कोरोना के बाद भारत की संभावनाएं : 1

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप

समय ने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आयेगा जब अचानक ही उसकी रफ़्तार थम जायेगी और एक-दूसरे से आगे निकलने की अंधाधुंध होड़ में लिप्त यह सारा विश्व ठीक उसी तरह फ्रीज हो जायेगा जैसे बार्बी की कहानियों में दुष्ट जादूगर पूरे राज्य को फ्रीज कर दिया करता था। 

निश्चित ही, आज हम सब एक अकल्पनीय समय से गुज़र रहे हैं। विश्व के सबसे शक्तिशाली व विकसित देश भी ‘कोरोना’ संक्रमण से नित्य-प्रति युद्ध हार रहे हैं और उनके बड़े-बड़े विनाशकारी हथियार पड़े-पड़े जंग खा रहे हैं।

अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, इटली, ब्राजील, चीन, रूस, ईरान … भला कौन सा देश है जो कोरोना नामक युद्ध में अपने नागरिकों के प्राणों की आहुति न दे रहा हो। हमारा देश भारत भी कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है किंतु केंद्रीय व राज्य स्तरीय कुशल प्रशासनिक क्षमताओं व समय पर लिये गये प्रभावकारी निर्णयों ने कोरोना की गतिमान चाल को अंकुश लगा दिया। शायद हम क्षति के दृष्टिकोण से विश्व के अन्य देशों से बेहतर स्थिति में हैं। कहने का अर्थ यह है कि पिटे तो हम भी हैं किंतु कोरोना हमें मात्र खरोंच ही सका है जबकि उसने अन्य देशों के हाथ-पैर और किसी किसी की तो खोपड़ी तक तोड़ डाली है।

आज हम समय के ऐसे दोराहे पर खड़े हैं जिसके आगे एक रास्ता गहरी फिसलन भरी ढलान का है और दूसरा बहुत हल्की सी ऊँचाई लेते हुये चढ़ान का और हमें कोई अनुमान नहीं है कि हमारा अगला कदम किस रास्ते पर पड़ेगा। सच कहा जाये तो यह वर्तमान से जूझते हुये भविष्य के कयास लगाने का वक़्त है।

फ़िलहाल, इस महामारी का इलाज ढूढंने में सारा विश्व युद्ध स्तर पर लगा हुआ है और ‘लॉक डाउन’ व ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की तर्ज पर हम सब अपना बचाव कर रहे हैं। आवश्यक सेवाओं के क्षेत्रों को छोड़कर सारा देश देश बंद है। हवाई सेवायें, रेलवे, मार्ग यातायात, सिनेमा हाल, माल्स, बाज़ार, विद्यालय, सरकारी व गैर सरकारी कार्यालय, सभी कुछ बंद हैं। इस विश्वव्यापी लॉकबंदी के चलते हमारी लॉ फर्म का कार्यालय भी बंद है और हम सब अपने-अपने घरों में है और परिस्थितियों पर अपनी नज़दीकी नज़रे बनाये हुये हैं। इस लॉकबंदी में हमने राष्ट्रीय भाईचारे के भी ढेर सारे अनुपम उदाहरण देखे तो कतिपय स्वार्थी असामाजिक तत्वों द्वारा जाति व धर्म के नाम पर हमारी एकता को खंडित करने के प्रयासों के उदाहरण भी हमारे सामने आये हैं। पर्यावरण की स्वच्छता किंतु आर्थिक व्यवस्था की टूटन भी हमारे सामने हैं। ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि कोरोना के बाद भारत की क्या संभावनाएं हैं? 

