आकृति विज्ञा, असिस्टेंट ब्यूरो चीफ-ICN UP
बहुत वैज्ञानिकों और दार्शनिकों के बलिदान के लंबे संघर्षों के बाद विज्ञान ने खुद को स्थापित किया।
आज समाज में धर्म को भी व्याख्यायित करने के लिये लोग वैज्ञानिक तर्कों की बात करते हैं जिसके लिये वास्तव में वैज्ञानिक समाज बधाई का पात्र है।लेकिन एक बात हमें समझ लेना है कि कुछ भी अर्थात् जो हम बक दें वही विज्ञान नहीं हो जाता ।विज्ञान की स्पेसिफिक मेथडोलाजी है जो आधुनिक विज्ञान के मानदंड तंय करती है।विज्ञान का यह सुखद समय भी है किंतु पीड़ा तब होती है जब विज्ञान के नाम चिंतन का चरस बोया जाता है।भाषणों में बंहकाया जाता है ।ख़ैर विज्ञान ख़ूबसूरत है इसका मतलब ये नहीं कि सबकुछ विज्ञान ही है या विज्ञान ही सबकुछ है।बस इतना कहना था कि इसका हौव्वा कभी न पालें ,जबरदस्ती अनर्गल तर्क न गढ़ें ।दुनिया में हर शय से ख़ूबसूरती ही हम तक आती है प्रत्यक्ष या परोक्ष ,तत्क्षण या देर से, भौतिक या वैचारिक किसी भी रूप में आती ही आती है।भारतीय प्राचीन विज्ञान के अलग मानदंड हैं उसकी अपनी ख़ूबसूरती है उसके अपने तर्क हैं।हमें सबका सम्मान करना है ।सहमति असहमति अपनी जगह है ।क्रमबद्ध ,सुसंगठित और सुनिश्चित मानदंडों वाली इस दुनिया जहां अनिश्चितता से नयी संभावना और प्रबल हो जाती है ,इस दुनिया में और प्रेम भरे और यह दुनिया सबको प्रेम कर सके ,यह दुनिया भी सद्भावना के साथ सदैव खिलखिलाती रहे इसी प्रार्थना के साथ नमन करते हैं सर सी वी रमन को।
जन्मदिन पर अशेष श्रद्धांजलि।
राघव भईया से बातचीत पर उपजा ज्ञान।