सत्येन्द्र कुमार सिंह, एग्जीक्यूटिव एडिटर-ICN ग्रुप
क्या यह महज संयोग है कि आज जहाँ एक ओर हम बाल दिवस मना रहे है वही विश्व पटल पर मधुमेह दिवस भी मन रहा है| चलिए, एक सवाल पूछता हूँ| किसी भी बच्चे को खेल ज्यादा पसंद है या पढ़ाई; विशेष तौर पर भारतीय परिपेक्ष में|
मेरा उत्तर तो खेल ही है और इस बात के दो अंश है| पहला अंश यह कि वर्तमान भारतीय परिवेश में क्या हम इस बात की गारंटी लेते है या इस बात से संतुष्ट है कि नामी-गिरामी अथवा महंगे विद्यालय में अपने बच्चों को पढ़ाने के बाद, उनका भविष्य सुरक्षित कर लिया है?
क्या हम स्कूल या कॉलेज में महंगी फीस देने के बाद इस बात की गारंटी मांगते है कि हमारा बच्चा कुशल बनेगा और वह आगे की जिंदगी में सफल बनेगा? जिंदगी की गाढ़ी कमाई से ज्यादा हम उम्मीद का निवेश करते हैं किन्तु जब हम पाते हैं कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी लोग अन्य क्षेत्र में रोजगार तलाशते हैं तो एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगता है अपनी सोच पर और वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर|
दूसरा अंश यह कि जब खेल के लिए कोई आगे बढना चाहता है तो हम उसे हतोत्साहित करने लगते हैं कि इसका कोई भविष्य नहीं है| फिर किसी अवसर पर इस बात की शिकायत भी करते है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत से खेल में हम पिछड़े हुए है| चलिए, एक विश्लेष्ण करते है| कौन ज्यादा प्रसन्न होगा- जिसको खेलने का अवसर मिलेगा या जिसे अवसर नही मिलेगा? कौन ज्यादा स्वस्थ होगा – जिसको खेलने का मौका मिलेगा या जिसे यह मौका नही मिलेगा?
आज अगर कोई बच्चा खेलता है या अन्य शारीरिक क्रियाओं में अपना कुछ समय देता है तो उसका मन और मस्तिष्क ज्यादा तरोताजा होगा और उसका अपने अध्ययन में प्रदर्शन भी बेहतर होगा| और अगर यह बच्चा, स्कूल में पढ़ते हुए डिस्ट्रिक्ट या राष्ट्रीय स्तर पर सर्टिफिकेट प्राप्त करता है तो बहुत से महाविद्यालय में उसे स्पोर्ट्स कोटा में एडमिशन मिल सकता है| यहाँ तक कि कई कॉलेजों में उन्हें शिक्षा भी फ्री में मिल सकती है|
एक बार मैंने जो खेल से मुहब्बत की,
सारी उम्र उसका नशा तमाम न हुआ|
खेल कोई टाइम पास नहीं बल्कि एक जीवन शैली है| इसे भले ही व्यवसाय ना बनाया जाए किन्तु अपने बचपने को खत्म न होने दें| अपने बच्चों को खेलने के लिए प्रेरित करिए वरना जो जीवन शैली बनती जा रही है उससे अल्पायु में गंभीर बिमारियों का शिकार बनना कोई अचरज की बात नही है|
अपने बच्चों को खेलने के शौक की चाशनी दीजिये| ये मधुमेह बड़ी आसानी से तड़ीपार हो जायेगा| नियमित तौर पर खेलिए और जी लीजिये अपनी ज़िन्दगी| घूमिये-फिरिए; धेले मारकर आम तोडिये; शैतानी कीजिये; मस्ती कीजिये कि ये ज़िन्दगी ना मिलेगी दुबारा| तनाव मुक्त रहिये और स्वस्थ रहिये|
यह बाल दिवस बच्चों को ही नही, हम सब के अन्दर छुपे हुए बचपने को भी मुबारक|
एक बात और; कन्या भ्रूण हत्या को रोकिये और उस अजन्मे बच्चे को भी साँसे लेने दीजिये हम सबके साथ| और खुद से वादा कीजिये कि इस अवसर पर अपने बच्चों को उचित संस्कार देने का कार्य ज़रूर करेंगे|