– 10-11 नवंबर को अशफाक-बिस्मिल सभागार में होगा आजोजन
– समारोह की तैयारियों ने पकड़ी गति, होंगे विविध ऐतिहासिक आयोजन
अयोध्या। अवाम का सिनेमा आयोजन समिति द्वारा काकोरी एक्शन के महानायक अशफाक उल्ला खां के 122वें जन्म दिवस के अवसर पर उनके शहादत स्थल पर गुलपोशी की गई। मंडल कारागार में जंग-ए-आजादी के लड़ाका पुरखे अशफाक को खिराज-ए-अकीदत के बाद शनिवार की दोपहर 16वां अयोध्या फिल्म फेस्टिवल के आधिकारिक पोस्टर का विमोचन किया गया। अयोध्या फिल्म समारोह के संस्थापक डॉ. शाह आलम राना ने कहा अशफाक-बिस्मिल जैसे चोटी के क्रांतिवीरों की स्मृतियों को समेटे सूबे में सबसे पहले शुरू हुए इस फिल्म समारोह के 16वें संस्करण का आयोजन ऐतिहासिक होगा।
राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, बेनीगंज के सभागार में 10-11 नवंबर को आयोजित होने वाले अयोध्या फिल्म फेस्टिवल में सरोकारी फिल्मों का प्रदर्शन, फोटो एवं दस्तावेजों की प्रदर्शनी, सेमीनार, नाटक, पोस्टर एवं रंगोली प्रतियोगिता, फैशन शो, पुस्तक प्रदर्शनी, फिल्म मेकिंग वर्कशॉप आदि विविध सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन प्रस्तावित है। अयोध्या फिल्म फेस्टिवल आयोजन ने जहां देश-दुनियां के सिने-साहित्य प्रेमियों को अपनी आकर्षित किया है वहीं समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना का प्रकाशपुंज बना है। आयोजन में आने वाले सिनेमा और साहित्य जगत की हस्तियों के साथ ही फिल्मों का मेला भी अब सजने वाला है। पोस्टर रिलीज होने के साथ ही समारोह की तैयारियां अब गति पकड़ ली है। पोस्टर विमोचन के दौरान अयोजन समिति से जुड़े अंकित कुमार, सूर्यकांत पांडेय, अंतरिक्ष श्रीवास्तव, सलाम जाफ़री, डॉ. शिवकरण कर्मयोद्धा आदि की मौजूदगी रही।
कुछ इस तरह शुरू हुआ सिलसिला
अयोध्या फिल्म फेस्टिवल के संस्थापक डॉ. शाह आलम राना बताते हैं कि अवाम का सिनेमा के 17 वर्ष कुछ कम नहीं होते, इसके सफरनामे की शुरुआत 28 जनवरी 2006 को अयोध्या से हुई थी। तब पहली बार डॉ. आरबी राम ने तीन सौ रुपये का आर्थिक सहयोग देकर क्रांतिवीरों की यादों को सहेजने की इस पहल का स्वागत किया था। आजादी आंदोलन के योद्धा और कानपुर बम एक्शन के नायक अनंत श्रीवास्तव के सुझाव पर बना इसका संविधान तो प्रसिद्ध और सरोकारी डिजाइनर अरमान अमरोही ने इसका लोगो बनाया। सत्तरह वर्षों में देश-दुनिया की बहुत सारी शख्सियतें इसकी गवाह बनीं, फिर भी वह दौर आसान नहीं था। बावजूद इसके अयोध्या से लेकर चाहे चंबल का बीहड़ हो, राजस्थान का थार मरुस्थल या फिर सुदूर कारगिल, अवाम का सिनेमा पुरजोर तरीके से अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए राजनीति, समाज सबकी सच्चाइयों को सरोकारी सिनेमा के जरिये समाने लाने में लगातार लगा हुआ है।
आयोजन इस तरह हुआ सफल
17 वर्षों के सफर में देश भर में हुए सफल आयोजनों में देश सहित दुनियां के कई हिस्सों से सरोकारी हस्तियां अपने खर्चे से शामिल होकर हौसला बढ़ाती रही हैं। इसके इलावा क्रांतिकारियों से संबंधित दस्तावेज, फिल्म, डायरी, पत्र, तस्वीरें, तार, मुकदमे की फाइल आदि तमाम सामग्री लोगों से तोहफे में मिली है। गांव, कस्बों से लेकर, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों सहित अन्य शैक्षणिक संस्थानों ने जहां निशुल्क कार्यक्रम स्थल दिया है। विभिन्न सामाजिक संगठनों ने जमीनी स्तर पर जनसहभागिता बढ़ाकर हौसला बढ़ाया है, तो वहीं जन माध्यमों ने इसे नई पहचान देकर सामाजिक बदलाब की इबारत लिखी है। आयोजन से जुड़े साथियों ने फेसबुक, ट्विटर, पत्र, ईमेल, नुक्कड़ मीटिंग, चर्चा करके आयोजन की सूचना समाज से साझा करते रहे हैं तो वहीं कई ने क्रांतिकारियों पर लगातार लिखकर जागरूकता बढ़ाई है। साथ ही वीडियो, फोटो, दस्तावेजीकरण और प्रकाशन में आर्थिक और श्रम सहयोग देकर इस विरासत को आगे बढ़ाया है। यही आयोजन की सबसे बड़ी सफलता है।
अयोध्या फेस्टिवल के प्रतीक का इतिहास
अयोध्या फिल्म फेस्टिवल में प्रतीक के तौर पर यहां के प्राचीन सिक्के का प्रयोग किया गया है जो पुरातन अवध के ही हिस्से में प्राप्त हुआ था। भारत और विश्व के इतिहास में पहली बार सिक्कों का चलन यहीं शुरू हुआ। ये जनपद 1200 ईसा पूर्व और 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच अस्तित्व में रहे और भारतीय उपमहाद्वीप में फैले। इनमें कुल 56 राज्य और 16 महानजपदों में शामिल माने जाते हैं। माना जाता है कि इनमें से कुछ सिक्के बुद्ध के जीवन काल के दौरान अच्छे से ढाले गए होंगे। राजगोर के अनुसार, शाक्य कालीन मुद्रा 100 रत्ती के बराबर तक होता था, जिसे शतमान कहा जाता था। शतमान आठ षण में विभाजित था, जबकि अयोध्या फिल्म फेस्टिवल के लोगो में दर्शाए गए सिक्के में पांच षण शामिल हैं।
फोटो: मंडल कारागार, अयोध्या में आज पोस्टर जारी करते हुए पिछले वर्ष का फाइल फोटो