राणा अवधूत कुमार
दक्षिणी, बिक्रमगंज व 2009 में परिसीमन के बाद बना काराकाट, 1952 से 2014 तक काराकाट लोकसभा से चुनकर गए हैं कुल 12 सासंद।
सासाराम। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे काराकाट (पूर्व में बिक्रमगंज) संसदीय क्षेत्र पर 1989 के बाद से इस क्षेत्र में समाजवादियों का कब्जा रहा है। देश की दोनों प्रमुख पार्टियां कांग्रेस व भाजपा काराकाट सीट से दूर ही रही है। यहां राजद, जदयू, समता व रालोसपा जैसी क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व रहा है। 1991 के बाद भाजपा ने तो काराकाट में कभी अपने प्रत्याशी ही नहीं उतारे। भाजपा इसके बाद हर चुनाव में यह सीट अपने सहयोगी जदयू, समता या रालोसपा को दे दी है। सहकारिता सम्राट तपेश्वर सिंह की कर्मस्थली रहे इस क्षेत्र में अब कांग्रेस का नाम लेने वाले भी कम ही रह गए हैं। 2009 में कांग्रेस ने अवधेश सिंह को प्रत्याशी जरूर बनाया था। लेकिन इस सीट पर 1989 के जनता दल के लहर के बाद दोनों प्रमुख दल लड़ाई से बाहर ही रहे हैं। इस बार भी एनडीए गठबंधन की ओर से पूर्व सांसद महाबली सिंह को तो महागठबंधन की ओर से मौजूदा सांसद उपेंद्र कुशवाहा को प्रत्याशी बनायी है। इस सीट की विडंबना रही है कि क्षेत्र व पार्टी के साथ सासंद बदलते रहे हैं। कोई प्रत्याशी यहां से दो बार से अधिक सांसद नहीं बन सका है।
1952 से 1984 तक कांग्रेस इस सीट पर रही थी हावी
1952 में शाहाबाद दक्षिणी क्षेत्र के नाम से जाने जाने वाले इस क्षेत्र से निर्दलीय सांसद बने थे कमल सिंह। हालांकि बाद में उन्होंने कांग्रेस को समर्थन दिया था।1962 में यह सीट बिक्रमगंज क्षेत्र बन गया। जिसके पहले सांसद कांग्रेस के राम सुभग सिंह बने। 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के शिवपूजन शास्त्री सांसद बने। 1971 में शिवपूजन शास्त्री कांग्रेस के टिकट पर दूसरी बार सांसद बने। 1977 में भारतीय लोक दल के राम अवधेश सिंह सांसद बने। 1980-84 में कांग्रेस के दिग्गज नेता तपेश्वर सिंह लगातार दो बार सांसद बने। इसके बाद कांग्रेस इस सीट पर कभी जीत नहीं दर्ज कर सकी। 1989-91 में जनता दल के लहर में रामप्रसाद सिंह यहां से दो बार सांसद बने रहे। इसके बाद हर चुनाव में यहां से अलग-अलग दलों के प्रत्याशी सांसद बने।
1996 से काराकाट से लगातार बदल रहे हैं सांसद
काराकाट संसदीय क्षेत्र देश के उन कुछ चुनिंदा लोकसभा सीटों में रही है। जहां किसी सांसद को दो बार से अधिक प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला है। 1996 में जनता दल से ही कांति सिंह सांसद बनी। 1998 के चुनाव में समता पार्टी के टिकट पर जदयू के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नरायण सिंह कांति सिंह को हरा कर सांसद बने। लेकिन एक वर्ष बाद ही 1999 में कांति सिंह राजद के टिकट पर दूसरी बार सांसद बनी। 2004 में तपेश्वर सिंह के बेटे अजीत सिंह जदयू की टिकट पर चुनाव लड़ कर पिता की विरासत संभाली। 2008 में सड़क हादसे में अजीत सिंह के असामयिक निधन होने पर उनकी पत्नी मीना सिंह जदयू की टिकट पर उप चुनाव में सांसद बनी।2009 में परिसीमन होने के बाद बिक्रमगंज का नाम काराकाट संसदीय क्षेत्र हो गया।जहां परिसीमन के बाद पहली बार चुनाव में जदयू के महाबली सिंह ने कांति सिंह को हरा कर सांसद बने। 2014 में मोदी लहर पर सवार वैशाली से आए रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा कांति सिंह को हरा सांसद बने। जदयू प्रत्याशी महाबली सिंह तीसरे नंबर पर चले गए।
