डॉ. शाह आलम राना, एडीटर-ICN HINDI
लखनऊ : अशफाक उल्ला खां एक ऐसे क्रांतिवीर जो वतन की आजादी के लिए महज सत्ताईस साल की उम्र में कुर्बान हो गए। उनकी रगों में बहता लहू का हर एक कतरा सिर्फ इस देश की आजादी के लिए ही था। वे देशभक्ति की ऐसी मिसाल हैं जिनका बस नाम ही काफी है। अशफाक के लिखे वे राज जो उनकी डायरी के पन्नों में दफ्न थे, उनकी तहें पहली बार खोली जा रही हैं।
जून, 2011 गर्मियों की बात है। अशफाकके शाहजहांपुर स्थित पुश्तैनी घर जाना हुआ। क्रांतिवीर अशफाक उल्ला खां के घर की दहलीज पर खड़ा था आखिरकार घर के कुछ सदस्यों से मुलाकात हुई। बातचीत के क्रम में क्रांतिवीर अशफाक की विरासत को खुली आंखों से देखने का भी मौका हाथ लग गया। सब कुछ एक दिवा स्वप्न जैसा था। जो भी अनमोल विरासत मिली वह आजादी के दीवाने अशफाक के और करीब लेकर चली गई।
मुझे उनके घर से वह डायरी और कुरान मजीद की वह प्रति भी मिली, जिसपर उनके हाथों से लिखे कुछ नोट्स थे। कुरान मजीद पर फांसी पर झूलने से एक दिन पहले उन्होंने जो नोट लिखा वह उनकी शख्सियत को समझने के लिए बेहद अहम है। बेहद ही साफ-सुथरी हैंडराइटिंग में ऊर्दू, फारसी औरअरबी में उनके जज्बात खिलकर बाहर आते हैं। अब यह जान लेना भी बेहद जरूरी है कि फांसी से ठीक एक दिन पहले उन्होंने कुरआन पर क्या लिखा – कुरआन मजीद खोलते ही पहले दो खाली पन्नों पर उन्होंने खुदा से दुआ करते हुए लिखा है कि – ऐ मेरे पाक खुदा, मेरे गुनाह माफ फरमा और माफी अता फरमा और हिंदुस्तान की सरजमीं पर आजादी का सूरज अब जल्द तुलुअ (निकलना) फरमा …. अशफाक 18 दिसंबर को फैजाबाद जेल में आजादी वतन की खातिर पर फांसी पर मरा….हसरत अशफाक वारसी यह ऊर्दू में लिखे उस पन्नें की चंद लाइने हैं। ऐसी ही न जाने कितनी बातें उन्होंने अपनी डायरी में भी लिखी हैं। अशफाक की डायरी के पन्नों को दीमक धीरे-धीरे खा रहे थे। ऐसा लगा जैसे यह समाज अपने क्रांतिवीरों की यादों और उनके अदब की तहजीब को भुलाता जा रहा है।
अशफाक की डायरी का एक पन्ना उनकी उस हसरत को बताता है कि वे कैसे अपने दोस्तों और बच्चों में भी आजादी का रंग भर देना चाहते थे। वे अपनी डायरी में बेहद खूबसूरत अंग्रेजी हैंडराइटिंग में लिखते हैं कि जब तीस करोड़ लोग एक कोरस में धरती मां के लिए आजादी का गीत गाएंगे तो सारा जुल्म-ओ-सितम व दर्द गायब हो जाएगा। वह चमक जो फीकी पड़ गई उसकी आभा भी बढ़ जाएगी। अशफाक अपने उद्घरणों में गौतम बुद्ध और महान अशोक की शिक्षा भी लोगों को देते हैं। वे बुद्ध की सच्ची शिक्षा का अनुसरण भी करने को कहते हैं साथ ही उस दिन की भी कल्पना करते हैं कि जब समूचा देश एक राग और सुर में देश की आजादी के लिए तान छेड़ेगा।
