उर्दू शायरी में ‘बारिश’ : 2

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप

बारिश, बरसात या सावन – ये केवल झर झर झरते पानी का ही मौसम नहीं है बल्कि ये मदमस्त कर देने वाली सोंधी सोंधी कच्ची खुश्बू का भी मौसम है। यह दुनिया के सभी साहित्यों के सबसे पसंदीदा विषय है।उर्दू शायरी में बरसात के हज़ारों रंग दिखाई पड़ते हैं और कुछ रंग तो इतने पक्के हैं जो सीधे दिल पे अल्पनायें सजा जाते हैं। 

 

निदा फ़ाज़ली उर्दू शायरी के अत्यंत लोकप्रिय शायर हैं। उर्दू की जदीद शायरी में दोहों का शानदार प्रयोग भी उनके हिस्से में जाता है। हम सब बारिश को भले ही अपने-अपने नज़रिये से देखते रहें लेकिन बारिश खुद बहुत भोली है। उसका काम तो बस बरसना भर है। क्या खूबसूरत शेर कहा है –

 

बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने,

किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है।”

 

प्रोफेसर वसीम बरेलवी उर्दू शायरी के ऐसे शायर हैं जिन्हें ‘मंच पर’ जितनी इज़्ज़त हासिल है, उतनी ही इज़्ज़त ‘मंच परे’ भी हासिल है। वर्तमान में ये वरिष्ठ पीढ़ी के प्रतिनिधि शायर हैं जो शायरी में नये मंज़र पैदा करने की कुव्वत रखते हैं। यह कितना खूबसूरत शेर है उनका बरसात पर –

 

मोहब्बत के घरों के कच्चेपन को ये कहाँ समझे,

इन आँखों को तो बस आता है बरसातें बड़ी करना।

 

डॉ राहत इंदौरी आज के समय के सबसे ज़्यादा सुने जाने वाले शायर हैं। जब वे मंच पर उपस्थित होते हैं तो जैसे उनके साथ-साथ पूरी फ़िज़ा बोलती है। अनेक फिल्मों में भी आपने बहुत खूबसूरत गीत लिखे हैं। उनके शेरों में कई बार चुनौतियां निडरता से खड़ी दिखाई देती हैं। जैसे उनका बरसात पर यही शेर देखिये- 

 

हर बूँद तीर बन के उतरती है रूह में,

तन्हा मेरी तरह कोई बरसात में रहे।”

 

मुनव्वर राना किसी परिचय के मोहताज नहीं है। नई पीढ़ी सबसे ज़्यादा जिन शायरों की दीवानी है, वे उनमें से एक हैं। उनके कई मजमुये मंज़र-ए-आम पर आये हैं और वे इस पीढ़ी के सबसे ज़्यादा पढ़े व कोट किये जाने वाले शायर हैं। गहरी से गहरी बात को भी बहुत ही सादगी से कहना उनकी ख़ासियत में शुमार है। जैसे इसी शेर को देखिये – 

 

ये सारे लहलहाते खेत बंजर हो गये होते।

नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गये होते।।”

 

एक अज्ञात शायर का एक बहुत खूबसूरत शेर जह्न में है जो आपसे शेयर कर रहा हूँ। आप भी कहेंगे कि बला का हसीन शेर है –

 

गले लिपटे हैं वो बिजली के डर से।

इलाही यह घटा दो दिन तो बरसे।।”

 

एक और शेर जो किसी अज्ञात शायर का है, आपसे साझा करनेका मन है जिसमें बारिश के मौसम को कितनी खूबसूरती से परिभाषित किया है –

 

मय से जब मौसम-ए-बरसात में चाही तौबा।

बादल इस ज़ोर से गरजा कि इलाही तौबा।।”

 

वर्ष 1940 में पटना (बिहार) में जन्मे मशहूर शायर सुल्तान अख़्तर बारिश पर कितने अनोखे ढंग से अपनी बात रखते हैं। मिलन का अंतराल भी एक निहायत खूबसूरत तज़ुर्बा है। वे फ़रमाते हैं –

 

मैं वो सहरा जिसे बारिश की हवस ले डूबी,

तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं।”

 

