चिर-उरस्थ-माँ

By: C.P. Singh, Editor-ICN Group 

आंख के आंसू पोंछि मेरी माँ, होंठो से मुस्काई है ।
जिमि खिलती शुभ धूप की गरिमा, नभ में बदरी छाई है ।

पन थककर, माँ के कन्धों से, पावन पग तक आया है ।
त्याग और ममता बन्धों से, भरी जननी की काया है ।
करम- धरम के तट-बन्धों से, प्रेरित लौकिक छाया है ।
बच्चे- घर- दैनिक धन्धों से, मन उसका भरमाया है ।

घडी की सुई सी चलती मेरी माँ, रोई ना हरसाई है ।

आंख के आंसू पोंछि मेरी माँ, होंठो से मुस्काई है ।

तिनमा- तिनका नीड़ जोड़ती, गौरैया सी काया है ।
फटे बसन, जिमि चीर जोड़ती, अप्रतिम माँ की माया है ।
मनमें शुभ की भीड़ जोड़ती, पति- सुत- हित उर गाया है ।
बनि कुल (घर) की जिमि रीढ़ जोड़ती, वज्र- सदृश कृष काया है ।

जीवन मूल्यों का यह दर्पण, माँ की शुभ परछाईं है ।
आंख के आंसू पोंछि मेरी माँ, होंठो से मुस्काई है ।

शुभ दीपक सी जलती बुझती, लौ सम तन थर्राया है ।

नभ- घन- धरा नित्य एक करती, काल- चक्र भरमाया है ।
दुःखि अन्तर, ऊपर खुश रहती, सुरसरि में नभ छाया है ।
सन्तति- हित- नित जीती- मरती, बिधि ने भी सर नाया है ।

रूप धारि, मम-हित ये सद गुण, ज्यों प्रभुता तन पाई है ।
आंख के आंसू पोंछि मेरी माँ, होंठो से मुस्काई है ।

नींद रहित सपने देखे माँ, मम- हित व्रत उपवास रखे ।
गीता रामायण लेखे माँ, पति में प्रभु का वास लखे ।
सुत के हांथ में बनि रेखे माँ, प्रभु से अप्रतिम आस रखे (भखे) ।
मेले में एकल लेखे माँ, आंसू संग परिहास चखे ।

घर के दुःख- स्वर कम करने हित, माँ चिर- नव शहनाई है ।
आंख के आंसू पोंछि मेरी माँ, होंठो से मुस्काई है ।

पल- छिन- घड़ी नही जानी माँ, निशि- दिन की चाकी में ।
इक- इक वय बीती धरि गरिमा, मूल्यों की साखी में ।
निज- हित कबहुं न देखि सकी माँ, भीड़ में या एकाकी में ।
चहुंदिसि लगि, सेवा हित जरि माँ, तबहुं (लखे) लगे बहु बाकी में ।

मरण शील जग के मानस सब, सुकृति तेरी अमराई है ।

आंख के आंसू पोंछि मेरी माँ, होंठो से मुस्काई है ।

कण्कड़ कण्टक भरी डगर हित, नियमित माँ की सीख ।
मोहिं देने सद ज्ञान प्रखर नित, माँ सच बिधि की भीख ।
सकल- भाल जीवन भर अंकित, ममता मय सद सीख ।
क्षमा- दान- धीरज वर संचित, प्रभु तन धरि लगे दीख ।

धुन्ध और कुहरे से जग में, माँ पथ दृष्य सच्चाई है ।

आंख के आंसू पोंछि मेरी माँ, होंठो से मुस्काई है ।

सुख दुःख फुल्लित जग उपवन, नित कांटे फूल खिले।
बिविध भाव भरे ये मानव तन, बनि उत्सुक से मिले ।
उर- उर सोंच बनी जो अनबन, बीच में खड़े किले ।
स्वार्थ- रहित मेरी माँ पावन, अपर ना कछू मिले ।  

अन्तर उमस भरे जीवन में, माँ सुरभित पुरवाई है ।

आंख के आंसू पोंछि मेरी माँ, होंठो से मुस्काई है ।

प्यासी पत्ती तुहिन बिन्दु गहि, हरसि पुनः लहराइ ।
सूखि गला, जिमि क्लेश गहन गहि, आंसू से सिंचि जाइ ।
बींच धार, जब हम डूबत रहि, तिनका लगे सहाइ ।

सकल दुहेल- रुग्ण केऊ कहि, माँ तेरे छुए बिलाइ ।

दुःख भरे मन की मरु भूमि में, माँ मृदु जल सी सिंचाई है ।

आंख के आंसू पोंछि मेरी माँ, होंठो से मुस्काई है ।

खुश रहि सुत, युग- युग जिए, माँ सोइ जगि रटि एक ।

रहि समरथ, अमृत पिए, इच्छित सुत रहे नेक ।
देश विदेश रहत हिए, प्रभु सन एकहि टेक ।
सुख- दुःख सहि जब तक जिए, मरि हु के, सुत हित नेक ।

कांप रहे कर- होंठ, आशीष में अब भी ( बसी) वो चिर तरुणाई है ।
आंख के आंसू पोंछि मेरी माँ, होंठो से मुस्काई 

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