हमारे लीगल प्रिपरेशन विभाग के हेड एवं ICN उत्तर प्रदेश के डिप्टी ब्यूरो चीफ मो. तौसीफ़ एक अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति हैं। वे हर उस प्रयास का विरोध करते हैं जिससे हमारी राष्ट्रीय अखंडता को क्षति पहुँचती हो। आइये, इस अनुपम देशभक्त को उन्हीं के शब्दों में सुनते हैं –

सदियों से अनेक जातियों, धर्मों, संप्रदायों, संस्कृतियों को समाय हुए है जहाँ की हवाओं में अनेक खुशबुओं का संगम है। कहीं शंख की ध्वनि की तरंगें गूंजती है तो कहीं आज़ान से यहाँ की फ़िज़ाओं में ताज़गी आती है। जी हां, यही है “भारत” और यही अंदाज़ भारत राष्ट्र को विश्व में अतुल्य बना देता है। कहते हैं अगर किसी बगीचे में एक ही रंग के फूल लगे हों तो उनमें एक ही सुगंध होगी परंतु अगर उसमे अनेक रंग के फूल हों तो वो बगीचा विभिन्न रंगों व सुगंधों से सुसज्जित हो जाता है और हमें प्रसन्नता है कि हम ऐसे ही राष्ट्र में रहते हैं जहाँ सभी धर्मों के लोग एक साथ निवास करते हैं तथा अपने अपने धर्मों का पालन करते हुए एक दूसरे के सुख व दुख में सम्मिलित होते हैं। हमारा यही प्रेम व सद्भावना नेताओं व राजनीतिज्ञों को हजम नहीं होता जो अपनी कुर्सी व सत्ता का लाभ प्राप्त करने की लालसा में इस हद तक मनोरोगी बन चुके हैं कि वो हमें विभाजित करने के साथ दंगे करवा कर हमारे आपसी प्रेम व सद्भावना में आग लगा देना चाहते हैं परंतु एक ज़िम्मेदार नागरिक कभी किसी के बहकावे में नहीं आता क्योंकि वो अपने विवेक का उपयोग करता है।

ऐसे राजनीतिज्ञ मनोरोगियों व असामाजिक तत्वों से हम सब को मिलकर हमारे देश की गंगा-जमुनी संस्कृति की रक्षा करनी होगी और अपने आप से यह प्रश्न पूछने की आवश्यकता है कि किसी संप्रदाय का रक्त बहा कर अथवा घर जलाकर हमें क्या प्राप्त होगा? क्या भारत के स्वतंत्रता सेनानियों ने ऐसे भारत की परिकल्पना की थी? वर्तमान समय में जब हम कोरोना (कोविड-19) वैश्विक महामारी के कारण आपातकाल से जूझ रहे हैं तब कुछ राजनीतिज्ञ मनोरागी एवं असामाजिक तत्व अपने निहित स्वार्थों के चलते धार्मिक उन्माद की स्थिति उत्पन्न करना चाहते हैं ऐसी प्रवृत्ति के व्यक्तियों से हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है। ये महामारी संपूर्ण विश्व में अपने पैर पसार रही है जहाँ विकासशील देश इसकी घातक चपेट में आ रहे हैं और वैज्ञानिक इसका इलाज ढूंढने में लगे हैं तब हमारे देश में ही कुछ असामाजिक तत्व रोगियों का धर्म व जाति देखकर उनपर टिप्पणी करने में व्व्स्त हैं और इसमें अधिकांश टी0वी0 मीडिया भी धार्मिक उन्माद की आग में घी डालने का काम कर रहे है, जो बहुत शर्मनाक है। क्या ऐसा कर के हम अन्य देशों को हमपे हँसने का अवसर नहीं दे रहे? क्या यह सही समय है धार्मिक मुद्दों पे बहस करने का जब कोरोना की दस्तक हमारे देश में भी पैर पसारने में लगी है जब भारत पर एक बड़ा आर्थिक संकट आन पड़ा है, जब रोज़गार ख़त्म की कगार पे है, जब हमारी स्वास्थ्या नीतिया चरमरा रही हैं, तब हमें एक साथ मिलकर एकजुट होकर हमारे चिकित्सकों, नर्सों, पुलिसकर्मियों, सफाईकर्मियों आदि का हौसला बढ़ाने व सहयोग देने की आवश्यकता है तभी हम मिलकर इस महामारी पर विजय प्राप्त कर पाएंगे। एक सर्वे के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर नस्लभेद और अप्रवासियों का भय वैश्वीकरण के लिए बड़ा ख़तरा हैं, लेकिन भारत के युवाओं का मानना है कि धार्मिक मतभेद और राष्ट्रवादी राजनीति दूसरे ख़तरों से बड़े हैं । यदि नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने धर्म व जाति के आधार पर “आज़ाद हिन्द फौज” की स्थापना की होती तो क्या हम आज़ाद होते? ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो भारत के प्रत्येक नागरिक को सशक्त करने की प्रेरणा देते हैं तथा एकता में बल है, का पाठ पढ़ाते हैं। जो हम करते हैं अथवा कहते हैं वही देखकर हमसे छोटे उसका अनुसरण करते हैं। भारत के प्रत्येक नागरिक को यह निर्णय करना होगा कि वे अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए नफरत व घृणा से भरा समाज छोड़ना चाहता है या प्रेम से सुसज्जित समाज।”

