तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
हर ‘आँसू’ यानी ‘अश्क’ की अपनी ही कहानी है। चाहे खुशी हो या ग़म, आँसू अपनी दोस्ती हमेशा ही शिद्दत से निभाते हैं। सत्यता यह है कि आँसू के खारे पानी में वह आग है जो दिल पर जमी बर्फ़ को गला देती है और उसके बाद आदमी अपने-आप को हमेशा ही हल्का और तरोताज़ा महसूस करता है।
नाज़िम बरेलवी आधुनिक शायरी में एक चमकता हुआ नाम है। वे हर चीज़ को अपने अलहदा अंदाज़ में परखते हैं और उनका यह अंदाज़ उन्हें दूसरे शायरों से कुछ अलग और ख़ास कर देता है। वे नौजवान शायर हैं और उर्दू शायरी को उनसे बहुत उम्मीदें हैं। आँसू पर कितना खूबसूरत शेर निकला है उनकी कलम से –
“जब मिरा ग़म उस नज़र में मोतबर हो जायेगा।
तो इन आँखों का हर इक आँसू गुहर हो जायेगा।।
मोहम्मद अली साहिल लखनऊ की सरज़मीं से वास्ता रखते हैं और एक बेहतरीन शायर है। उनकी शायरी का हुस्न कभी कभी तो देखते ही बनता है। सरल लफ़्ज़ों में गहरी बात कहने का हुनर उनको आता है और यही बात उन्हें धारदार बना देती है। मोहब्बत मिटने का भी नाम है और अपनी साँसों से दूसरे को ज़िंदगी देने का नाम भी। अश्क पर उनका एक खूबसूरत शेर देखिये –
“मेरी आँखों में हुए रौशन जो अश्कों के चराग़,
उन के होंटों पर तबस्सुम का दिया जलता रहा।”
मनीष शुक्ला आधुनिक शायरी की वकालत करते हैं। उनका दीवान ‘ख़्वाब पत्थर हो गये’ ख़ासा चर्चित है। साफ़गोई उनकी ग़ज़लों का ज़ेवर है। अश्क के हवाले से उनका यह शेर आपके हवाले –
“कोई तस्वीर अश्कों से बना कर,
फ़सील-ए-शहर पर चिपका गया था।”
विवेक भटनागर बेहतरीन नौजवान शायर हैं जिन्होंने हमेशा साहित्य में नये प्रयोग किये हैं। वे परंपराओं के आदी नहीं है और उनके अनुसार हर ज़िंदा चीज़ को अपना रास्ता खुद बनाना चाहिये और अदब यक़ीनन एक ज़िंदा शय है। साहित्य में तो यह भी खूबी है कि साहित्यकार की शारीरिक मृत्यु भी उसे नहीं मार पाती। वे सदैव नये अंदाज़ में बातें करते हैं चाहे वे आँसू ही क्यों न हों –
“यूं तो दुनिया ने फ़क़त देखे हैं मेरे आंसू,
किसने आंखों से तमन्नाओं को गिरते देखा।”
यह भी शेर शानदार है –
“बेसबब आंसू निकल आए, क़सम ले लो कि अब,
मुद्दआ कोई नहीं है,मसअला कोई नहीं !”
और इस शेर की मासूमियत का तो जवाब ही नहीं –
“जब तुम्हारी आंख आंसू जज़्ब कर सकती नहीं,
हम भला कैसे तुम्हारी आंख के तारे हुए।”
और एक शेर यह भी –
“आंखों में आ गया था सिमटकर मेरा वजूद,
वो जा रहा था छोड़ के, मैं देखता रहा।”
अरविंद असर शायरी में स्थापित नाम है। वे गहराई के शायर हैं और यही कारण है कि कभी उनकी शायरी में सतहीपन नहीं आता है। उनका हर शेर बताता है कि उन पर शायर ने उन पर ज़बरदस्त मेहनत की है और उसने उन्हें अपने दिल के समंदर को खंगाल कर निकाला है। अश्क पर उनके कुछ बेमिसाल शेर आपके हवाले –
“आंखों से मेरी अश्क टपकता ज़रुर है,
बारिश से तेरी याद का रिश्ता ज़रूर है।”
एक और शेर –
“चुपचाप हम न अश्क बहाएं तो क्या करें,
इक पल भी उसको भूल न पाएं तो क्या करें।”
और एक यह भी –
“हो न हो ख़ून तुम्हारा भी है पानी शायद,
वरना तुम अश्क के क़तरे को न पानी कहते।”
मध्य प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले युवा शायर राज तिवारी जिस धारदार शायरी का प्रतिनिधित्व करते हैं, उससे यह विश्वास होता है कि नौजवानों में भी शायरी सलीकेदार और ज़हीन हाथों में है। वे अपनी बात को बहुत प्रभावशाली रूप से सामने रखते हैं। ज़रा उनका आँसू के हवाले से ये शेर देखिये –
गिर्या-ए-शब किसको कहते हैं मेरी हालत से समझो
आँखें सुर्ख़ कहाँ होती हैं दो आँसू ढुलकाने से।”
