राष्ट्र की कृषि क्षेत्र की चुनौतियाँ और उसका समाधान : ICN मीडिया हाउस का एक प्रयास

By: Dr. Bhola Nath Mishra, Head-EHS, Regional Convener-SJM (U.P. & U.K.) & Sr. Consulting Editor-ICN Group
भारत गाँवों में बसता है और ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि है। ये भारत का सौभाग्य कहिये कि खेती योग्य  सर्वाधिक भूमि, अनुकूल  जलवायु,ऋतुयें, कृषि हेतु आवश्यक प्राकृतिक संसाधन,जैव वैविध्य एवं कार्य करने वाले युवा हाथ भी उसी के पास हैं परन्तु विडम्बना देखिये कि अधिकांश खाद्यान्नों जैसे दलहन, तिलहन आदि के लिये ये राष्ट्र परमुखापेक्षी अर्थात विदेशों पर अब भी निर्भर है ?
जब एक विकाशशील राष्ट्र अपनी आय का बड़ा भाग खाद्यानों के क्रय हेतु विदेश को दे देता है और कृषि कार्य उसके युवा अनमने मन से विकल्पहीनता की स्थिति में ही करते हों अर्थात प्रकृति प्रदत्त वरदान जो उसे समृद्ध करते उसका लाभ न उठा पा रहा हो तो वो राष्ट्र स्वालम्बी कैसे बनेगा ??  भारत के कृषि क्षेत्र पर ध्यान दिया जाय तो अकेले ये क्षेत्र देश को आत्मनिर्भर बनाने के साथ विश्व शक्ति के रूप में उभार सकता है ? परन्तु कुछ गुड़ ढीला कुछ बनिया ढीला अर्थात कृषि कार्य न तो युवा  करना चाहते हैं और न सरकार ही इस क्षेत्र पर पर्याप्त ध्यान दे रही है ? हमारे युवा जिनके पास पर्याप्त कृषि योग्य भूमि है वो भी कृषि कार्य त्याग नगरोन्मुख हो रहे हैं ! न्यूनाधिक ये स्थिति सम्पूर्ण देश की है।
हमारे युवा दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों में श्रमसाध्य कार्य करते हुये मलिन वस्तियों में जीवन विता लेंगें परन्तु कृषि कार्य नहीं करेंगें ? क्यों ???
ये प्रश्न मात्र उनसे ही नहीं बल्कि राष्ट्र के नीति नियन्ताओं से भी है ! उद्योगों के उत्पादों के अभाव में तो जीवन चल सकता है परन्तु कृषि उत्पादों के अभाव में जीवन कैसे चलेगा ?
औद्योगिक उत्पादन में हम वैश्विक स्तर पर तो कहीं स्थान  बना नहीं पाये, क्या कृषि उत्पादों हेतु भी हम परनिर्भर  होंगें ? यदि दुर्भाग्यवश  हो  ही गये तो अर्थ की व्यवस्था कैसे होगी ?
क्या उपरोक्त प्रेक्षण और उससे व्युत्पन्न प्रश्न काल्पनिक एवं मिथ्या हैं ? यदि नहीं तो इतने महत्वपूर्ण क्षेत्र की इतनी उपेक्षा क्यों ? न कृषक न उपभोक्ता और न ही नीति नियन्ता इससे चिन्तित प्रतीत होते हैं ?
कोरोना संकट से पूर्व हम विश्वशक्ति बनने और 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य किस आधार पर ले रहे थे ?
आइये  सकल घरेलू उत्पाद जो किसी राष्ट्र के आर्थिक स्वास्थ्य का सूचक होता है उसके चार प्रमुख अवयव उद्योग, कृषि,निर्यात और पर्यटन का विश्लेषण करते हैं ।
1. हमारे उद्योग तो अब तक स्वेत हस्ती ही सिद्ध हुए हैं, कोरोना वन्दी और संगरोध ने इन्हें मृतप्राय कर दिया है ?
2. हजारों कृषक प्रतिवर्ष कृषि कार्य त्याग  रहे थे , अब कोरोना संकट भले विवश करे उन्हें कृषि कार्य हेतु  परन्तु वो स्थिति सामान्य होने पर कृषि कार्य करते रहेंगे इस पर सन्देह है?
3. व्यापार घाटा नित्य निरन्तर  बढ़ ही रहा है ये हमारे निर्यात की  स्थिति है?
4. प्रधानमंत्री के स्वच्छता आह्वान के उपरांत भी देश में व्याप्त अस्वच्छता  व हमारे उपेक्षापूर्ण सामाजिक दायित्व वोध ने पर्यटन को भी पनपने नहीं दिया और अब कोरोना महामारी संकट ने इसे समाप्त ही कर दिया है ?
उपरोक्त के परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति भी उन्नतांश पर है। अर्थात राष्ट्रोन्नति के प्रत्येक आयाम में हम अशक्त ही प्रतीत हो रहे हैं ?
यहीं वैश्विक महाशक्तियों पर दृष्टिपात करें तो आसन्न कोरोना संकट के साथ भी अमेरिका की शक्ति उन्नत अभियांत्रिकी और आयुध निर्माण की बनी हुई है, रूस की शक्ति भी उन्नत आयुध विनिर्माण की है और चीन की शक्ति उद्यमिता और सस्ते उत्पाद उत्पादित करने की दक्षता से है ।
उपरोक्त मानदंडों पर हम वैश्विक शक्तियों के समक्ष तो कहीं टिकते नहीं तो हम विश्वशक्ति कैसे बनेंगें ?
वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि,परिवेशीय अनुकूलता  और  जैव वैविध्य के साथ भी हम अपने इस थाती का लाभ  नहीं उठा पा रहे हैं ? कृषि उत्पादकता बढ़ाकर हम विश्वशक्ति बन सकते हैं । प्रकृति ने हमें ये अवसर दिया है परन्तु हम तो कृषि कार्य त्याग रहे हैं ? किसी अन्य विवशता और विकल्प हीनता की स्थिति में ही हम कृषि कार्य करते हैं ?
कारण :
1.अनियोजित क्षेत्र होने से  प्रभावी विपणन व्यवस्था के अभाव में कृषि उत्पादों का उचित मूल्य न मिलना ।
2. अत्यधिक श्रमसाध्य कार्य।
3. प्राकृतिक प्रतिकूलताओं से होने वाले हानि पर उचित  शासकीय पारितोषण  का अभाव ।
4. नागरिक सुविधाओं का नगर केंद्रों पर ही उपलब्ध होना आदि।
कृषि अन्नदाता क्षेत्र है परन्तु अन्नदाताओं के परिप्रेक्ष्य में प्रायः  लोग असम्मानजनक बातें भी करते पाये जाते हैं जैसे बेचारा वो या तो खेती कर रहा होगा या खप गया होगा अर्थात यदि कोई अपने परिचय में कृषक बताता है तो लोगों की उसके बारे में यह धारणा बनती है कि बेचारा कुछ अन्य नहीं कर पाया तो खेती ही करेगा ? अर्थात कुछ अन्य कार्य करने की न तो उसमें योग्यता, क्षमता, कौशल और न ही सामर्थ्य है ।
कृषि कार्य से विलग होने के  उपरोक्त कारणों में अन्नदाताओं के प्रति असम्मान का भाव भी युग्मित हो जाता है।देश की जनसंख्या नित्यनिरन्तर बढ़ रही है उत्पादकता और उससे व्युत् अर्थव्यवस्था का विश्लेषण पूर्व में हो ही चुका है तो प्रश्न उठता है कि प्रत्येक दिन सेवा योग्य तैयार होती विशाल युवाशक्ति  को सेवायोजित कहाँ और कैसे किया जायेगा ? उनकी आजीविका आदि की व्यवस्था कैसी चलेगी ?
उक्त प्रश्न का उत्तर है कृषि क्षेत्र से ही प्राप्त होगा। कृषि को उद्यमिता विकास से युग्मित कर  हम सेवायोजन का विपुल अवसर भी उत्पन्न कर सकते हैं और विश्वशक्ति भी बन सकते हैं। ये हमारे लिये अवसर है ।
वर्तमान परिदृश्य में आई०सी०एन० मीडिया हाउस ने स्वदेशी जागरण मंच की प्रेरणा से कृषि से आत्मनिर्भरता अभियान चलाया है उसी अनुक्रम में ICN मीडिया हाउस ने कल  लखनऊ के मलिहाबाद क्षेत्र के 55 गांवों के कृषकों को उनकी आय बढ़ाने और उनके युवा पीढ़ियों को क्रिषोन्मुख करने हेतु हंसापुर गाँव मे  एक कार्यशाला का आयोजन कराया। प्रेरक के रूप में ऐसे व्यक्तियों का उद्बोधन काराया गया जो बड़ी नौकरियों को यहाँ तक कुछ लोग विदेश में पढ़े और वहीं  की प्रतिष्ठायुक्त सेवाओं को त्यागकर वैज्ञानिक व जैविक कृषि को वृत्ति के रूप में चुने हैं।
ICN के सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर तरुण प्रकाश श्रीवास्तव ने मीडिया का राष्ट्रोन्नति के नैतिक दायित्वों को चिन्हित किया। ICN के एडिटर इन चीफ डॉ० शाह अयाज़ सिद्दीक़ी ने ऐसे व्यक्तियों का संदेश और वृत्तिचित्र प्रस्तुत्य किया जो कृषि से देश की दशा दिशा परिवर्तित करने में लगे हैं। ICN के सीनियर एसोशियेट एडिटर एवं प्रिंसिपल कोऑर्डिनेटर हार्दिक मोरारका जो आस्ट्रेलिया से उच्च शिक्षित हैं जिनकी सहधर्मिणी एक नाक, कान, गला विशेषज्ञ हैं ने कृषि उत्थान से स्व व समाज उत्थान को अपना  वृति चुना है अपने अनुभव कृषकों के समक्ष रखा। कार्यशाला को जनप्रतिनिधियों के साथ अन्य कृषि विशेषज्ञों ने भी संबोधित किया।
ICN  के ही दक्षिणपूर्व एशियायी देशों को इस विषय पर प्रशिक्षित कर रहे प्रसिद्ध व्यवहारिक कृषि विशेषज्ञ एडिटर ICN इंटरनेशनल राजीव सक्सेना तथा अन्य कार्यकारी जनों के विचार मंत्रणा में ये सुनिश्चित हुआ कि देश के प्रसिद्व कृषि विज्ञानियों , कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपति, कृषि शोध संस्थानो के प्रमुख तथा सिद्ध लघु मध्यम उद्यमियों का एक सम्मेलन शीघ्र  कराया जायेगा । सम्मेलन के निष्कर्ष का व्यवहारिक अनुप्रयोग देश के ग्रामीण क्षेत्रों में किया जायेगा।

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