तेरा जाना, दिल के अरमानों का लुट जाना…..

सुरेश ठाकुर, कंसल्टिंग एडिटर-ICN
(सुर सरस्वती लता मंगेशकर – एक विनम्र श्रद्धांजलि)
कुछ बिरले लोग ही कला को इस सीमा तक आत्मसात कर पाते हैं कि वे उस कला विशेष का पर्याय बन जाते हैं । लता जी उनमें से एक थीं । उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व संगीत की मिट्टी से गढ़ा हुआ था। संगीत तो वास्तव में उन्हें विरासत में मिला था। पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक नाटक अभिनेता के साथ साथ गायक भी थे । घर में कला और संगीत का वातावरण था। लता जी सहित भाई हृदयनाथ मंगेशकर, बहनें आशा भोसले, ऊषा मंगेशकर और मीना मंगेशकर सभी की संगीत में गहरी रूचि और समझ थी ।
लता जी का फिल्मों में आना एक संयोग था।  अल्पायु में पिता की मृत्यु के बाद सबसे बड़ी होने के कारण परिवार के भरण पोषण की ज़िम्मेदारी लता जी के मासूम कन्धों पर आ गयी। न चाहते हुए पैसों के लिए उन्हें कुछ फिल्मों में अभिनय तक करना पड़ा। लेकिन ईश्वर ने तो उन्हें संगीत और गायन के लिए ही बनाया था अतः अंततोगत्वा वे संगीत के क्षेत्र में ही उतर गईं।
1948 में जिस समय लताजी ने  में पार्श्वगायिकी के क्षेत्र में कदम रखा उस समय नूरजहां, अमीरबाई कर्नाटकी, शमशाद बेगम और राजकुमारी जैसी गुनी गायिकाएं स्थापित थीं। ऐसे में लता जी के लिए अपने पेअर जमा पाना और अपनी पहचान बनाना इतना आसान नही था। लेकिन एक वर्ष के अंदर ही फिल्म ‘महल’ के लिए गाया हुआ उनका गीत “आएगा आनेवाला” कामयाब हो गया और इसी के साथ कामयाब होती चली गईं लता मंगेशकर।  लता मंगेशकर ने तक बीस से अधिक भाषाओं में तीसहजार से अधिक गाने गाऐ हैं।
लता जी के नाम इतने रिकार्ड और पुरूस्कार हैं कि उनकी उनकी शुमार आसान नहीं है।
लता जी को 6  बार तो  फिल्म फेयर पुरस्कार मिला है। महाराष्ट्र सरकार के द्वारा दो बार पुरुस्कृत होने के साथ साथ उन्हें तीन बार राष्ट्रीय पुरूस्कार भी मिला है। केवल प्रमुख पुरुस्कारों की बात की जाए तो लता जी को दो बार पद्म भूषण, दादा साहब फाल्के पुरूस्कार के अलावा 2001 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।
सच तो ये है कि उनका एक कलाकार के हैसियत से क़द इतना बड़ा था कि उन तक पहुँचाने के बाद सम्मान स्वयं सम्मानित होता था।नयी गायिकाओं के लिए लता जी सचमुच एक बड़ी प्रेरणा हैं। वे कुछ समय से बीमार थीं। 6 फरवरी 2022 को मुम्बई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल में उनकी मृत्यु हुई।  लता जी की मृत्यु एक शरीर का अवसान तो हो सकता है किंतु उनका अस्तित्व तो शरीर से परे है जिसका अवसान नितांत असम्भव है । जैसे संगीत अमर है, लता जी भी उसी तरह अमर हैं अपने संगीत के रूप में ।

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