अनुज अब्र लखनऊ के युवा शायर हैं। उनकी शायरी तलवार की धार जैसी पैनी है और सवेरे की उजास जैसी चमकदार। वे ज़िम्मेदारी के साथ शायरी करते हैं और यह ज़िम्मेदारी उनकी शायरी का क़द बढ़ा देती है। अश्क के मसले पर उनके कुछ खूबसूरत अशआर मेरी बातों की वकालत करते हैं –
“रात में जगकर तारे गिनने वालों ने,
चाँद को अक्सर अश्क बहाते देखा है।”
एक शेर यह –
“मिल गई तुमको तो मज़िल पर मुझे,
टीस तन्हाई तड़प आँसू मिले।”
और यह शेर भी –
“उसकी जुदाई में जो गिरे थे तमाम उम्र,
मैंने उन आँसुओ का समुन्दर बना दिया।”
यह शेर भी कमाल का है –
“यूँ अश्क़ जल रहे हैं शबे हिज्र में मेरे,
जैसे कि कोई आँख में नींबू निचोड़ दे।”
और एक शेर यह भी –
“यहाँ पर फ्लैट बारिश में ग़ज़ब का लुत्फ़ पाते हैं।
मगर गाँवों में घर मिट्टी के बस आँसूं बहाते हैं।।”
मंजुल मंज़र लखनऊ से वाबस्ता एक नौजवान शायर हैं। मंचों पर पूरे दिल से सुने जाते है और तरन्नुम में जब पढ़ते हैं तो अक्सर छा जाते हैं। एक साहित्यिक परिवार से संबंध रखते हैं तो साहित्य की गहराई सदैव उनके कलामों में दिखाई देती है। अश्क पर उनके कुछ शानदार अशआर आपके हवाले –
“अश्के-ग़म दिल में मेरे आग लगा देता है।
और गिर जाए तो दामन भी जला देता है।”
और ये अशआर भी –
“आँख से जब निकल गये आँसू।
दिल की दुनिया निगल गये आँसू।।
सुर्ख़ रुख़सार को छुवा पहले,
फिर लबों तक फिसल गएआँसू।”
माधव बाजपेयी की शायरी में गहराई दिखाई पड़ती है। आँसुओं पर उनका ये शेर क़ाबिले ग़ौर है –
“आँसुओं की ज़ुबाँ नहीं होती,
सिसकियाँ उनमें शोर भरती हैं।”
राजेंद्र वर्मा कई विधाओं पर साधिकार लिखते हैं और विभिन्न विधाओं में उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित होकर पाठकों की प्रशंसा हासिल कर चुकी हैं। उनकी ग़ज़लें आधुनिक साहित्य से संबंध रखती हैं। आँसू पर उनका एक शानदार शेर आपके लिये –
“आँसुओं से कह दो अपने घर में रहना सीख लें,
घर की देहरी लाँघ कर मिलती है रुसवाई यहाँ।”
अमिताभ दीक्षित साहित्य, कला व संगीत के संगम हैं। वे जब शायरी में अपने हाथ आजमाते हैं, तब भी कमाल ही करते हैं। आँसुओं के हवाले से उनके तेवर देखिये –
“ये आइनों का शहर और वो अकेला है,
अब उसकी आँख में आँसू बसर नहीं होंगे।”
और एक यह शेर –
“आँखों में थे ख्वाब सुनहरे अच्छे कल के।
सारे सपने सिमटे बन कर आँसू ढलके।।”
कुछ अज्ञात शायरों के भी आँसू/अश्क पर कुछ लाजवाब शेर भी सामने आये जिन्होंने मेरे दिल को छुआ है। काश, इनके शायरों के नाम मुझे पता होते तो मैं अवश्य ही बड़े गर्व के साथ उन्हें इस आलेख में अंकित करता। हो सकता है कि आप इन शायरों को जानते हों। यदि ऐसा है तो मेरा भी परिचय उनसे ज़रूर कराइयेगा। फ़िलहाल तो कुछ बेहद उम्दा अशआर से मुलाकात कीजिये –
“पलकों की हद को तोड़ के दामन पे आ गिरा,
इक अश्क मेरे सब्र की तौहीन कर गया।”
और एक शेर और –
“आसरा दे के मेरे अश्क न छीन,
यही ले दे के बचा है मुझ में।”
सच कहा जाये तो अश्क या आँसू दुनिया की वह ज़ुबान है जिसे अनसुना करना आसान नहीं है। कुछ न कहकर भी सब कुछ कहने की कला है इनमें। यह भी सच है कि 8जब लफ़्ज़ समाप्त हो जाते हैं तो इंसान, चाहे ग़म का मौका हो या खुशी का, आँसुओं की भाषा में ही बोलता है। दुनिया में बहुत सी भाषाएँ हैं लेकिन सारे लोग सारी भाषाएँ नहीं जानते लेकिन दुनिया का हर इंसान, चाहे वह बच्चा हो या बूढ़ा, विद्वान हो या अनपढ़, पहाड़ों पर रहता हो या जंगलों में, आँसुओं की ज़ुबान ज़रूर समझता है। आँसुओं की एक अपनी ही दुनिया है जहाँ आँसू बस आँसू ही है, वह न काला है न गोरा, न अमीर न गरीब और न छोटा न बड़ा ।
चलते-चलते अश्क पर दो-एक शेर मेरे भी आपकी मोहब्बतों के हवाले –
“ अश्क दिल में हैं इस तरह खौले,
मिरी आँखों से धुआँ उठता है।”
और एक यह शेर –
“अश्क आँखों में, हँसी चेहरे पर,
ख़ुम से ढलकी शराब हो जैसे।”
-तरुण प्रकाश श्रीवास्तव