काकोरी एक्शन में शामिल रहे क्रांतिवीर शचीन्द्रनाथ बख्शी के विचारों को आगे बढ़ाते हुए अशफाकउल्ला खां मेमोरियल शहीद शोध संस्थान के निदेशक सूर्यकांत पांडेय कहते हैं कि ‘जब काकोरी एक्शन को लेकर शाहजहांपुर में गुप्त मीटिंग चल रही थी तो दूर-दृष्टि अशफाक का इससे मतभेद था। अशफाक का तर्क था कि अभी हमारा दल नया है। पकड़े जाने पर ‘इंकलाब’ की धारा रूक जाएगी लेकिन जब एक्शन का बहुमत से फैसला हो गया तो अशफाक के भीतर लोकतंत्र था और उसका सम्मान करते हुए पूरे जोश से इस एक्शन में क्रांतिकारियों के सहयात्री बने। ऐसा नहीं कि उन्होंने अलग पार्टी बना ली।’
अशफाक के सारे दुर्लभ दस्तावेजों, स्मृतियों को सामने रखकर ही संपूर्णता में समझा जा सकता है कि उनके जेहन में कैसे समाज का खाका था। हमें इस बात की खुशी है कि अशफाक की डायरी और उनके मुकदमे से जुड़े सारे दस्तावेजों की प्रदर्शनी गांव-गिराव से लेकर शहर तक आयोजित इन छह सालों में कर सका लेकिन यह नाकाफी है। अशफाक उल्ला खां का एक खत इस मर्तबा मै तुमसे कुछ अहम माआमलात पर तबादला ए ख्यालात करना चाहता हूं। इसलिए मुझे यह ज्यादा मुनासिब मालूम हुआ कि मैं तुम्हें उर्दू मे खत लिखू। लेनिन का पता मुझे तुम्हारे खत से मालूम हो गया। मैं आज ही उसे भी खत लिख रहा हूं। राम का क्या हाल है? तुम्हारी उससे मुलाकात हुई है या नहीं? राम के नाम आशिक का पर्चा जो तुम्हें मिला है, बराए करम उसे बिला ताखीर राम को पहुंचा दो और उससे कह दो कि जितनी जल्द मुमकिन हो वह मुझे खत लिखे। तुम्हें मालूम है कि मेरे पास एक कौड़ी भी नहीं है जिससे मैं काम चला सकूं। मुलाजमत के मानी हैं अपने जमीर का खून कर देना।और यह बात तुम्हें अच्छी तरह मालूम होनी चाहिए कि मैं आजाद जिंदगी बसर करना चाहता हूं। मैं आजादी का पुजारी हूं और उसकी एक झलक देख लेने के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर सकता हूं। गुलामी का तोक मैं अपने गले मे हरगिज नहीं डालना चाहता ख्वाह वह किसी किस्म का हो। मैं उसके तसव्वर ही से कांप जाता हूं और जब उसका ख्याल मुझे आ जाता है तो घंटो रोता रहता हूं। लेकिन मेरे अज़ीज़ों की ख्वाहिश है कि मैं कोई मुलाजमत जरूर अख्तियार कर लूं और इस तरह मुझे अपनी बूढ़ी माँ की खिदमत करनी चाहिए। बिला शुबहा यह बात दुरुस्त है और हमारे मजहब की तालीम भी यही है। लेकिन मैं सोचता हूं कि इसके बाद मुझे मादरे वतन की खिदमत का मौका न मिल सकेगा।
अगर मैं भोपाल मे मुलाजमत करने पर आमादा हो जाऊँ तो सर असरार हसन खां मुझे फौरन कोई न कोई मुलाजमत दिला देंगे। मेरे भाई ने उनसे मिलने के लिए मुझे ताकीद की है और मुझे उम्मीद है कि उनकी सिफारिश से मुझे फौज में सूबेदार का ओहदा मिल जाएगा। लेकिन उसका नतीजा क्या निकलेगा? यह कि मेरे तमाम मंसूबे धरे के धरे रह जाएंगे। मुझे सिर्फ इसलिए तो अपनी जिंदगी अजीज नहीं कि रुपया कमाऊ और ऐश करूँ।