जाज़िब क़ुरैशी का जन्म कराची, पाकिस्तान में वर्ष 1940 में हुआ। बारिश खूबसूरत है लेकिन उसे झेलना सबके बस की बात नहीं है। उनका यह बेहतरीन शेर देखिये –

 

क्यूँ माँग रहे हो किसी बारिश की दुआएँ,

तुम अपने शिकस्ता दर-ओ-दीवार तो देखो।”

 

वर्ष 1945 में लाहौर, पाकिस्तान में जन्मे शायर नज़ीर क़ैसर एक बेहतरीन शायर हैं। उनके अनुसार जब बारिश बाहर होती है तो उसी समय अंदर भी होती है। आइये, देखते हैं उनका यह खूबसूरत शेर –

 

बरस रही थी बारिश बाहर,

और वो भीग रहा था मुझ में।”

 

‘इतनी मुद्दत बाद मिले हो, किन सोचों में गुम रहते हो’ जैसी‌ कामयाब ग़ज़ल के शायर मोहसिन नक़वी का जन्म पाकिस्तान में वर्ष 1947 में हुआ था और वर्ष 1996 में उनका इंतकाल हो गया। बारिश उन्हें चिंतित करती है और उनकी चिंता से उनका यह शेर उभरता है-

 

अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था। 

अपनी कच्ची बस्तियों को बे-निशाँ होना ही था ।।”

 

अशफ़ाक़ अंजुम एक बेहतरीन शायर हैं जिनका जन्म 1948 में मालेगाँव, महाराष्ट्र में हुआ। बारिश अगर कच्ची मिट्टी की सुगंध बिखेरती हेै तो कच्चे मकानों पर कहर भी ढाती है। एक शेर यह भी – 

 

हम से पूछो मिज़ाज बारिश का,  

हम जो कच्चे मकान वाले हैं।” 

 

जमाल एहसानी सरगोधा, पाकिस्तान में वर्ष 1951 में जन्मे और मात्र सैंतालिस वर्ष की उम्र में 1998 में करांची, पाकिस्तान में उनका इंतकाल‌ हो गया लेकिन इस छोटे से वक़्फ़े में भी उनकी कमाल की शायरी तत्कालीन उर्दू साहित्य की एक शानदार विरासत मानी जाती है। आइये, उनके इस खूबसूरत शेर का मज़ा लेते हैं –

 

उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं,

भीगने वालों को कल क्या क्या परेशानी हुई।”

 

और एक शेर यह भी –

 

तमाम रात नहाया था शहर बारिश में,

वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे।”

 

मरग़ूब अली नज़ीबाबाद, भारत में वर्ष 1952 में जन्मे। इनका शुमार हिंदुस्तान के बेहतरीन शायरों में है। कितनी खूबसूरती से वे अपनी बात कहते हैं –

 

भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है,

दर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है।”

 

परवीन शाकिर भी एक मशहूर और कामयाब पाकिस्तानी शायरा हैं। कम उम्र में ही उनकी‌ मृत्यु एक दुर्घटना में हो गयी लेकिन वे अपनी ग़ज़लों व नज़्मों के दम पर आज भी जीवित हैं। बरसात की रात वस्तुतः बेचैनी की रात है। तमाम सोई हुई ख़्वाहिशें सर उठाने लगती हैं। क्या खूबसूरत शेर कहा है उन्होंने –

 

अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है,

जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की।”

 

एवं एक यह भी शेर –

 

“तेरी चाहत के भीगे जंगलों में,

मेरा मन मोर बनकर नाचता है।”

 

ख़ालिद मोईन पाकिस्तान के युवा शायर हैं। अपनी बात को रखने का उनका एक विशिष्ट अंदाज़ है। पानी जलाता भी है और भिगोता भी है। आइये, मिलते हैं इनसे इनके एक शेर के हवाले से –

 

अजब पुर-लुत्फ़ मंज़र देखता रहता हूँ बारिश में।

बदन जलता है और मैं भीगता रहता हूँ बारिश में।।” 

 

गुलज़ार की शायरी पारंपरिकता के बंधनों से सर्वथा मुक्त दिखाई देती है और यही ख़ासियत गुलज़ार को ऐसा ‘गुलज़ार’ बना देती है जिसकी सारी दुनिया दीवानी है। गीली मिट्टी की मिठास, सुबह की उजास और कच्चे आम‌ की कचास अगर एक जगह देखनी हो तो इसके लिये गुलज़ार की शायरी से बेहतर कोई मुक़ाम नहीं है। उनका एक बेहतरीन शेर –

