गर्मी से झुलसते उत्तर भारत को मानसून की फुहारों से भीगने में कुछ वक्त और लगेगा मगर यह खबर सुकून देने वाली है कि मानसून ने केरल में दस्तक दे दी है। भले ही उसके आने में देरी हुई है मगर फिर भी मानसून की बाट जोहती करोड़ों आंखों में उम्मीदें पुख्ता हुई हैं।
लेट लतीफ मानसून इनसानी तरक्की के तमाम दावों के बावजूद आज भी भारत की जीवनरेखा बना हुआ है। गर्मी की तपिश से राहत दिलाने, पेड़-पौधों में नये जीवन का संचार करने के साथ ही खेती का एक बड़ा हिस्सा आज भी मानसूनी बारिश पर निर्भर है। सरकारी व निजी मौसम एजेंसियों ने दावा किया था कि इस बार मानसूनी बारिश के प्रतिशत में कुछ कमी आ सकती है। हालांकि उत्तर भारत में सिंचाई के वैकल्पिक साधनों की उपलब्धता में यह कमी ज्यादा चिंता की बात नहीं है। कृषि प्रधान राज्यों पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सिंचाई के नये संसाधन जुटा लिये गये हैं। कम बारिश में धान की रोपाई का काम कुछ देर से शुरू हो सकता है। मगर महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और उत्तरी कर्नाटक को लेकर चिंता व्यक्त की जा सकती है जो पहले ही सूखे की मार से जूझ रहे हैं। मध्य व पश्चिमी भारत में पानी की कमी में मानसून की कम बारिश नयी समस्याएं खड़ी कर सकती है, जिसके लिये अभी से कारगर योजनाएं बनाने की जरूरत है। अन्यथा पहले से ही तमाम तरह के संकटों से जूझ रहे किसानों की समस्याएं और बढ़ सकती हैं।यह भी एक हकीकत है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में तेरह फीसदी के योगदान के बावजूद खेती पर साठ फीसदी आबादी निर्भर है। वैसे देश में खाद्यान्न के भंडार पर्याप्त हैं मगर मानसून की कमी से देश में सब्जियों व अनाज की कीमतों में जो उछाल आता है, वह उस वर्ग को भी प्रभावित करता है जो खेती पर निर्भर नहीं है। बहरहाल, मानसून उन लोगों के लिये भी राहत की खबर है जो इस समय विकट गर्मी से जूझ रहे हैं। देश की दो-तिहाई आबादी गर्मी से त्रस्त है। एक वेदर वेबसाइट ने दुनिया के जिन पंद्रह सबसे गर्म शहरों की सूची जारी की है, उसमें दस शहर भारत के ही हैं। राजस्थान के चुरु में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचता है। ऐसे में मानसून के आगमन की खबर निश्चित ही सुकून का एहसास करा जाती है। दरअसल, गर्मी अपने साथ जलसंकट भी लाती है। पानी के परंपरागत जल स्रोत सूखने लगे हैं। लगातार नीचे जाता भूजल भी हमारी चिंता की प्राथमिकताओं में शामिल होना चाहिए। जल संग्रहण के परंपरागत स्रोतों के सिमटने और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के चलते दिन-प्रतिदिन समस्या विकट होती जा रही है। ऐसे में हम मानसून का स्वागत करते वक्त वर्षा जल संग्रहण की गंभीर कोशिश करें। जल संकट से निपटने का सबसे कारगर विकल्प यही है कि हम जल संग्रहण की परंपरागत तकनीकों की ओर लौटें तथा पानी के मितव्ययी प्रयोग पर ध्यान दें। साथ ही देश की परंपरागत जल संस्कृति को पुनर्जीवित कर और समृद्ध बनाने की जरूरत भी है।