डॉ. शाह आलम राना, एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN लखनऊ: एक दूसरे से आगे निकलने की आपाधापी, स्वार्थ और आत्मकेंद्रित होती जा रही इस दुनिया में किसी भी जन नायक को भुला देने के लिए डेढ़ सौ वर्ष कम नहीं होते। जब हमारे ही लोग उस गौरवशाली विरासत की शानदार धरोहर को सहेज कर न रख पा रहे हो तो सत्ता को कोसने का क्या मतलब? दरअसल इतिहासकी भी दो किस्में हैं। एक तो राजा, रजवाड़ों, रियासतों, ताल्लुकेदारों, नवाबों, बादशाहों, शहंशाहों का, तो दूसरा जनता का। सत्ता का चरित्र इस तरह का होता…
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