सुधांशु गुप्त, गीताश्री: प्रतिष्ठित शिव कुमार ‘शिव’ स्मृति पुरस्कार से सम्मानित

चन्द्रकान्त पाराशर, एडीटर-ICN

नई दिल्ली: इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में प्रथम शिव कुमार स्मृति सम्मान पुरस्कार श्रृंखला: उपन्यास लेखन में गीताश्री को उनके उपन्यास”क़ैद बाहर”और कहानी-लेखन के लिए सुधांशु गुप्त को उनके कहानी संग्रह”तेहरवां महीना”के लिए सम्मान व पुरस्कार दिया गया। आईआईसी के कमला देवी ब्लॉक में आयोजित समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी, ममता कालिया, चित्रा मुद्ग़लऔर महेश दर्पण ने की ।इस मौके पर ललिता अस्थाना भी वक्ता के रूप में शामिल हुईं।

समारोह में उपस्थित वरिष्ठ व युवा रचनाकारों और पत्रकारों की भारी संख्या के बीच एकबारगी लगा कि कथाकार शिव कुमार शिव स्वयं यहां उपस्थित हो गये हैं ,अपनी कहानियों-उपन्यासों के माध्यम से। ज्ञातव्य है कि शिव कुमार शिव की कहानियाँ प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में छपीं। पहला कहानी संग्रह ‘देह दाह’ सन् 1989 में प्रकाशित हुआ. इसके बाद ‘जूते’,‘दहलीज’, ‘मुक्ति’ और ‘शताब्दी का सच’ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए. कहानियों के अलावा उन्होंने‘आंचल की छांव में’ और वनतुलसी की गंध नाम से एक उपन्यास भी लिखा. 2005 में ‘तुम्हारे हिस्से का चांद’ उपन्यास प्रकाशित हुआ और चर्चित रहा।

किस्सा पत्रिका की संपादक अनामिका शिव की पहल पर ही यह सम्मान शुरू किया गया है। इसमें आनंद सिंघानिया व मीनाक्षी सिंघानिया का भी सक्रिय सहयोग रहा । उक्त दोनों रचनाकारों को सम्मानित करते हुए तीनों वरिष्ठ रचनाकारों ने पुरस्कृत लेखकों की रचनाधर्मिता पर बात की।

महेश दर्पण यह मानते हैं, कि शिव कुमार शिव दरअसल एक बैचैन आत्मा थे ,अपने वैचारिक स्वातंत्र्य को जीनेवाले जब कभी भी मिलते थे तो अनेक प्रकार की योजनाओं के साथ । उपन्यास”क़ैद बाहर” कथ्य व शिल्प पर बेबाक़ टिप्पणी करते हुए इसे परम्परा से अलग हटकर -एक रचना माना ।

“तेरहवाँ महीना” कहानी संग्रह का लेखक कभी कथा से विचार तो कभी विचार से कथा बुनते हुए प्रतीत होता है , जीवन के भीतरी वबाहरी दुनियाँ के अलग अलग पक्षों को उकेरती ये कहानियाँ संवेदनशील ढंग से संवाद करती हुई चलती हैं।
वैसे भी स्वयं सुंधांशु गुप्त का मानना है कि “दूसरों से कनेक्ट करने की इच्छा “ ही कहानी होती है ।

प्रसिद्ध साहित्यकार ममता कालिया का कहना था, कि इन दोनों पुरस्कृत कृतिओं में कहीं न कहीं शिव कुमार शिव जी की ही नयी शुरुआत है । “ तेरहवाँ महीना “में संकलित कहानियाँ मनःस्थिति के अलग अलग पक्षों से गुंफित पाठकों को आकर्षित करती चलती है ।हमारे ही जीवन , हम सबकी दुनियाँ की यह कहानियाँ सख़्त व नाज़ुक से नाज़ुक बातों को सुंदर ढंग से कहती हैं। पुरस्कृत उपन्यास”क़ैद बाहर”की कथावस्तु के केंद्र में भी सामाजिक परिस्थितियाँहैं , जिसमें नारी-विमर्श को जगह मिलती है ।

अंत में,अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रख्यात लेखक विचारक अशोक वाजपेयी ने “पुरस्कारों के महत्व को सही तथ्य व रोचक शैली में व्यक्त करते हुए हिन्दी-लेखकों के प्रति हिन्दी-समाज की तथाकथित उदासीनता को लक्ष्य किया, वहीं देश के अन्य क्षेत्रों की भाषाओं के साथ उनके भाषाभाषी समाज के परस्पर स्नेह-प्यार को भी परिभाषित किया । यह पुरस्कार वास्तव में लेखक को आश्वस्त करते हैं कि उनके लिखे का कोई महत्व/मतलब है ।

इससे पूर्व अनामिका शिव ने सभी आगन्तुक साहित्य-मनीषियों, लेखकों का हार्दिक स्वागत करते हुए अपने बचपन से लेकर अब तक की मधुर स्मृतियों के झरोखों से इस मौके पर नम आँखों से अपने पिता को याद किया ।उन्होंने बताया कि पुरस्कृत कथाकारों को नकद राशि, स्मृति चिह्न और सम्मान पत्र प्रदान किया गया है, व हर वर्ष एक उपन्यास और एक कहानी संग्रह के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस पुरस्कार का उद्देश्य स्व०शिव कुमार शिव के साहित्य पर विमर्श को सकारात्मक दिशा देना है ।

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