही रोचक अंदाज़ में नित प्रति की समस्याओं से जूझते इंसान की शैली को खिचड़ी के तड़के की दृष्टि से देखा और लोगों की वाहवाही बटोरी।
डॉ शिखा भदौरिया, एसोसियेट एडीटर व विख्यात संगीतज्ञ ने सर्वप्रथम अपनी सुमधुर आवाज़ में शफ़क़ साहनी चिश्ती की ग़ज़ल के कुछ शेर सुनाये और फिर अपनी रचनायें सुना कर श्रोताओं को अपने जादू से बांध ही दिया। पिता पर उनकी रचना विशेष रूप से सराही गई –
“कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता।
कभी धरती तो कभी आसमान है पिता॥
जन्म दिया है अगर माँ ने,
जानेगा जिसे जग वह पहचान है पिता॥”
सत्येन्द्र कुमार सिंह, एडीटर आई सी एन व डीन सिम्स जो वरिष्ठ साहित्यकार भी हैं, ने श्रोताओं की मांग पर अपने काव्य संग्रह टूटा ही सही, एक रिश्ता तो है से अनेक भावपूर्ण रचनायें सुनाईं –
“काम-क्रोध
छल और कपट,
छमन हर वक्त
सत्य का,
मन-मन्दिर पर
काबिज़
द्वेष और प्रतिकार,
रावण छदम्
रूप में
शासन है
कर रहा,
सुख और शांति,
सात्विक भावों
का है अंत
कर रहा,
मैं-विभीषण
मौन,
डरा हुआ
हर पल,
अनरत,
इन्तज़ार कर रहा
राम का।”
अजय कुमार, सचिव सिम्स ने जब अपनी रचनायें श्रोताओं के समक्ष रखीं तो ऐसा लगा कि कविता केवल मलमली बिछौनों पर ही नहीं शयन करती हेै। यह कभी-कभी पथरीली ज़मीन से भी जंगली घास की तरह उगती है और ज़िंदगी से सीधे वार्तालाप करती है। उनकी पंक्तियाँ देर तक श्रोताओं के मस्तिष्क में कसमसाती रहीं –
“हाँ, मैं नास्तिक हूँ
मगर इतना भी नहीं कि
औरों के धर्मों का सम्मान न कर सकूँ।”
तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एक्जीक्यूटिव एडीटर, आई सी एन ने कहा कि कविता किसी भाषा अथवा व्याकरण की मोहताज नहीं है। कविता सिर्फ़ कविता है। कविता या तो है या नहीं है। इसमें बीच की कोई स्थिति होती ही नहीं है। वास्तव में कविता देह में प्राण है। उन्होंने अपनी कविता किताबें साँस लेती हैं व अन्य रचनायें सुनाईं –
“जब भी किताबों, डायरियों से भरी,
अपनी दशकों पुरानी अलमारी देखता हूँ,
ठिठक कर थोड़ी देर अवश्य सोचता हूँ-
मेरे जीवन का कितना बड़ा हिस्सा
आज भी परत दर परत सिमटा हुआ
छिपा है इस बेतरतीब ढेर में।
जब यह बेच दिया जायेगा
मेरे ही परिवार के किसी सदस्य द्वारा
किसी कबाड़ी को एक दिन,
उस दिन मैं अपने आप से कितना कट जाऊँगा,
और एक नीर भरे आवारा बादल की भाँति
किसी पहाड़ी से टकरा कर
कभी न सिले जाने के लिये
फट जाऊँगा।
मैं मर कर भी
ज़िंदा रहूँगा
अपनी किताबों के शहर में,
शहर की घुमावदार सड़कों में
और इन्हीं किताबों के
किसी मोहल्ले के आखिरी मकान में,
हज़ारों चरित्रों के साथ जो अब
तुम्हारी दुनिया में कहीं नहीं मिलते।
पता है मुझे,
मेरे मरने के बाद
मेरी रूह नहीं भटकेगी कहीं भी
बस समा जायेगी इन्हीं किताबों में,
पुरानी आधी अधूरी लिखी डायरियों में,
लंबी उम्र गुज़ार चुकी
पीली पड़ चुकी बूढ़ी कापियों में,
ताकि अनंत काल तक
तुम जब भी मुझे पुकारो,
मैं सदैव आवाज़ दूँ –
इन किताबों से,
इन डायरियों से,
इन पुरानी कापियों से।
मुझे लगता है,
हज़ारों लोग ज़िंदा है आज भी
बरसों पहले मिट्टी में दफन हो जाने के बावजूद
अपनी अपनी किताबों में,
पूरी शिद्दत के साथ।
मैंने तो महसूस किया है-
हज़ारों बार,
तुम भी किसी किताब को
जब मन से छुओगे तो पाओगे-
किताबें साँस लेती हैं।”
अखिल कुमार श्रीवास्तव अखिल आनंद ने अपनी अत्यंत लोकप्रिय रचना फूँकना मना है से जहाँ पहले श्रोतागण को खूब हँसाया वहीं अंत में उन्हें अत्यंत संवेदित कर अविश्वसनीय रूप से गंभीर कर दिया। उन्होंने कहा –
“जिनके घर में कोई भी नेता नहीं है
या जिनका किसी भी नेता के साथ कोई संबंध नहीं है
उनके लिये फूँकना मना है।”
वरिष्ठ साहित्यकार व कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि अखिलेश श्रीवास्तव चमन ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम को और भी गरिमामयी बना दिया। उन्होंने अपना सशक्त नवगीत प्रस्तुत किया –
“अक्षत, फूल
कटा नींबू है,
उढ़का दोना है।
हे विधना
हर चौराहे पर
जादू-टोना है।”
कार्यक्रम के शीर्ष पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केवल कुमार ने अपनी अत्यंत सुरीली व भावमयी आवाज़ में अपने शायर ज़फ़र गोरखपुरी व तरुण प्रकाश की ग़ज़लें सुना कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
डॉ हरीश श्रीवास्तव, सीनियर सर्जन व कंसल्टिंग एडीटर नज़म मुस्तफ़ा, आई सी एन एसोसिएट एडीटर अंशुमान अस्थाना, आसिया खान ने कार्यक्रम की सार्थकता पर टिप्पणी करते हुये कहा कि निश्चित तौर पर ऐसे कार्यक्रम किसी भी देश की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
चीफ़ कंसल्टिंग एडीटर, आई सी एन व चेयरमैन, सिम्स प्रोफेसर प्रदीप माथुर व डायरेक्टर, सिम्स प्रोफेसर भानु प्रताप सिंह ने कार्यक्रम की सफलता पर हर्ष व्यक्त करते हुये कहा कि एक स्वच्छ व पारदर्शी समाज के निर्माण में हम सब अपनी-अपनी भूमिकायें एक-दूसरे के सहयोग से सफलतापूर्वक निर्वाह कर रहे हैं।कार्यक्रम का कुशल संचालन अखिल आनंद ने किया व सत्येन्द्र कुमार सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया एवं श्रृंखला एक कदम और अपने अगले कदम तक स्थगित की गई।