प्रिय तौसीफ़, आप बिल्कुल सही दिशा में सोचते हैं। काश आप जैसी जीवनदृष्टि देश के हर युवा की होती तो हम निश्चित रूप से दुनिया के सबसे सभ्य व सुसंस्कृत देश होते। हमारी विडंबना ही यही है कि हर बार हमें वाह्य व आंतरिक युद्ध साथ-साथ लड़ने पड़ते हैं। मुझे लगता है कि यह कठिन समय उन लोगों को भी अवश्य सबक देगा जो आपातकालीन स्थितियों में भी अपनी कलुषित विचारधारा को नहीं छोड़ पाते हैं और अपनी ओछी राजनीति से देश के विकास रथ के पहियों के नीचे पत्थर ठेलने से बाज़ नहीं आते। निश्चित रूप से संभावना है कि एक बार पटरी पर आ जाने के बाद ऐसे देशद्रोहियों से देश हिसाब अवश्य मांगेगा।

नीरज श्रीवास्तव हमारे लिटिगेशन विभाग के वरिष्ठ सदस्य हैं और साहित्यिक प्रतिभा के धनी हैं। उनकी चिंता का विषय हमारी सामाजिक परिस्थितियां व अपर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं हैं। किंतु वे भविष्य के प्रति अत्यंत आश्वस्त हैं। आइये, उन्हीं से सुनते हैं उनके खूबसूरत विचार –

मानव समाज पर जब जब कोई संकट या महामारी का प्रकोप आता है तो उससे उबरने के पश्चात् मानव जीवन में आमूलचूल परिवर्तन होते हैं जिनके कारण कई संभावनाएं अवश्य उत्पन्न होती है। कोरोना संक्रमण से उबरने के बाद हमारे देश भारत और विश्व के अन्य देशों में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा वैश्विक इत्यादि कई स्तर पर परिवर्तन हो सकते हैं।  इन परिवर्तनों के कारण हमारे भारत देश में लोगों के जीवन में भी बहुआयामी संभावनाएं जन्म लेंगी।  अपने भारत देश में सामाजिक स्तर पर देखें अपने देश भारत में  सामाजिक स्तर पर देखे तो जैसा कि अभी तक लोग अपने रिश्तों को प्रगाढ़ करने के लिए आपस में एक दूसरे से बहुत अधिक मिलते जुलते थे तथा अपने प्रेम तथा उत्साह को प्रकट करने के लिए गले मिलना तथा हाथ मिलाना आम बात थी किन्तु आने वाले समय में इनमें  कमी आएगी तथा लोग सामाजिक दूरी का अधिक पालन करेंगे जिससे वे सभी सुरक्षित रह सकें। यातायात में ट्रेन, बस आदि में लोग जिस तरह सटे-सटे बैठते थे, इसमें भी कमी आयेगी। लोगों को सामाजिक दूरी बनाते हुए दूर-दूर बैठने के लिए जागरूक होना होगा। भारत सरकार को इसका पालन करने के लिए आवश्यक दिशा निर्देशों जैसे सभी व्यक्ति सफाई रखें तथा सामाजिक दूरी बनाना आदि को लोगों को बताना होगा जिससे सभी की सुरक्षा हो पाए।

