न डराओ मुझे माँ कह कर

सत्येन्द्र कुमार सिंह ( एसोसिएट एडीटर-ICN ग्रुप )

मै एक माँ हूँ| तुम मुझे अपनी पूज्य मानते हो- ऐसा तुम कहते फिरते हो| किन्तु यथार्थ की वेदी पर इसमें मुझे कोई शंका नहीं किन्तु पूर्ण विश्वास है कि इसमें अब सत्य का सत्व खत्म हो गया है|

तुमने मुझे माँ के अनेक रूप में बांध दिया है| हाँ, बाँध ही दिया है क्योंकि मेरा अस्तित्व तो मृतप्राय है| आदि काल से तुमने मुझे गंगा कह कर पुकारा| अपने पाप धोते तो अच्छा था किन्तु तुमने तो अपने मल-मूत्र के साथ रासायनिक भावनाएं भी प्रवाहित कर दिया मुझमे| मै मरती जा रही हूँ| मत कहो मुझे माँ कि तुम मुझे कुछ और नहीं केवल पुरानी नदी मानते हो| केवल त्वरित फायदे के लिए चुनाव का एक मुद्दा भर ही तो मेरी हस्ती है|

और तुम्हे याद है कि बचपन में तुमने मेरे दूसरे रूप यानि गौ माता के तौर पर पाला था| विगत कुछ दशकों से मेरे चारागाह को छीन लिया मुझसे और अपने भांति मुझे भी नाद में पुराना सूखा हुआ भूसा जिसमे कोई स्वाद नहीं, पोषण नहीं, खिलाना शुरू कर दिया| जो मैंने अपना मुंह मोड़ लिया तो उसमे थोड़ा स्वाद मिला दिया| मैंने भी अपने मन की बात कहना छोड़ दिया| माँ हूँ न! तुझ पर आश्रित हूँ| इसलिए जैसे रखेगा, रह लूंगी| पर फिर भी कहूँगी की माँ मत कहना मुझे कि कसाई के पास भेजने में कोई तकलीफ न हो तुम्हे|

मै एक जगत शब्द हूँ- मैं माँ हूँ| तुझे एक आकार देने हेतु मैंने एक शरीर धारण किया और तुझे एक अबोध बालक के रूप में इस दुनिया में ले आयी| और कलयुगी प्रदूषण में इस भावना का भी अंतिम संस्कार हो गया जब वृद्ध-आश्रम में तुमने मुझे पहुंचा दिया| तेरे पिता की सारी निशानी इतनी प्रिय थी तुम्हे कि सम्पत्ति को तो अपने पास रख लिया किन्तु मुझे अपने अगले पीढी से मिलने भी नहीं दिया| खैर, तुम्हे बहुत-बहुत धन्यवाद कि तुमने भविष्य की होने वाली माँ का क़त्ल भी कोख में कर दिया|

यह हवा, यह पानी मेरे, सारे अंग भी तूने खत्म कर दिया| मेरे धरा रूप को इतना नोचा है तुमने कि अब तो रक्त की धार भी नहीं निकलती| अन्न उत्पादन तथा तरक्की के हवस का शिकार कोई और नहीं, मैं हुई हूँ| मै-तेरी माँ|

काश कि मेरी प्रजनन क्षमता खत्म हो जाए कि तुम जैसा प्राणी ना हो इस धरा पर कि तूने मेरे अन्य बच्चों का जीना दुश्वार कर दिया है| वो पेड़, वो अन्य जीव-जंतु, तेरे बन्धु न सही किन्तु मेरी संतान तो है| उन्हें तो मुझे मेरा हक लौटने दो| उन्हें तो जीवित रहने दो|

ममता की विवशता कि तेरे विकास की आकांक्षी भी हूँ| हाँ, किसी ने सच ही कहा है कि विकास पागल हो गया है| मै तेरी माँ, अपनी इह लीला समाप्त होते देख रही हूँ| किन्तु आज तुझसे अपना हक वापस लेना चाहती हूँ और अंतिम निवेदन कर रही हूँ- न डराओ मुझे माँ कह कर!

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