संगीत के साधना पुरुष-केवल कुमार

सुरेश ठाकुर
4 जनवरी 1941 को लखनऊ में उदयगंज स्थित जयहिन्द चबूतरा बाल रुदन के रुप में एक ऐसी सुरीली किलकारी से गुंजायमान हो उठा था जो परिमार्जन के शिखर को स्पर्श करती हुई, संगीत का अनुपम पर्याय बन कर आज तक हमारे मन और आत्मा दोनों को विभोर कर रही है |
नाद-ब्रह्म’ की असीम अनुकम्पा से श्रीमती रामप्यारी और श्री परमेश्वरी दयाल श्रीवास्तव के घर संगीत की जिस विलक्षण प्रतिभा ने जन्म लिया उस व्यक्तित्व को आज पूरा विश्व ‘केवल कुमार’ के रुप में पहचानता है |केवल कुमार जी ने संगीत की आरम्भिक शिक्षा शास्त्रीय गायन में पारंगत अपने पिता और बड़े भाई कृष्ण कुमार से ली  थी किंतु आगे चल कर इन्होंने संगीत की विधिवत शिक्षा अपने गुरु और प्रसिद्ध कलाकार श्री राधावल्लभ चतुर्वेदी से प्राप्त की  |
संगीत के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियाँ विशिष्ट हैं जो उन्हें एक महान संगीतकार की श्रेणी में लाकर खड़ा करती हैं | उनके बहुमूल्य योगदान के लिए उ० प्र० संगीत नाटक अकादमी द्वारा उन्हें “अकादमी’ पुरस्कार से और उ.प्र.सरकार ने “यश भारती” जैसे प्रतिष्ठित सम्मान से अलंकृत किया है |आकाशवाणी से केवल कुमार जी का जुड़ाव आरम्भ से ही रहा | 1960 में आप आकाशवाणी लखनऊ के बी ग्रेड के कलाकार हो चुके थे | उन दिनों जब वे एक फार्मास्युटिकल कम्पनी में एरिया मैनेजर के पद पर कार्यरत थे उन्हें आकाशवाणी गोरखपुर में बतौर ‘संगीत संयोजक (ग्रेड-2)’ चयनित कर लिया गया ।
संगीत के लिए समर्पित केवल कुमार जी के लिए ये कार्य किसी इबादत से कम नहीं था | आनन फानन में फार्मास्युटिकल कम्पनी की नौकरी छोड़कर उन्होंने पहली जून 1980 से आकाशवाणी गोरखपुर ज्वाइन कर लिया | अथक परिश्रम, सृजनात्मक-सकारात्मक सोच और लगन के बल पर उन्होंने आकाशवाणी और अपने श्रोताओं के बीच गहरी पैठ बना ली और लोकप्रियता के शिखर पर बरसों छाये रहे |  ज़िक्र करना कतई मुनासिब होगा कि उन्होंने केन्द्र निदेशक मोहतरमा किश्वर आरा की एक शतक देशगान तैयार करने की महत्वाकांक्षी योजना में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर उनकी सराहना प्राप्त की |
आकाशवाणी लखनऊ भी केवल कुमार जी की कर्मस्थली रही है | अवधी संस्कार लोकगीतों की श्रृंखला में पारंपरिक धुनों पर सैकड़ों लोकगीतों की रिकार्डिंग कर उन्हें प्रसारित करने की उपलब्धि भी केवल कुमार जी के नाम है | “गुलदस्ता-ए-लखनऊ”, “गोमती, तुम बहती रहना” जैसे अनेक कार्यक्रमों को आपने अपने कुशल संगीत संयोजन के माध्यम से लोकप्रिय बनाया | प्रोग्राम प्रोड्यूसर की परिकल्पना को हू-ब-हू उतार देने की समझ और क्षमता ने केवल कुमार जी को हमेशा उन लोगों का चहेता बना कर रखा | बाईस वर्षों की उत्कृष्ट सेवा के उपरांत 31 जनवरी 2001 को केवल कुमार जी ने ‘संगीत संयोजक (ग्रेड-1)’ पद से रिटायरमेंट लिया | स्मरण रहे कि ये रिटायरमेंट केवल पद से था, संगीत से नहीं |
आकाशवाणी और दूरदर्शन के द्वारा होली, वर्षा ऋतु, बसंत, राष्ट्रीय पर्वों आदि पर आमंत्रित दर्शकों के समक्ष समय समय पर होने वाले संगीत के आयोजनों में भे केवल कुमार जी अपने संगीत के माध्यम से आज भी चार चांद लगाते रहते हैं | आकाशवाणी के अतिरिक्त केवल कुमार जी ने फिल्मों के लिए भी संगीत दिया है |