समाज में पर्यटन स्तर पर जो बढ़ावा दिया जाता है, उसमें भी कमी आएगी और लोगों के घूमने-फिरने व सैर सपाटा करने आदि में भी कमी आने की सम्भावना है।

चिकित्सा विज्ञान के सम्बन्ध में अपने भारत देश में अपार संभावनाएं हैं। हमारे देश के डाक्टर्स वे वैज्ञानिक अत्यंत कुशल व कम संसाधनों समस्याओं का निदान करने में सक्षम है। आज भारत विश्व गुरू के रूप में अन्य विकसित एवं विकासशील सभी देशों अमरीका, ब्राजील, श्रीलंका आदि का इस संकट के समय मार्गदर्शन व सहायता भी अपनी चित्सीय ओषधियों के माध्यम से कर रहा है। भविष्य में सम्भावना है की भारत चिकित्सा के क्षेत्र में और अधिक कार्य करेगा और ओषधियों के निर्माण के लिए कच्चे माल की स्वयं ही तैयार करेगा और जीवन रक्षक उपकरणों व सामग्रियों को बनाने का जारी करेगा और किसी अन्य देश पर भारत को निर्भर नहीं रहना पड़ेगा ।इस प्रकार भारत अपने देश के लोगों की अच्छी  गुणवत्तायुक्त चिकित्सीय सेवा करने के साथ साथ अन्य देशों को भी इनका निर्यात करके पुरे विश्व का कल्याण कर सकेगा।

वैश्विक स्तर पर भारत की कई अन्य कोरोना से पीड़ित देशों की तुलना में कई स्तर पर स्थिति बेहतर  है और आने वाले समय में भी आशा है की वैश्विक स्तर पर भारत देश के प्रति अन्य देशों का विश्वास और सहयोग बढ़ने की अत्यधिक संभावनाएं हैं जिससे की भारत की आर्थिक व सामाजिक आदि स्थितियां भविष्य में जल्दी ही पटरी पर आ जाएँगी और पहले से अधिक सुदृढ़ होंगी क्योंकि चीन की लापरवाही की वजह से सभी देशों का चीन के प्रति अविश्वास बढ़ा है जिसके कारण अन्य देश भारत की ओर रुख करेंगे। भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसके कारण भारत के पास पर्याप्त खाद्य सामग्री है जो जीवन के लिए अत्यन्य आवश्यक है और पूरे विश्व में आज पेट्रोल की मांग कम हुई है जिसके कारण इनकी कीमतें भी कम हुईं हैं जिसको भारत भविष्य में कम कीमतों पर आयात कर सकेगा। इस प्रकार भविष्य में भारत की मजबूत स्थिति अवश्य होगी ।”

नीरज जी भविष्य में सोशल डिस्टेंसिग की आवश्यकता पर बल देते हैं और देश में नयी व आधुनिक कार्य पद्धति की संभावनाएं देख रहे हैं। वे चिकित्सा के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते देख रहे हैं और उनके अनुसार इस वैश्विक संक्रमण काल में भारत की नेतृत्‍व क्षमता के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य देशों का भारत के प्रति विश्वास बढ़ा है जो उसे निकट भविष्य में आर्थिक लाभ पहुँचायेगा। नीरज जी, हम भी आपके साथ भारत के लिये स्वर्णिम संभावनाएं देख रहे हैं किंतु हमें ऐसा लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये भारत को अपने अंतर्राष्ट्रीय व औद्योगिक कानूनों का पुनर्विलोकन करना होगा और उन्हें यथासंभव व्यावहारिक व सरल बनाना होगा।

क्रमशः ….

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