गीत-गीता : 4

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)

प्रथम अध्याय (अर्जुन विषाद योग)

(छंद 22-28)

 

अर्जुन : (श्लोक 28-46)

 

हे महागिरिधर, शिथिल सब अंग मेरे हो रहे हैं।

भार तृण पर्वत सरीखा व्यर्थ इनका ढो रहे हैं।।

रोम हर रोमांच में है, सूखता है मुख निरंतर।

तन निरंतर कांपता है, ज्यों हवा में वृक्ष थर-थर।।(22)

 

अब संभलता ही नहीं है, हाथ में गाँडीव मेरे।

जल रही है यूँ त्वचा, हो ज्यों सघन ज्वर गात घेरे।।

मन भ्रमित सा हो रहा है, है ह्रदय, हे नाथ, विचलित।

रह सकूँ पल भर खड़ा मैं,है नहीं सामर्थ्य किंचित।।(23)

 

भान होते हैं सभी लक्षण मुझे प्रतिकूल केशव।

युद्ध लगता है मुझे भ्रम की भयानक भूल केशव।।

मैं भला कैसे स्वजन के हर सकूंगा प्राण माधव।

मारकर इनकोभला किस भाँति है कल्याण माधव।(24)

 

कृष्ण, ओ मेरे सखा, इस राज्य की कब कल्पना की।

रक्तरंजित इस विजय की, काल से कब याचना की।।

इन सुखों का और भोगों का भला क्या है प्रयोजन ।

बिन स्वजन के, देवकीसुत,अर्थ से है हीन जीवन।।(25)

 

चाहते सुख और वैभव, भोग हम जिनके लिये हैं।

और जिनके साथ जीवन, आज तक हमने जिये हैं।।

वे सभी मतिमूढ़ होकर, युद्ध करने को खड़े हैं।

शीर्ष मानव श्रेष्ठ जिनके वंश में मेरी जड़े हैं।।(26)

 

श्रेष्ठ गुरुवर, तात, भ्रातागण, पितामह, ज्येष्ठ सारे।

पुत्र सम प्रिय ये भतीजे, मित्र, संबंधी दुलारे।।

मान्य, उनके मान्य, जिनसे हैं विवाह संबंध सुंदर।

और नातेदार ये, साले, श्वसुर, मामा सघनतर।।(27)

 

हे जनार्दन! मैं स्वयं की मृत्यु के प्रतिशोध में भी।

वध किसी का कर नहीं सकता किसी अवरोध में भी।।

तीन लोकों के लिये भी, मैं कभी इनको न मारूँ।

एक पृथ्वी पर तनिक से राज्य पर मैं क्यों संहारूँ।।(28)

 

(क्रमशः)

 

-तरुण प्रकाश श्रीवास्तव

 

विशेषगीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में  कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

Related posts