हिन्दी फीचर फिल्म “करिश्मा किस्मत का” में संगीत संयोजन किया तथा भोजपुरी फिल्म “नेहिया सनेहिया” में आपके संगीत निर्देशन में आशा भोसले, कविता कृष्ण मूर्ति, रिचा शर्मा, उदित नारायण और कुमार शानू ने गाया है | इसअके अतिरिक्त महेन्द्र कपूर, शब्बीर कुमार, शारदा सिन्हा आदि ने भी उनके कुशल संगीत निर्देशन में संगीत प्रेमियों को अनेकों गीत दिये हैं |
दूरदर्शन की अनेक टेलीफिल्मों और धारावाहिकों जैसे “दंश”, “प्रिया जी”, “प्यादा”, “आदर्श कारागार”, “शहर चला कस्बे को “, “चांद ज़हर का”, “सात रंग शरत के संग”, “सांची पिरितिया”, “नियति चक्र” आदि में आपके पार्श्व संगीत की भूरि भूरि प्रशंसा हुई | ‘T-series’ तथा अन्य कम्पनियों की दर्जनों कैसेट्स में केवल कुमार जी ने न केवल संगीत दिया है बल्कि अपनी मधुर आवाज़ में गाया भी है | यहाँ उल्लेख करना आवश्यक होगा कि आप जितने गुणीं संगीतकार हैं उतने ही उत्कृष्ट गायक |   ये भी एक दिलचस्प वाक़या है कि एक बार जब आपको आपके गुरु राधावल्लभ चतुर्वेदी जी  लेकर” मलिका -ए -गज़ल” बेगम अख़्तर के यहाँ गये और आपने बेगम साहिबा को उनके घर पर रियाज़ के समय पहली बार आमने सामने सुना तो आपको गज़ल गाने का जुनून चढ़ गया । 1991 में “आल इंडिया क्रिटिक्स एसोसिएशन”, नई दिल्ली नें तथा 1996 में “वेस्ट बंगाल जर्नलिस्ट एसोसिएशन”, कोलकाता द्वारा आपको बेस्ट सिंगर का नेशनल एवार्ड दिया गया | इसके अलावा आपको 1995 में ‘मदन मोहन सम्मान’  और 2012 में “नोबल इंडिया” पत्रिका सम्मान भी मिला |
लोकसंगीत के क्षेत्र में केवल कुमार जी का योगदान जबरदस्त है |आपको अवधी लोकसंगीत का शिखर पुरुष कहना किंचित अतिश्योक्ति न होगी | आपने लोकगीतों को पाँच वर्गों में वर्गीकृत किया है- जन्म एवं बालगीत, विवाह गीत, ऋतु एवं पर्व गीत, श्रम गीत तथा विविध गीत |  इन लोकगीतों को संकलित करना ही अपने आप में बड़ा कार्य है किंतु प्रत्येक संकलित लोकगीत के साथ उसकी स्वरलिपि का अंकन इस कार्य को और भी बड़ा और महत्वपूर्ण बना देता है । मैं यह नहीं कहता कि इससे पूर्व लोकगीतों पर कोई कार्य नहीं हुआ है किन्तु सम्भवतः इतने योजनाबद्ध तरीके से और इतने वृहद रूप में तो अभी तक इसकी कल्पना भी नहीं की गई होगी |
मैं समझता हूँ  कि जब कभी भविष्य में इस तथ्य का आंकलन होगा कि किस व्यक्ति ने अपने जीवन में सबसे अधिक संगीत रचनाओं एवं धुनों को निर्मित किया है तो विश्व पटल पर मात्र एक ही नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा और वह नाम होगा – ‘केवल कुमार’ |आठ दशकों का लम्बा जीवन जी लेने के उपरांत आज भी उनमें युवाओं जैसा गजब सा उत्साह है | वे अभी भी हर वर्ष संगीत की कार्यशालाओं का आयोजन करते हैं और उन्हें ख़ूबसूरती से सम्पन्न करते हैं |वे आजकल अपने निजी आवास E-3196/4 शिवरंजनी निवास, राजाजीपुरम, लखनऊ में पत्नी , पुत्र अमिताभ, पुत्रवधू तुहिना और दो पौत्रियों के साथ रहते हैं । उम्र दराज होने के बावजूद वे अपने प्राइवेट स्टूडियो में नियमित बैठते हैं । बिटिया विनीता अपने परिवार के साथ इलाहाबाद में रहती है । एक और उपलब्धि इनके खाते में यह है कि इनके पुत्र एक प्रतिष्ठित स्कूल में संगीत शिक्षक तो हैं ही साथ ही आकाशवाणी के ग्रेड -2 के कैजुअल संगीत संयोजक और कलाकार भी हैं ।
हम सब उनके चाहने वालों की ईश्वर से प्रार्थना है कि केवल कुमार जी इसी सक्रियता से संगीत की सेवा करते हुए जीवन का शतक पूरा करें |   
‘केवल कुमार जी का मोबाइल नं० है -923572545 व 9336139104 है तथा ई.मेल आई डी mdkevalkumar@gmail.com है |

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