तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)
द्वितीय अध्याय (सांख्य योग)
(छंद 57-63)
श्रीकृष्ण : ( श्लोक 11-53)
आकांक्षी कर्मफलों के,
ऐश्वर्य, भोग के रागी।
परिणाम स्वर्ग का चाहें,
जो वेदवाक्य अनुरागी।।(57)
जो फल का चिंतन करते,
वे अविवेकी, अज्ञानी।
है कहाँ बुद्धि स्थिरता,
मन, जैसे बहता पानी।।(58)
अर्जुन, वेदों की शैली,
फल देने हित निर्मित है।
इसलिये शेष माया है,
आसक्ति सारगर्भित है।।(59)
जो ब्रह्म तत्व का ज्ञाता,
जो सागर में तिरता है।
लघुतम सा एक जलाशय,
इन वेदों को गिनता है।।(60)
निष्काम कर्म है तेरा,
इच्छा मत कर हित फल की।
आसक्ति न जागे तुझमें,
निज कर्महीन संबल की।।(61)
हे सखा, वांछना तज कर,
जो मात्र कर्म करता है।
वह समभावी है योगी,
प्रतिपल समत्व धरता है।।(62)
निष्कामयोग हर क्षण है,
फल युक्त कर्म पर भारी।
ले बुद्धि योग का आश्रय,
फल अभिलाषा अविचारी।।(63)
क्रमशः
विशेष : गीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।