सुरेश ठाकुर
क्यों जनाब !, पता नहीं आपको कि पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा है | घर की चौखट से बाहर कदम रखने की इजाज़त नहीं है जनाब, और आप हैं कि बिना किसी ‘अधिकृत पास’ के परलोक की यात्रा पर निकल गए | एक कभी न खत्म होने वाली यात्रा पर | लेकिन ‘फिज़िकल डिस्टेंसिंग’ का ज़रूर पालन किया है आपने | मगर….मगर कोई इतना ‘फिज़िकल डिस्टेंन्स’ भी मेन्टेन नहीं कर लेता है भाई, कि फिर चाहकर भी कभी एक दूसरे से न मिल सके |
अभी इरफान खान की मौत का ग़म भी सलीक़े से नहीं मना पाया था ये दिल कि तब तक एक और किश्त भेज दी गई ग़म की | और वो भी इतनी बड़ी किश्त कि इस ग़म को वुज़ू करने के लिए खुश्क आँखों में मुनासिब पानी तक मयस्सर न हो सके |
एक और मनहूस सुब्ह | टी.वी. ऑन करते ही स्क्रीन पर जो ख़बर फ्लेश हो रही थी वो वाकई दिल की धड़कने रोक देने वाली थी | “ल्यूकेमिया” (बोन मेरो कैंसर) से 2 वर्ष की लड़ाई के बाद फ़िल्म अभिनेता ऋषि कपूर का 67 वर्ष की अवस्था में निधन | हे ईश्वर ! इतनी खामोशी के साथ खेल दिया अपना खेल | दुआ के लिए हाथ उठाने तक का मौका नहीं दिया तूने |
ऋषि कपूर का जाना यक़ीनन एक युग का समाप्त हो जाना है | बहुत कम ऐसे अभिनेता हुए हैं जिन्होंने अभिनय की एक अलग लीक कायम की है | एक अलग परम्परा को स्थापित किया है |
ऋषि कपूर ने जिस समय अभिनय की दुनिया में क़दम रखा तो ये वो दौर था जब जीतेंद्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, विनोद खन्ना, फिरोज़ खान के साथ साथ धर्मेंद्र, मनोज कुमार, शशि कपूर, देवानंद सरीखे सितारे फिल्मी आसमान में जगमगा रहे थे |
अभिनय के माध्यम से किशोर प्रेम को अभिव्यक्त कर पाना एक प्रौढ़ कलाकार के लिए टेढ़ी खीर थी | ऐसे में 20-21 वर्ष का चॉकलेटी चेहरे वाला एक किशोर जब अल्ल्हड़ डिम्पल कपाड़िया के साथ राजकपूर जैसे सिद्धहस्त निर्देशक का साथ पाकर फिल्मी परदे पर उतरता है तो पूरे सिनेजगत में जैसे ज्वार सा आ जाता है |
फिल्मी पंडितों के अनुमान धरे के धरे रह जाते हैं और ‘बॉबी’ 1973 की ब्लॉकबस्टर साबित होती है | यहाँ ये उल्लेख करना भी ज़रूरी हो जाता है कि इस फ़िल्म के लिए ऋषिकपूर को अभिनय का फ़िल्मफेयर पुरुस्कार भी दिया गया था |उसके बाद तो ‘खेल खेल में’, ‘रफूचक्कर’ जैसी अनेक फिल्में कीं जो अल्हड़ किशोर प्रेम के नए प्रतिमान स्थापित कर रही थीं |शहरुख, आमिर, तारिक़ जैसे कलाकारों की भी लम्बी लिस्ट है जिनके अभिनय में ऋषिकपूर के अभिनय की झलक साफ दिखाई देती है |
फ़िल्म ‘बरसात’ और उसके बाद ‘मेरा नाम जोकर’ से बाल कलाकार के रुप में अभिनय की डोर थामने के बाद ऋषिकपूर का ये सफर 2020 तक भी बदस्तूर जारी रहा | उनकी फिल्मों की सूची इतनी लम्बी है जिन्हें गिना पाना संभव नहीं है | उन्होंने हर तरीके के किरदारों को बड़ी ही कुशलता से निभाया है | विविधता उनके अभिनय की पहचान है |
मेरा नाम जोकर में बाल कलाकार के रूप में शानदार भूमिका के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार दिया गया था | फिल्म अग्निपथ के लिए उन्हें ‘आईफ़ा बेस्ट नेगेटिव रोल अवार्ड’ से भी नवाजा गया था | वर्ष 2008 में उन्हें दिया फ़िल्मफ़ेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड वास्तव में उनके महान योगदान का उचित मूल्यांकन है | ईश्वर उनकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे |