इन्फोसिस पर यूएस में ओवरटाइम नहीं देने का केस, पहले भी घिर चुकी कंपनी

बेंगलुरु। देश की टॉप सॉफ्टवेयर कंपनियों में शामिल इन्फोसिस के एक पूर्व एंप्लॉयी ने अमेरिका में उसके खिलाफ ओवरटाइम का भुगतान न करने का केस दर्ज कराया है। इसकी जांच अमेरिका का लेबर डिपार्टमेंट कर सकता है। इन्फोसिस पहले भी ओवरटाइम पर मुश्किलों का सामना कर चुकी है।रोड आइलैंड में सीवीएस प्रॉजेक्ट से जुड़े कंपनी के पूर्व एंप्लॉयी अनुज कपूर ने इन्फोसिस पर हजार घंटे से अधिक के ओवरटाइम का भुगतान नहीं करने का आरोप लगाया है। कंपनी ने जवाब में कहा है कि कपूर को एच1-बी वीजा पर घंटे के आधार पर काम पर लगाया गया था। हालांकि, इन्फोसिस ने लेबर डिपार्टमेंट में दाखिल की गई लेबर कंडीशन एप्लिकेशन में उन्हें सैलरीड एंप्लॉयी बताया था। इसी वजह से मामले की लेबर डिपार्टमेंट की ओर से जांच हो सकती है। कपूर ने कोर्ट में दर्ज कराए गए मामले में कहा है कि उन्हें 11 घंटे की नौकरी करनी पड़ती थी, जबकि भुगतान आठ घंटे या उससे कम के लिए किया जाता था, क्योंकि सीवीएस ने ओवरटाइम के लिए बिलिंग से इनकार कर दिया था। कपूर के मुताबिक, उनके मैनेजर ने कहा था कि ओवरटाइम का भुगतान नहीं किया जाएगा और जो एंप्लॉयीज सप्ताह में 40 घंटे से अधिक कार्य करने से मना करेंगे, उन्हें वापस भारत भेज दिया जाएगा। मैनेजर का कहना था कि अतिरिक्त कार्य बिना बिलिंग के किया जाएगा, क्योंकि सीवीएस के प्रमुख सॉफ्टवेयर वेंडर के तौर पर इन्फोसिस एक प्रतिस्पर्धी कंपनी को मात देने की कोशिश कर रही है। मामले में कहा गया है, वादी (कपूर) का अनुमान है कि मई 2015 से जून 2017 के बीच उन्होंने लगभग कंपनी के लिए लगभग 1,084 घंटे का ओवरटाइम किया और इसके लिए उन्हें कोई भुगतान नहीं मिला। इन्फोसिस इससे पहले भी ओवरटाइम से जुड़े मामलों का सामना कर चुकी है। 2008 में कंपनी ने ओवरटाइम नहीं चुकाने की एक जांच के निपटारे के लिए 2.6 करोड़ डॉलर चुकाए थे। इस बारे में इन्फोसिस के प्रवक्ता ने कहा, रोड आइलैंड में एक पूर्व एंप्लॉयी ने ओवरटाइम के भुगतान की समस्या का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई है। इन्फोसिस इस एंप्लॉयी की ओर से लगाए गए सभी आरोपों से इनकार करती है और इस मामले में अपना पक्ष रखेगी। इन्फोसिस अमेरिका में सभी कानूनों का पालन करती है। वहीं, कपूर ने इस बारे में कुछ भी कहने से मना कर दिया। ईटी ने इस मामले से जुड़े दस्तावेज देखे हैं। इनसे पता चलता है कि स्टेट ऑफ रोड के वेज ऐंड आवर डिपार्टमेंट ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है। इसमें इन्फोसिस की ओर से एच1-बी वीजा के आवेदन में गलत जानकारी देने की संभावना को देखा जाएगा।

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