 

मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को,

मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है।।”

 

इबरत मछलीशहरी जितनी सादगी से अपनी बात कहते हैं, उतनी ही गहरी बात भी कहते हैं। उनके शेर खुद ब खुद बोलते हैं। बरसात पर उनका यह शानदार शेर देखिये –

 

रूह की प्यास फुवारों से कहीं बुझती है, 

टूट के बरसे तो बरसात समझ में आए।”

 

लखनऊ को दुनिया में इसकी तहज़ीब-ओ-तमुद्दन, मिठास, भाईचारे के साथ-साथ सुहैल काकोरवी के लिये भी जाना जाता है। बेशुमार लेकिन हर बार बेहतरीन लिखने वाले सुहैल काकोरवी का नाम उनकी  किताब ‘आमनामा’ के हवाले से ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में तथा ‘नीला चाँद’ के हवाले से ‘एशिया बुक अॉफ रिकॉर्ड्स’ में दर्ज है। उनकी तो ‘बरसात’ पर पूरी ग़ज़ल ही है –

 

खूब बादल का बरसना प्यार है बरसात में।

रहमतों का इस तरह इज़हार है बरसात में।।

 

अर्श से आया ज़मीं पर, जज़्ब पानी हो गया,

आपको आने में हम तक आर है बरसात में।

 

ऐ खुशादिल अब तो सैलाबे मोहब्बत आयेगा,

आज तो बाचश्मे नम दिलदार है बरसात में।

 

दूसरे सब‌ मौसमों में हैं रव्वये सर्दे ओ गर्म

उसके लब पर हाँ मगर इकरार है बरसात में।

 

ऐ ‘सुहैल’ इसको ज़रा खुल कर बरसना चाहिये,

एहतियाते हुस्न दिल‌पर बार है बरसात में।”

 

पहली बारिश की तो बात ही कुछ और होती है। देखिये तो, इसे सुहैल काकोरवी जिस नज़र से देखते हैं

 

अरमान ज़मीं के जाग उठे दिलदार ये पहली बारिश है.

कल सोच रहा था सारा जहाँ दुश्वार ये पहली बारिश है.

 

रंजिश जो हमारे बीच रही तो आग फलक ने बरसाई,

अब सोच न कुछ मौसम को समझ ए यार ये पहली बारिश है.

 

फितरत में नज़र आते हैं हमे अपनी ही मोहब्बत के पहलू,

इंकार था गर्मी का आलम इकरार ये पहली बारिश है.

 

एहसासे जुदाई दोनों तरफ आँखों से मेरी आंसू हैं रवां,

उस पार न जाने क्या है समां इसपार ये पहली बारिश है.

 

गुन्चों पे अजब शादाबी है और जाग उठी है हरियाली,

तम्हीदे बहारे ताज़ा का दीदार ये पहली बारिश है.

 

तू और कहीं मै और कहीं आगोशे तमन्ना सूनी है,

ऐसा तो कभी पहले न हुआ इस बार ये पहली बारिश है.

 

वो रहमो करम है बिलआखिर मुझको तो सुहैल इसपर है यकीं,

बस उसकी इनायत का यारों इज़हार ये पहली बारिश है. 

 

सुहैल काकोरवी अपने रंग के कुछ अलग ही शायर हैं। सावन उनका पसंदीदा मौसम है –

 

चढ़ते सूरज की शुआओं से जो बरसा सावन।

मैंने देखा न सुना था कभी ऐसा सावन।।

 

हर तरफ़ फूल‌ खिले, रंग के बादल बरसे,

ऐ ‘सुहैल’ अब तो‌ मेरे दिल में समाया सावन।

 

दो एक शेर ये भी –

 

लहरा के उठी घंघोर घटा वो बिखरी ज़ुल्फ पसेशाना,

अब आज तो बादल लिक्खेगा पानी से आग का अफ़साना।।”

 

और यह भी –

 

वो हुस्न बरसता है तो थमता ही नहीं है,

इस साल तो ज़ोरों पे है बरसात हमारी।”

 

क्रमशः

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