आलोक सिंह, एडिटर-ICN
ज़िन्दगी इम्तिहान बड़े लेती है
सवाल कुछ बड़े छोड़ती है
बस कोशिशों की लड़ियाँ हैं
उन्ही में सब जवाब ढूंढती है
ख्वाहिशें उम्मीदें कहाँ छोड़ती है
रातभर लम्हा लम्हा जोड़ती है
उठकर सुबह इक लिबास बुनती है
उस लिबास में फिर ज़िन्दगी बुनती है
मायूसी भी अजीब सिलवटें छोड़ती है
सिलवटों में करवटों का हिसाब ढूंढती है
हिसाब में मुश्किलें बेहिसाब दिखती हैं
फिर सिरा कोई ढूंढ़ के नया ख़्वाब देखती है
ज़िन्दगी इम्तिहान बड़े लेती है
सवाल कुछ बड़े छोड़ती है…