तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
प्रिय मित्रों, हम सब विभिन्न धर्म, मज़हब, पूजन शैली व मतों के अनुनायी हैं और यही हमारी विशेषता है। विश्व में ‘भारत की अनेकता में एकता’ से श्रेष्ठ मिसाल कहीं उपलब्ध नहीं है। किंतु जब भारत पर कोई खतरा मंडराता है तो हमारे वैयक्तिक धर्म ‘राष्ट्र धर्म’ में परिणित हो जाते हैं। आज तो सिर्फ़ भारत ही नहीं, पूरा विश्व और संपूर्ण मानवता ही दाँव पर लगी है और इसलिये हम सबकी ज़िम्मेदारियाँ और भी बढ़ जाती हैं और आज हम हिंदू, मुसलमान, सिख, पारसी एवं ईसाई से पहले ‘मनुष्य’ हैं। विश्व संकट के समय हमारे क्षुद्र निजी झगड़े न केवल अशोभनीय व अक्षम्य हैं वरन् पूरी मानवता के लिये घातक भी हैं। इसी भावभूमि पर इस गीत की रचना हुई है। यदि मेरा यह अकिंचन प्रयास कोरोना के विरुद्ध हमारे सामूहिक युद्ध में किसी भटके हुये को कोई दिशा दिखा सका तो स्वयं को धन्य समझूंगा।
गीत
बहुत समय है, अपनी अपनी,
गाथायें हम फिर बाँचेंगे।
बहुत समय है धर्म दृष्टि से,
एक दूसरे को जाँचेंगे।
किंतु आज के राष्ट्र समर में,
मिल कर साथ निभाना होगा।
(1)
अपने अपने ढोल बजायें,
तो भारत की कौन सुनेगा।
अगर उधेडे़ खुद हम धागे,
सबकी चादर कौन बुनेगा।।
अपना मज़हब अपनी बातें,
अपना मंदिर, अपनी मस्जिद,
तो भारत के महादुर्ग की,
ईंट ईंट को कौन चुनेगा।।
बहुत समय है एक दूसरे को-
जम कर कल समझाने का।
बहुत समय हेै अपना अपना,
झंडा कल फिर फहराने का।।
किंतु आज तो एक साथ ही,
भारत ध्वज फहराना होगा।
(2)
कौन बड़ा है, छोटा क्या है,
इस उत्तर से क्या निकलेगा।
भजन अजानों के झगड़े से,
सृष्टि नियम में क्या बदलेगा।।
मंदिर का दीपक हो चाहे,
या फिर मस्जिद का चराग़ हो,
एक तरह से रोज़ बुझेगा,
एक तरह से रोज़ जलेगा।
बहुत समय है मंदिर में फिर,
जाकर शीश नवा लेंगे हम।
बहुत समय हेै मस्जिद में फिर,
सजदे वजू निभा लेंगे हम।।
किंतु आज तो राष्ट्र वंदना,
मिल कर हमको गाना होगा।
(3)
सिर्फ़ मरण हिंदू का होता,
तो इसको जायज़ ठहराते।
सिर्फ़ मुसलमाँ ही यदि मरता,
तो भी उसको वैध बताते।।
किंतु शत्रु इस मानवता का,
आँख दिखाता है हम सबको,
मृत्यु आंकड़ों में हम होंगे,
संख्या बन गिनती गिनवाते।।
बहुत समय है श्रेष्ठ कौन है,
इस मुद्दे को तय करने का।
बहुत समय है अपने मुँह से,
अपनी अपनी जय करने का।।
किंतु आज तो हिंदुस्तानी,
बन कर हमें दिखाना होगा।