मोबाइल पर आफत

अमेरिका और चीन का ट्रेड वॉर दुनिया भर के आम उपभोक्ताओं पर भी सीधा असर डालने वाला है। चीन के कारोबार के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों की आंच दुनिया की सबसे बड़ी दूरसंचार उपकरण निर्माता कंपनी हुवावे तक पहुंच चुकी है।

अमेरिका ने इस चीनी कंपनी पर प्रतिबंधों में 90 दिन की छूट देने का फैसला किया है। उसका कहना है कि भारी परेशानियों को रोकने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए। यह जरूर है कि इस देरी से बैन के फैसले पर असर नहीं पड़ेगा। गौरतलब है कि अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए हुवावे को पिछले हफ्ते एनटिटी लिस्ट में डाल दिया था। इस लिस्ट में शामिल कंपनियां बिना लाइलेंस के अमेरिकी फर्मों के साथ कारोबार नहीं कर सकतीं। अमेरिका कई सालों से यह आरोप लगाता रहा है कि हुवावे के उपकरणों के जरिए चीन उसकी जासूसी कर रहा है। पिछले साल उसने अपने सहयोगी देशों से भी हुवावे का बहिष्कार करने की अपील की थी। उसके कहने पर पिछले साल हुवावे की सीएफओ मेंग वांगझू की कनाडा में गिरफ्तारी हुई थी। हुवावे पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर चीन ने कहा है कि वह अपनी कंपनियों के हितों और अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाएगा। हुवावे पर बैन के बाद अमेरिकी कंपनी गूगल ने उसके साथ अपनी पार्टनरशिप खत्म करने की घोषणा कर दी। अब वह हुवावे को एंड्रॉयड का अपडेट देना बंद कर देगी, यानी हुवावे स्मार्टफोन में गूगल प्ले स्टोर, जीमेल और यूट्यूब जैसे ऐप्स की सेवा बंद हो जाएगी। ऐसे में हुवावे को एंड्रॉयड के पब्लिक वर्जन से काम चलाना होगा। गूगल का एंड्रॉयड ओपन सोर्स प्रॉजेक्ट कोई भी इस्तेमाल कर सकता है। पूरी दुनिया में 2.5 अरब डिवाइस इस प्रॉजेक्ट के साथ ही एक्टिव हैं। वैसे गूगल इस प्रॉजेक्ट में अन्य लोगों को टेक्निकल सपोर्ट देगा लेकिन हुवावे को यह सहूलियत नहीं मिलेगी। देखना है, हुवावे इस स्थिति से निपटने के लिए क्या कदम उठाती है। सचाई यह है कि ट्रंप भले ही चीनी कारोबार को तबाह करना चाहते हों पर इससे नुकसान हर किसी का हो रहा है। कुछ समय पहले चीनी उत्पादों पर 25 फीसदी कर लगाने से अमेरिकियों को चीनी सामान महंगी दरों पर खरीदने पड़ रहे हैं क्योंकि उनके सामने तत्काल इनका विकल्प नहीं है। अभी ऐपल जैसी कई कंपनियां अपने हार्डवेयर चीन में ही बनवाती हैं। चीन के जवाबी कदमों से उनका प्रॉडक्शन प्रभावित हुआ तो क्या होगा, कहना मुश्किल है। अमेरिका में इस कमी की भरपाई का जोखिम शायद ही कोई कंपनी ले क्योंकि कोई नहीं जानता कि प्रतिबंध कब तक लागू रहेगा। फिर रातोंरात किसी चीज की मैन्युफैक्चरिंग शुरू भी नहीं की जा सकती। ट्रंप खुद एक कारोबारी रहे हैं लिहाजा ये पहलू उनकी नजर में भी होंगे ही। लेकिन उनके फैसलों से विश्व कारोबार में जो अनिश्चितता पैदा हुई है, उससे उबरने का कोई उपाय उन्हें जल्द ही खोजना होगा।

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