नई दिल्ली। निचली अदालत के एक जज ने हत्या के आरोपी को दोषी करार दिया लेकिन उसे 10 साल कैद की सजा सुनाई, इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने आश्चर्य जताया और कहा कि हत्या मामले में दोषी पाए जाने पर या तो उम्रकैद की सजा हो सकती है या फिर फांसी। इसके अलावा और कोई सजा का प्रावधान नहीं है। हत्या मामले में उम्रकैद की सजा से कम सजा देना गैर कानूनी है और कानून के दायरे से बाहर है।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल की सजा को उम्रकैद में बदले जाने के हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए उक्त टिप्पणी की। यह मामला गुजरात के मेहसाना का है। दिलीप नामक शख्स की हत्या के मामले में भरत कुमार नामक शख्स को निचली अदालत ने दोषी करार दिया। मेहसाना के अडिशनल सेशन जज ने भरत कुमार नामक शख्स को हत्या मामले में दोषी करार देते हुए 10 साल कैद की सजा सुनाई। गुजरात सरकार ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी और सजा बढ़ाने की अपील की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात हाई कोर्ट ने उम्रकैद की जो सजा दी है उससे हम सहमत हैं। लेकिन साथ ही कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि कैसे सेशन कोर्ट ने हत्या मामले में आरोपी को दोषी ठहराने के बाद सिर्फ 10 साल कैद की सजा सुनाई। एक बार जब आरोपी आईपीसी की धारा-302 यानी हत्या में दोषी ठहराया जाता है उसके बाद या तो फांसी की सजा हो सकती है या फिर उम्रकैद की। उम्रकैद से कम सजा देना अवैध और कानून के दायरे से बाहर की बात है।