इस बार जदयू-रालोसपा में है सीधा मुकाबला
17 वीं लोकसभा चुनाव में एनडीए की ओर से जदयू प्रत्याशी महाबली सिंह व महागठबंधन की ओर रालोसपा प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा के बीच सीधी टक्कर है। दोनों गठबंधनों की ओर से जातीय समीकरण को ध्यान में रख प्रत्याशियों का चयन किया गया है। लेकिन बसपा द्वारा भी इस सीट पर स्थानीय उम्मीदवार अनिल सिंह यादव के उतरने से मुकाबला रोचक होने की पूरी संभावना है। रालोसपा जहां यादव, मुस्लिम व कुशवाहा वोट के सहारे ही चुनावी जीत के मंसूबे पाले हुए है। वहीं जदयू सवर्ण वोटरों के अलावे अति पिछड़े वोटों की सियासत कर चुनावी जीत हासिल करना चाह रही है। इस बीच बसपा अपने कैडर दलित वोटरों के साथ यादव मतों पर नजर बनाए हुए है। जिससे काराकाट संसदीय क्षेत्र का मुकाबला रोचक होने की संभावना है।
काराकाट सीट की भौगोलिक संरचना
परिसीमन के बाद 2009 में अस्तित्व में आए काराकाट लोकसभा सीट रोहतास व औरंगाबाद के बीच का संसदीय क्षेत्र है। जिसमें कुल छह विधानसभा क्षेत्र शामिल किए गए हैं। इस सीट में रोहतास जिला के नोखा, डेहरी, काराकाट विधानसभा क्षेत्र व औरंगाबाद जिला के गोह, ओबरा व नवीनगर विधानसभा सीटें शामिल हैं। यहां लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में 19 मई को एक साथ सभी मतदान केंद्रों पर मतदान कराएं जाएंगे। लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 1569989 है।महिला मतदाताओं की संख्या 724282, पुरूष मतदाताओं की संख्या 845707 है।
वर्तमान सांसद – उपेंद्र कुशवाहा (मोदी कैबिनेट में एचआरडी राज्य मंत्री रहे)
काराकाट संसदीय सीट से 2014 के आम चुनाव में रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा पहली बार लोकसभा सांसद बने। मोदी लहर पर सवार होकर चुनाव जीतने पर कुशवाहा को मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री की अहम जिम्मेवारी मिली। पांच साल तक सत्ता सुख भोगने के बाद चुनाव से ठीक पहले एनडीए को लात मार महागठबंधन की सवारी करने चुनाव में निकले हैं। मूल रूप से वैशाली जिला के जवाज गांव निवासी उपेंद्र कुशवाहा इस बार काराकाट के साथ उजियारपुर में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय के खिलाफ भी चुनाव लड़ रहे हैं। देखने वाली बात होगी कि दो सीटों से चुनाव लड़ने वाले कुशवाहा की 23 मई के बाद क्या स्थिति रहती है?
काराकाट लोकसभा सीट से जुड़े ग्राफिक्स:
1999 – कांति सिंह, राजद (जीत), 256443 (मिले मत); वशिष्ठ नारायण सिंह, समता (हार), 196342 (मिले मत)।
2004 – अजीत सिंह, जदयू (जीत), 305392 (मिले मत); रामप्रसाद सिंह, राजद (हार), 246591 (मिले मत)।
2009 – महाबली सिंह, जदयू (जीत), 196946 (मिले मत); कांति सिंह, राजद (हार), 176463 (मिले मत)।
2014 – उपेंद्र कुशवाहा, रालोसपा (जीत), 338892 (मिले मत); कांति सिंह, राजद (हार) 233651 (मिले मत)।