तरुण प्रकाश, सीनियर एसोसिएट एडिटर-ICN आज मैंने सोच रखा था, कुछ नहीं भूलूगां आज – कुछ भी नहीं। अपने रूमाल में गांठ बांधकर रखी थी ताकि जितने बार जेब में मेरा हाथ जाये, रूमाल की गांठ मुझे मेरे संकल्प की याद दिलाती रहे। यह विधि बचपन में मुझे मेरी दादी ने बताई थी। मैंने सोच रखा था, शारीरिक- मानसिक -तकनीकी जितनी भी विधियाँ संभव है- मैं सबका सहारा लूगां लेकिन कुछ भी नहीं भूलूगां आज। कल रात में ही छोटी बेटी ने कह रखा था कि सवेरे उसके स्कूल में…
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