डॉ. रिन्जु राय, एसोसिएट एडिटर-ICN डायस्पोरा
‘सतत विकास का भारतीय प्रारूप और स्वावलंबन की अवधारणा’ विषय पर दिया व्याख्यान
@vcomgahv के माध्यम से फेसबुक लाइव स्ट्रीमिंग व यूट्यूब पर हुआ प्रसारण.
विकास का प्रारूप प्रकृति के नियम के अनुरूप हों – आचार्य गिरीश चंद्र त्रिपाठी
वर्धा, 17 जुलाई 2020: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में बोधिसत्त्व बाबा साहेब ई-ज्ञान श्रृंखला के अंतर्गत आयोजित व्याख्यान श्रृंखला में गुरुवार, 16 जुलाई को उत्तर प्रदेश राज्य उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष तथा काशी हिंदू विश्वविद्यालय के भूतपूर्व कुलपति आचार्य गिरीश चंद्र त्रिपाठी जी ने ‘सतत विकास का भारतीय प्रारूप और स्वावलंबन की अवधारणा’ विषय पर दिए व्याख्यान में कहा है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने अपनी साधनाओं के बल पर विकास का प्रारूप खड़ा किया है। हमने अपनी सांस्कृतिक परंपरा में संपूर्ण सृष्टि को परमात्मा का स्वरूप माना है। वर्तमान समय में हमने प्रकृति को भोगभूमि मानकर उसका दोहन किया है। इस कारण से आज कोरोना महामारी के चपेट में दो सौ से अधिक देश आ गये हैं। हमें सतत विकास का प्रारूप प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए तैयार करना चाहिए। स्वावलंबन के लिए हमें कृषि, औद्योगिक, व्यावहारिक और तकनीकी शिक्षा के अवसरों का सृजन करने वालों को तैयार कर विश्व के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने की। प्रो. त्रिपाठी जी ने कहा कि संसाधनों के शोषण के कारण उत्पादन,रोज़गार और व्यापार पर गहरा प्रभाव पड़ा है। आज की चुनौतियों से निपटने के लिए हमें स्वदेशी उद्योगों का बढ़ावा देते हुए उनकी गुणवत्ता और विपणन सुनिश्चित करना चाहिए। विकास के भारतीय दर्शन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे गांव स्वावलंबन और स्वदेशी की दृष्टि से परिपूर्ण थे। आपसी विश्वास पर आधारित यह प्रारूप अत्यंत कारगर हुआ करता था। आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में हमें स्वयं-समूहों तथा गावों का आत्मनिर्भर बनाना होगा। उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में उत्पन्न समस्याओं का समाधान भारतीय दर्शन दृष्टि से ही निकाला जा सकता है। प्रो. त्रिपाठी जी ने महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी के ‘स्वदेशी, स्वावलंबन और राष्ट्रभक्ति’ के विचार-दर्शन को आज की समस्याओं पर समाधन के लिए कारगर बताया।
कार्यक्रम में अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने आचार्य गिरीश चंद्र त्रिपाठी जी के सारगर्भित व्याख्यान के लिए उनके प्रति आभार जताते हुए अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन प्रणाली को केंद्र में रखकर हमें सुख साधनों का उत्पादन करना चाहिए। उनका कहना था कि सतत विकास की प्राप्ति के लिए लालच को सीमित कर उत्पादन का वितरण आवश्यक है। प्रो. शुक्ल ने कहा कि स्वदेशी के प्रति स्वाभिमान और विश्वास चाहिए। हमारा जिओ और जिने दो का मॉडल था, दूसरों को बांटने की हमारी वृत्ति रही हैं। आत्मनिर्भरता का यह कारगर प्रारूप था। उन्होंने दीनदयाल उपाध्याय जी के अंत्योदय की चर्चा करते हुए कहा कि मानव केंद्रित विकास से ही आत्मनिर्भरता आएगी और मानवीयता भी। परिचय एवं स्वागत वक्तव्य कार्यक्रम के संयोजक प्रो. अनिल कुमार राय ने दिया।
बोधिसत्व बाबासाहेब ई-ज्ञान श्रृंखला के अंतगर्त आयोजित इस व्याख्यान को विश्वविद्यालय के फेसबुक लाइव व यूट्यूब लाइव पर प्रसारित किया गया। अकादमिक ज्ञान तथा बहुआयामी संवाद-दर्शन की भावनाओं को विकसित करने के लिए यह ऑनलाइन श्रृंखला विश्वविद्यालय की एक अभिनव एवं महत्वाकांक्षी पहल है। जनसंचार विभाग के सहायक प्रोफेसर संदीप कुमार वर्मा इसके सह संयोजक है।