मैं तो वतन की आजादी के लिए जिंदा रहना चाहता हूं। मैं इसके लिए बड़े से बड़े खतरे की भी परवा नहीं करता। मुझे इस बात की फिक्र नहीं कि दुनियां मुझे दीवाना या पागल कहकर पुकारेगी। आजादी मेरा अकीदा है, मैं इसी के लिए जिऊंगा और इसी के लिए मरुंगा। यह है मेरा अहसास- शाहजहांपुर की गलियों और सड़कों पर घूमते-घूमते थक गया हूं।
तुम्हें मालूम है कि मैं एक गाँव का मालिक हूं। नहीं, बल्कि मुझे यह कहना चाहिए कि मेरी माँ जमींदार हैं। और बगैर किसी दिक्कत के जितनी जमीन चाहूं, मुझे मिल सकती है। मैं खेती-बाड़ी करना चाहता हूं, लेकिन काम शुरू करने के लिए मेरे पास रुपया बिल्कुल नहीं है।
अगर तुम मंजूर करो और तुम्हें इस काम से दिलचस्पी भी हो तो इसमे रुपया लगाने को तैयार हो जाओ, वहीं चलकर रहेंगे। अपने किसान भाइयों के साथ ज़िंदगी गुजारेंगे और अपनी स्कीम को कामयाब बनाएंगे और इस तरह चंद ही साल मे एक माकूल रकम जमा हो जाएगी। जिससे हम वसीय पैमाने पर प्रोपेगंडा कर सकेंगे और दोस्तों को अपने साथ मिलकर काम करने की दावत देंगे।
मुख्तसर यह है कि हमारे लिए दुनियां में अगर कोई मुकद्दस और मुफीद काम है तो वह खेती-बाड़ी है। बशर्ते कि तुम मेरी मानो। अगर तुमने इंकार किया तो इससे मुझे दु:ख होगा। आखिर तुम्हें अपने बच्चों और बीबी के लिए तो कुछ न कुछ करना होगा। फिर आओ, हम काश्तकारी ही क्यूं न करें। सरमाया तुम्हारा होगा, जमीन मेरी और मेहनत हम दोनों की। हम दोनों हकीकी भाइयों की तरह गांव मे रहेंगे और हालात का मुकाबला करके दुनियां को दिखा देंगे कि दो नौजवानों के लिए कोई नामुमकिन काम भी नामुमकिन नहीं है जबकि दोनों का ख्याल एक हो और दोनों एक ही रास्ता अख्तियार करें।
नन्दिया और सालपुर की जमीनें हमारे लिए आगोश खोले हुए हैं। उनकी मुहब्बत भरी नजरें हम पर लगी हुई हैं। और वहां के गरीब और हमदर्द किसान हमें खुश आमदीद कहने के लिए तैयार हैं। इसलिए मैं तुमसे कहूंगा कि भाई, इस जमीनों को मायूस न करो और उन किसानों का दिल न तोड़ो। अब मुझे बताओ, तुम्हारी क्या राय है? क्या तुम इसके लिए तैयार हो?
अगर मेरे पास सरमाया होता तो मैं तुम्हें यह कुछ न लिखता, बल्कि काम शुरू कर देता तुम्हें अपना हिस्सेदार बना लेता। मगर अफसोस- मेरे पास एक पाई भी नहीं है और मेरे रिश्तेदार इस काम मे किसी तरह की इमदाद करने के बजाए गुलामी के गड्ढे में धकेलने पर तुले बैठे हैं। वह खेती की अहमियत और इस बात को कतई महसूस नहीं करते कि हिंदुस्तान की आजादी का दारोमदार किसानों पर है। इसलिए आओ हम एकट्ठे खेती बाड़ी करें।
देखो, देवनारायण और गंगा सिंह काश्तकारी से कितना फायदा उठा रहे हैं। तुम देखोगे कि सिर्फ दो ही साल के बाद बहुत से दोस्त हमसे आ मिलेंगे और हम अपने आला मकासद को बरवए कार लाने के काबिल हो जाएंगे।
-वारसी
(शहीद-ए-वतन अशफाक ने यह खत बनारसी लाल के नाम भोपाल से शाहजहांपुर भेजा था। इस खत का अंग्रेजी तर्जुमा अदालत के रिकार्ड मे महफूज है। जो काकोरी केस में एक्स पी 14 है)